गजल
August 9, 2012 / August 8, 2012 by सत्येन्द्र गुप्ता | Leave a comment
रात भर तेरी याद आती रही
बेवज़ह क़रार दिलाती रही।
जैसे सहरा में चले बादे सबा
सफ़र में धूप काम आती रही।
दमकता रहा चाँद आसमां पे
चांदनी दर खटखटाती रही।
ऊंघता बिस्तर कुनमुनाता रहा
तेरी ख़ुश्बू नखरे दिखाती रही।
कितना मैं अधूरा रह गया था
इसकी भी याद दिलाती रही।