गीताप्रेस :गाँधी सम्मान,कौन है परेशान

गीताप्रेस गोरखपुर को कौन नहीं जानता ?  आज हम अपने बच्चों के लिए  पहली-दूसरी कक्षा की पुस्तकें लेने जाते हैं तो वे भी चार-पाँच हजार से कम में नहीं आतीं | किन्तु गीता प्रेस इतने मूल्य में आपको इतना साहित्य दे सकती है कि आप पूरे मोहल्ले/कॉलोनी को  बाँट दें फिर भी आपके पास कुछ पुस्तकें बच जाएँ  | आजकल नर्सरी के बच्चे की पर्यावरण की पुस्तक भी  सौ  रुपये से कम में नहीं आती किन्तु गीता प्रेस, मात्र पच्चीस रुपये में भगवत गीता आपको दे देती है | पाँच-दस रुपये में भी सुन्दर सुन्दर पुस्तकें प्रदान करने वाली यह संस्था निःस्वार्थ सेवा के सौ वर्ष पूर्ण करने जा रही है | ऐसे में  केंद्र सरकार द्वारा इसे गाँधी शांति पुरस्कार (2021) दिए जाने की घोषणा  से देश-विदेश में रहने वाला हिन्दू समाज खुशी मना रहा है | ऐसा होना स्वाभाविक भी है, क्योंकि सैकड़ों वर्षों तक विदेशी आक्रान्ता हमारे धार्मिक ग्रंथों को नष्ट करते रहे | मुहम्मदवादियों ने अधिकांश मंदिरों और पुस्तकालयों को आग लगा दी तो अंग्रेजों ने गुरुकुल बंद कराके हमें अपनी जड़ों से काट दिया | स्थिति यहाँ तक पहुँच गई कि हिन्दुओं के देश में बाइबिल और कुरआन तो चाहे जहाँ से ले लो किन्तु हिन्दू धर्म ग्रंथों जैसे वेद, उपनिषद्,पुराण आदि की बात मत करो  ! भारतीय जीवन का आधार या भारत की पहचान कहे जाने वाले ग्रन्थ गीता और रामायण तक जन साधारण को मिल पाना  कदाचित असंभव जैसा हो गया था | ऐसे कठिन समय में श्री जयदयाल गोयन्दका और श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार जैसे महापुरुषों ने सन 1923 में गीता प्रेस गोरखपुर की स्थापना की | इस प्रेस ने अनेक कठिन और प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करते हुए पूरे देश को बिना लाभ कमाए अत्यंत कम मूल्य पर सनातन ग्रन्थ उपलब्ध कराने का कार्य आरंभ किया | स्वामी रामसुखदास जी जैसी महान विभूतियों ने बिना रोयल्टी लिए कठिन साधना द्वारा महान ग्रंथों के अनुवाद प्रस्तुत किए | आज लगभग प्रत्येक आस्तिक हिन्दू घर में गीता, रामायण, हनुमान चालीसा सहित अनेक धार्मिक पुस्तकें या इनमें  से कोई एक पुस्तक तो अवश्य ही पहुँच चुकी है | इस व्यावसायिक युग में भी यह प्रेस बिना किसी चंदे,सरकारी सहायता और बिना विज्ञापन के सनातन धर्म की सेवा में लगी हुई है | गीता प्रेस के कल्याण के अंक तो मानव जाति के लिए श्रेष्ठ ज्ञान निधि हैं | इस प्रेस द्वारा केवल धार्मिक ही नहीं अपितु बच्चों और महिलाओं के लिए भी अनेक शिक्षाप्रद पुस्तकें प्रकाशित की जाती हैं |

     पिछले सौ वर्षों से करोड़ों हिन्दुओं की सेवा करने वाली,गीता के महान संदेशों को जन-जन तक पहुँचाने वाली इस प्रेस को जैसे ही गाँधी शांति पुरस्कार देने की घोषणा हुई तो कुछ विघ्न संतोषियों को यह बात हजम नहीं हुई | यह कैसी असहिष्णुता है कि जीवन पर्यंत ईसाईयत  का प्रचार करने वाली और सेवा की  आड़  में धर्मान्तरण कराने वाली रोमन कैथोलिक नन मदर टेरेसा को देश का सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न मिलने पर जो लोग नाच रहे थे वे गीताप्रेस के सम्मानित होने पर छाती पीट रहे हैं | आखिर ये लोग भारत में भारतीय जीवन मूल्यों का प्रचार करने वाली संस्था के शत्रु क्यों बने हुए हैं ? जयराम रमेश जैसे लोग गीता प्रेस गोरख पुर का विरोध करके न केवल कांग्रेस की जड़ों में मठ्ठा डालने का काम कर रहे हैं अपितु स्वयं की भी थुक्का फ़जीहत करा रहे हैं |

ध्यान रहे यह संस्था कांग्रेस,भाजपा, सपा या किसी सरकार से कोई सहायता नहीं लेती उसकी स्वीकार्यता सभी दलों के लोगों में है | यह संस्था विश्व का कल्याण करने वाले,संसार को अच्छाई और सच्चाई का मार्ग दिखाने वाले साहित्य का प्रकाशन और वितरण कर रही है  |

गीता प्रेस गोरखपुर का विरोध एक गहरे षड्यंत्र का हिस्सा है | चूँकि कम्युनिस्ट लोग भारतीय धर्म,भारतीय संस्कृति और भारतीय जीवन मूल्यों के धुर विरोधी हैं | इसलिये वे इसके जानी दुश्मन हैं |  धर्मान्तरण में संलग्न ईसाई और इस्लामिस्ट लोगों का विरोध  तो जग जाहिर है किन्तु कुछ कांग्रेसी नेता इस विरोध का कलंक अपने और अपनी पार्टी के माथे क्यों मढ़ना चाहते हैं ? प्रत्येक हिन्दू कांग्रेसी कार्यकर्त्ता के लिए यह चिंता का विषय है | क्या केवल वोट के लिए ? जयराम रमेश जिस पुस्तक की आड़ में गीताप्रेस को गाँधी जी का विरोधी सिद्ध करना चाहते हैं वास्तव में वह पुस्तक एक झूठ का पुलिंदा है | कम्युनिस्ट पत्रकार अक्षय मुकुल की उस पुस्तक का नाम है ‘गीता प्रेस एंड द मेकिंग ऑफ़ हिन्दू इण्डिया’ इस पुस्तक के शीर्षक से ही स्पष्ट है कि लेखक के भीतर  हिन्दू शब्द के प्रति कितनी नफ़रत भरी हुई है | उसे विश्व के कल्याण के साहित्य में से हिन्दू राष्ट्र बनता दिखाई दे रहा है |कम्युनिस्ट  लोग जानते हैं  कि यह प्रेस निस्वार्थ भाव से हिन्दू धर्म और मानवता  की सेवा में लगी हुई है | यह गीता,रामायण,उपनिषद जैसे लोक कल्याण और विश्व शांति के महान ग्रंथों को सस्ते मूल्य पर घर-घर पहुँचा कर भारतीय समाज को उसकी जड़ों से जोड़े हुए है | इसलिए पहले इसे बदनाम करो फिर विवादित करो और बाद में प्रतिबंधित कराने की मांग करो | जैसे भी हो इस महान कार्य को वाधित करो इसलिए यह सब  सोची समझी रणनीति के अनुसार किया जा रहा है |

जैसा कि कम्युनिस्ट लेखक फर्जी इतिहास लिखने और झूठे नेरेटिव गढ़ने में सिद्धहस्त होते  हैं ठीक वैसे ही इस पुस्तक में कई फर्जी और काल्पनिक तथ्यों का सहारा लिया गया है |  इस पुस्तक में कहा गया है कि गाँधी जी की मृत्यु पर कल्याण के अंकों में गाँधी जी को कोई स्थान नहीं दिया गया | डॉ.संतोष कुमार तिवारी ने एक आलेख में इस आरोप को  निराधार सिद्ध करते हुए लिखा है कि उस दिन शाम तक (गांधी जी की हत्या होने से पूर्व) ‘कल्याण’ की बहुत सी प्रतियाँ भेजी जा चुकी थीं | शाम को लगभग 5 बजे गाँधी जी की दुखद हत्या हुई इसके बाद  कल्याण की शेष प्रतियाँ रोक कर सभी में तीन पेज अलग से जोड़कर पाठकों को भेजे गए | इनमें पहले पेज पर गाँधी जी का चित्र था शेष दो पृष्ठों पर गाँधी जी को श्रद्धांजलि दी गईं थीं | इनमें से एक श्रद्धांजलि स्वयं हनुमान प्रसाद पोद्दार जी ने लिखी थी |  डॉ.तिवारी ने इस पुस्तक के अनेक आरोपों को झूठा सिद्ध कर दिया है | जैसा कि मैंने पूर्व में भी कहा है कि कम्युनिष्ट झूठे नेरेटिव सेट करने  में माहिर होते हैं इसलिये इस पुस्तक में भी ऐसे कई झूठ रचे गए हैं | पूरी दुनिया जानती है कि गीता प्रेस को खड़ा करने में अनगिनत महापुरुषों ने अपना जीवन होम दिया | किसी से विज्ञापन मत लेना यह सुझाव  तो स्वयं गाँधी जी ने गीता प्रेस को दिया था | जिसका आज तक पालन किया जा रहा  है | गीता प्रेस के न्यास बोर्ड ने स्पष्ट कर दिया है कि प्रेस केवल सम्मान ग्रहण करेगी एक करोड़ की राशि नहीं, जबकि कुछ लोग सम्मान तो लौटा देते हैं राशि नहीं |

डॉ. रामकिशोर उपाध्याय

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