पालने से लेकर कांधों तक कांपती है ज़िन्दगी,
महज़ वक़्त के इशारों पर नाचती है ज़िन्दगी||
मन हुआ पागल क़ि ना जाना चाहे उस छोर तक,
जिस ओर सिर्फ कुछ कदम नापती है ज़िंदगी|
मरने को मर जाते हैं कुछ लोग यूं ही, कैसे भी,
पैगाम-ए-मोहब्बत के साथ मरना चाहती है ज़िन्दगी||
कसम खुदा की कातिल हो बहुत बेरहम तुम ,
तेरे रहमो करम से अब दूर भागती है ज़िन्दगी||
सुजीत ज़िंदगी से मोहब्बत तो बेपनाह कर लेता,
पर बेवफाई की खिड़की से मुस्तकिल झांकती है ज़िन्दगी||