टेक्नो फ्रेंडली संवाद से स्वच्छता

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मनोज कुमार
देश के सबसे स्वच्छ शहर के रूप में जब इंदौर का बार-बार जिक्र करते हैं तो मध्यप्रदेश को अपने आप पर गर्व होता है, मध्यप्रदेश के कई शहर, छोटे जिलों को भी स्वच्छ भारत मिशन के लिए केन्द्र सरकार सम्मानित कर रही है. साल 2022 में मध्यप्रदेश ने देश के सबसे स्वच्छ राज्य का सम्मान प्राप्त किया। स्वच्छता का तमगा एक बार मिल सकता है लेकिन बार-बार मिले और वह अपनी पहचान कायम रखे, इसके लिए सतत रूप से निगरानी और संवाद की जरूरत होती है. कल्पना कीजिए कि मंडला से झाबुआ तक फैले मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में बैठकर कैसे निगरानी की जा सकती है? कैसे उन स्थानों में कार्य कर रही नगरपालिका,  नगर परिषद और नगर निगमों से संवाद बनाया जा सकता है? एकबारगी देखें तो काम मुश्किल है लेकिन ठान लें तो सब आसान है. और यह कहने-सुनने की बात नहीं है बल्कि प्रतिदिन मुख्यालय भोपाल में बैठे आला-अधिकारी मंडला हो, नीमच हो या झाबुआ, छोटे शहर हों या बड़े नगर निगम, सब स्थानों का निरीक्षण कर रहे हैं और वहां कार्य करने वाले अधिकारी-कर्मचारियों, सफाई मित्रों (मध्यप्रदेश में सफाई कर्मियों को अब सफाई मित्र कहा जाता है) के साथ कई मर्तबा आम आदमी से भी संवाद करते हैं. ऐसी कवायद करने वाला देश का पहला राज्य मध्यप्रदेश है जिसने टेक्नोफ्रैंडली बनकर निरीक्षण और संवाद को नियमित बनाये रखा है. स्थानीय निकाय से मिली जानकारी के मुताबिक अब तक चार सौ से अधिक घंटे का स्वच्छता संवाद आयोजित हो चुका है और यह सिलसिला प्रतिदिन जारी है। इसके अतिरिक्त दिन में भी अनेक स्थानों से लोगों से सीधे चर्चा और अवलोकन का सिलसिला बना रहता है.  
कायदे से देखा जाए तो इस पूरी प्रक्रिया में पूरा लाव-लश्कर चाहिए और भारी-भरकम बजट लेकिन ‘दुनिया कर लो मु_ी’ में की तर्ज पर अधिकारी अपने-अपने लैपटॉप पर और प्रदेश भर के अधिकारी कर्मचारी लैपटॉप, डेस्कटॉप या मोबाइल पर एक-दूसरे के साथ जुड़ जाते हैं. किस शहर में स्वच्छता का आलम क्या है और वे क्या नया कर रहे हैं, यह दूसरे लोगों को भी पता चलता है. ऐसे ही अन्य लोगों के पास स्वच्छता को लेकर क्या प्लानिंग है, सब आपस में आइडिया शेयर करते हैं. इस टेक्नोफ्रेंडली प्रक्रिया ने शून्य बजट पर एक बड़े काम को बिना अतिरिक्त तनाव दिये पूरा किया जा रहा है. इसे आप कह सकते हैं कि टेक्नोफ्रेंडली होना मध्यप्रदेश की इस नयी स्वच्छता व्यवस्था के लिए एक वरदान की तरह है. मध्यप्रदेश में 413 नगर निगम, नगर पालिका और नगर परिषद हैं और इनमें हर दिन तीन चार सौ अधिकारी-कर्मचारी ऑनलाईन होते हैं. यह व्यवस्था अपने आप में अनूठा है और अन्य विभागों के लिए भी रोल मॉडल बन गया है.  
इसका परिणाम यह है कि अलसुबह से पूरे प्रदेश के नगर निगमों, नगर पालिका और नगर परिषदों के अधिकारी-कर्मचारी सक्रिय हो जाते हैं. इसके बाद संवाद का सिलसिला शुरू होता है. पिछले दिनों नजर में आयी कमियों को दूर किया गया कि नहीं किया गया और आने वाले दिनों में स्वच्छता के लिए क्या प्लान किये जा रहे हैं. सबके पास अपनी-अपनी प्लानिंग होती है और आला अफसरों के सवालों के जवाब भी. सबकुछ इतने सहज और सरल ढंग से हो रहा है कि जो काम कल तक पहाड़ की तरह लगता था, वह आज राई में बदल गया है. एक किस्म से सबकी दिनचर्या में शामिल हो गया है. यही नहीं, सुबह की मीटिंग के बाद दिन में जब किसी को जरूरत लगे बेखटके वह सवाल कर समाधान पा सकता है. इस टेक्नोफ्रेंडली सिस्टम में दिक्कतें कम और सुविधाएं अधिक हैं.
इस बारे में आयुक्त, नगरीय प्रशासन श्री भरत यादव बताते हैं कि ‘प्रधानमंत्री जी ने जब देश में स्वच्छता अभियान का श्रीगणेश किया तो हम सबके लिए एक चुनौती थी. दूसरा स्वच्छ सर्वेक्षण देश के शहरों में स्वच्छता का काम्पीटिशन है, तो हमें हर लिहाज से बेहतर बनना होगा। फिर चाहे वो जमीनी व्यवस्था हो, अधोसंरचना हो या हमारा निगरानी और समाधान तंत्र। एक बार की जीत से उपजे उत्साह को हमने ताकत बनाया और तय किया गया कि सभी भागीदारों से नियमित संवाद किया जाए और उनकी समस्याओं के तत्काल समाधान भी दिए जाएं। ऐसे में हमें स्वच्छता संवाद का एक सुगम रास्ता सूझा. हमने मुख्यालय के अधिकारियों से विमर्श किया और हमारी टीम ने इसे सफल बना दिया। कई तरह के सुझाव आए और कई तरह की दिक्कतों का भी उल्लेख किया गया. हमारी टीम ने इतने बड़े प्रकल्प को शून्य बजट में प्लान किया, यह हमारी बड़ी सफलता है। सो हमने संभागवार अधिकारियों को जोड़ा और संवाद का सिलसिला शुरू किया.’ अब इस नियमित संवाद में आंतरिक चर्चा के अलावा नागरिकों और जनप्रतिधियों से भी शहरी स्वच्छता पर उनका फीडबैक लिया जाता है।
आज आहिस्ता आहिस्ता इस माध्यम से  प्रदेश के सभी छोटे बड़े नगरीय निकायों को टेक्नोफ्रैंडली सिस्टम का हिस्सा बना लिया और स्वच्छता अभियान की मॉनिटरिंग राजधानी भोपाल से नियमित रूप से की जा रही है। अब तक 400 घंटों से अधिक के 190 से अधिक संवाद सत्रों का आयोजन किया जा चुका है। संभवत: मध्यप्रदेश इकलौता राज्य है जिसने स्वयं आगे बढक़र टेक्नोफ्रेंडली सिस्टम को बनाया और इसके पॉजिटिव रिजल्ट हासिल किया.

इस बारे में मिशन संचालक स्वच्छ भारत मिशन शहरी श्री अवधेश शर्मा का कहना है कि स्वच्छता अभियान में प्रशासनिक पहल की कसावट जितना जरूरी है, उतना ही जरूरी है नागरिकों की सहभागिता। हम इसी टेक्नोफ्रैंडली सिस्टम के माध्यम से संवाद कर उन्हें जागरूक करने का प्रयास कर रहे हैं।  हम स्वच्छता के लिए बेहतर कार्य करने वाले व्यक्ति और संस्था को रोल मॉडल के रूप में प्रदेश के समस्त स्थानीय निकायों के बीच रखेंगे जिससे लोगों में प्रतिस्पर्धा की भावना उत्पन्न हो और प्रदेश को भविष्य में भी बेहतर परिणाम मिलें।
इस प्रकल्प को क्रियान्वित करने वाली सलाहकार टीम केपीएमजी का कहना है कि टेक्नोफ्रेंडली सिस्टम की सबसे पहले जरूरत होती है समय की पाबंदी. और जब हम स्वच्छता जैसे विषय पर पहल करते हैं तो हम सब जानते हैं कि अलसुबह सफाई का कार्य होता है. जब हम टेक्नोफ्रेंडली सिस्टम में वीडियो कॉल पर सबकुछ अपनी आंखों से देखते हैं तो यह भ्रम भी दूर हो जाता है कि जो कुछ बताया जा रहा है, वह हकीकत में हो भी रहा है कि नहीं. यानि इस सिस्टम में हेरफेर की गुंजाईश बची नहीं है ।  इस प्रकार यह स्वच्छता संवाद ज्ञान प्रबंधन और क्षमतावर्धन का एक सशक्त माध्यम बनकर उभरा है।  
मध्यप्रदेश में स्थानीय निकाय के इन प्रयासों ने स्वच्छता अभियान को ना केवल नया स्वरूप दिया है बल्कि उस ढर्रे को तोडऩे का प्रयास किया है जिसमें बेहिसाब खर्च करने के बाद भी परिणाम शून्य आता था. टेक्नोफ्रेंडली सिस्टम से व्यवस्था को गति मिली है और अतिरिक्त बजट से भी विभाग मुक्त है. इसे एक पुरानी कहावत से जोड़ सकते हैं जिसमें कहा जाता था कि आम के आम, गुठली के दाम. अर्थात नए जमाने की टेक्रनालॉजी की आप चर्चा करते हैं लेकिन उसे अमलीजामा पहनाना नहीं आता था. स्वच्छ भारत मिशन, शहरी मध्यप्रदेश ने एक रास्ता दिखाया है कि कैसे आम आदमी के टैक्स के पैसों का सदुपयोग किया जा सकता है.

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मनोज कुमार
सन् उन्नीस सौ पैंसठ के अक्टूबर माह की सात तारीख को छत्तीसगढ़ के रायपुर में जन्म। शिक्षा रायपुर में। वर्ष 1981 में पत्रकारिता का आरंभ देशबन्धु से जहां वर्ष 1994 तक बने रहे। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से प्रकाशित हिन्दी दैनिक समवेत शिखर मंे सहायक संपादक 1996 तक। इसके बाद स्वतंत्र पत्रकार के रूप में कार्य। वर्ष 2005-06 में मध्यप्रदेश शासन के वन्या प्रकाशन में बच्चों की मासिक पत्रिका समझ झरोखा में मानसेवी संपादक, यहीं देश के पहले जनजातीय समुदाय पर एकाग्र पाक्षिक आलेख सेवा वन्या संदर्भ का संयोजन। माखनलाल पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय, महात्मा गांधी अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी पत्रकारिता विवि वर्धा के साथ ही अनेक स्थानों पर लगातार अतिथि व्याख्यान। पत्रकारिता में साक्षात्कार विधा पर साक्षात्कार शीर्षक से पहली किताब मध्यप्रदेश हिन्दी ग्रंथ अकादमी द्वारा वर्ष 1995 में पहला संस्करण एवं 2006 में द्वितीय संस्करण। माखनलाल पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय से हिन्दी पत्रकारिता शोध परियोजना के अन्तर्गत फेलोशिप और बाद मे पुस्तकाकार में प्रकाशन। हॉल ही में मध्यप्रदेश सरकार द्वारा संचालित आठ सामुदायिक रेडियो के राज्य समन्यक पद से मुक्त.

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