ग्लोबल वार्मिंग की 1.5°C की सीमा ख़तरे में, सरकारों का फ़ोस्सिल फ्यूल उत्पादन दोगुना करने का इरादा 

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संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रकाशित एक प्रमुख नई रिपोर्ट में पाया गया है कि दुनिया के विभिन्न देशों की सरकारें 2030 में ग्लोबल वार्मिंग में वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लिये निर्धारित अधिकतम सीमा से लगभग 110% अधिक जीवाश्म ईंधन का उत्पादन करने की योजना बना रही हैं। दो डिग्री सेल्सियस के लिहाज से देखे तो वे 69% अधिक जीवाश्म ईंधन का उत्पादन करने की तैयारी कर रही हैं। 

ऐसा तब है जब 151 राष्ट्रीय सरकारों ने नेट जीरो उत्सर्जन का लक्ष्य हासिल करने का वादा किया है और ताज़ातरीन पूर्वानुमानों से पता चलता है कि नई नीतियों के बगैर भी वैश्विक कोयला, तेल और गैस की मांग इस दशक में चरम पर होगी। कुल मिलाकर सरकारी योजनाओं से 2030 तक वैश्विक कोयला उत्पादन में वृद्धि होगी और वैश्विक तेल और गैस उत्पादन में कम से कम 2050 तक इजाफा होगा। इससे वक्त के साथ जीवाश्म ईंधन उत्पादन का अंतर बढ़ता जाएगा। 

रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्षों में निम्नलिखित शामिल हैं: 

 ●           कार्बन कैप्चर, भंडारण और कार्बन डाइऑक्साइड हटाने के जोखिमों और अनिश्चितताओं के मद्देनजर देशों को 2040 तक कोयला उत्पादन और उपयोग को लगभग पूरी तरह से समाप्त करने का लक्ष्य रखना चाहिए। साथ ही 2050 तक तेल और गैस के उत्पादन तथा उपयोग में 2020 के स्तरों से कम से कम तीन-चौथाई की कमी लानी चाहिए। 

●            दुनिया के 20 में से 17 देशों ने नेट जीरो उत्सर्जन हासिल करने का वादा किया है और कई ने जीवाश्म ईंधन उत्पादन गतिविधियों से उत्सर्जन में कटौती करने के लिए पहल शुरू की है। मगर किसी ने भी ग्लोबल वार्मिंग में वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के अनुरूप कोयला, तेल और गैस उत्पादन को कम करने के लिए प्रतिबद्ध नहीं किया है। 

●            जीवाश्म ईंधन से छुटकारा पाने की ज्यादा क्षमता रखने वाली सरकारों को प्रदूषण कार्य तत्वों के उत्सर्जन में कटौती का ज्यादा महत्वाकांक्षी लक्ष्य रखना चाहिए और सीमित संसाधनों वाले देशों में रूपांतरण की प्रक्रियाओं में मदद करनी चाहिए। 

स्टॉकहोम एनवायरनमेंट इंस्टीट्यूट (एसईआई), क्लाइमेट एनालिटिक्स, ई3जी, इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट (आईआईएसडी) और यूएन एनवायरमेंट प्रोग्राम (यूएनईपी) द्वारा तैयार की गई ‘प्रोडक्शन गैप रिपोर्ट’ पेरिस समझौते के तापमान लक्ष्य के अनुरूप निर्धारित वैश्विक स्तर के मुकाबले कोयला, तेल और गैस के सरकार की योजनाबद्ध और अनुमानित उत्पादन का आकलन करती है। 

वैज्ञानिकों के मुताबिक जुलाई 2023 अब तक का सबसे गर्म महीना दर्ज किया गया और यह संभवतः पिछले एक लाख 20 हजार 120,000 वर्षों में सबसे गर्म महीना था। दुनिया भर में घातक हीटवेव, सूखा, जंगल की आग, तूफान और बाढ़ से जीवन और आजीविका को नुकसान हो रहा है जिससे यह साफ हो गया है कि यह जलवायु परिवर्तन इंसान की हरकतों की देन है। वैश्विक स्तर पर कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन, जिसमें से लगभग 90% जीवाश्म ईंधन से होता है वह 2021-2022 में रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गया। 

यूएनईपी की एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर इंगर एंडरसन ने कहा, “जीवाश्म ईंधन उत्पादन का विस्तार करने की सरकारों की योजनाएं नेट जीरो उत्सर्जन का लक्ष्य हासिल करने के लिए जरूरी ऊर्जा रूपांतरण को कमजोर कर रही हैं। साथ ही वे आर्थिक जोखिम पैदा कर रही हैं और मानवता के भविष्य के सामने सवालिया निशान लगा रही हैं। स्वच्छ और दक्षतापूर्ण ऊर्जा के साथ अर्थव्यवस्थाओं को मजबूत बनाना ऊर्जा गरीबी को खत्म करने और साथ ही साथ उत्सर्जन में कमी लाने का एकमात्र तरीका है।” 

उन्होंने कहा, “देशों को सीओपी28 से शुरू करते हुए भविष्य में अशांति को कम करने और इस ग्रह पर प्रत्येक व्यक्ति को लाभ पहुंचाने के लिए कोयला, तेल और गैस के इस्तेमाल को चरणबद्ध ढंग से खत्म करने के एक प्रबंधित और न्यायसंगत तरीके को लेकर एकजुट होना चाहिए।” 

साल 2023 की प्रोडक्शन गैप रिपोर्ट 20 प्रमुख जीवाश्म-ईंधन उत्पादक देशों के लिए नए विस्तारित प्रोफाइल पेश करती है। इनमें ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, कनाडा, चीन, कोलंबिया, जर्मनी, भारत, इंडोनेशिया, कजाकिस्तान, कुवैत, मैक्सिको, नाइजीरिया, नॉर्वे, कतर, रूसी फेडरेशन, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, संयुक्त अरब अमीरात, यूनाइटेड किंगडम ऑफ़ ग्रेट ब्रिटेन और उत्तरी आयरलैंड और अमेरिका शामिल हैं। इन प्रोफ़ाइल से जाहिर होता है कि इनमें से ज्यादातर देशों की सरकारें जीवाश्म ईंधन उत्पादन के लिए महत्वपूर्ण नीति और वित्तीय सहायता प्रदान करना जारी रखे हुए हैं। 

रिपोर्ट की मुख्य लेखक और एसईआई के वैज्ञानिक प्लॉय अचकुलविसुत ने कहा, “हमने पाया है कि कई सरकारें जीवाश्म गैस को एक आवश्यक ‘ट्रांज़िशन’ ईंधन के रूप में बढ़ावा दे रही हैं, लेकिन बाद में इससे छुटकारा पाने की कोई स्पष्ट योजना नहीं है। मगर, विज्ञान कहता है कि हमें वैश्विक कोयला, तेल और गैस के उत्पादन में कमी लाने का सिलसिला शुरू करना चाहिए। साथ ही साथ अक्षय ऊर्जा को बढ़ावा देना चाहिए, सभी स्रोतों से मीथेन उत्सर्जन को कम करने के साथ-साथ अन्य सभी कदम उठाने चाहिए जिनसे ग्लोबल वार्मिंग में बढ़ोत्तरी को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने की उम्मीद कायम रहे।” 

जलवायु संकट की बुनियादी वजह होने के बावजूद हाल के वर्षों तक जीवाश्म ईंधन का मुद्दा अंतरराष्ट्रीय जलवायु वार्ताओं से काफी हद तक नदारद रहा है। वर्ष 2021 के अंत में आयोजित सीओपी26 में सरकारों ने “कोयले से बेरोक-टोक बनने वाली बिजली के उत्पादन को चरणबद्ध तरीके से बंद करने और जीवाश्म ईंधन पर दी जाने वाली सब्सिडी को धीरे-धीरे खत्म करने” की दिशा में प्रयासों में तेजी लाने के लिए प्रतिबद्धता जताई, हालांकि वे सभी जीवाश्म ईंधन के उत्पादन के मामले से निपटने के लिए सहमत नहीं थे। 

रिपोर्ट के प्रमुख लेखकों में शामिल और एसईआई यूएस सेंटर के निदेशक माइकल लाजरस ने कहा, “सीओपी28 एक ऐसा निर्णायक क्षण हो सकता है जहां सरकारें आखिरकार सभी तरह के जीवाश्म ईंधन को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने के लिए प्रतिबद्ध हों और एक प्रबंधित और न्यायसंगत रूपांतरण को सुविधाजनक बनाने में उत्पादकों की भूमिका को स्वीकार करती हों। जीवाश्म ईंधन उत्पादन से मुक्ति पाने की सबसे ज्यादा क्षमता वाली सरकारें अन्य देशों को भी ऐसा करने में मदद करने के लिए वित्त और सहायता प्रदान करते हुए ऐसा करने की सबसे बड़ी जिम्मेदारी निभाएं।” 

30 से अधिक देशों के 80 से ज्यादा शोधकर्ताओं ने विश्लेषण और समीक्षा में योगदान दिया। इस कार्य में कई विश्वविद्यालय, थिंक टैंक और अन्य अनुसंधान संगठन भी शामिल थे। 

कुछ प्रतिक्रियाएँ 

“इस सदी के मध्य तक हमें कोयले को इतिहास की किताबों तक सीमित करना होगा। साथ ही तेल और गैस उत्पादन में कम से कम तीन चौथाई की कटौती करनी होगी। यह जीवाश्म ईंधन को पूरी तरह से चलन से बाहर करने के लिए जरूरी है। फिर भी जलवायु को लेकर अपने वादों के बावजूद सरकारें एक गंदे, मरते हुए उद्योग में और ज्यादा पैसा लगाने की योजना बना रही हैं। वह भी तब जब एक समृद्ध स्वच्छ ऊर्जा क्षेत्र में अनंत अवसर हैं। आर्थिक उन्माद के शीर्ष पर यह हमारी खुद की बनाई हुई जलवायु आपदा है।” 

– नील ग्रांट, क्लाइमेट एनालिटिक्स में जलवायु एवं ऊर्जा विश्लेषक 

“दुनिया भर की सरकारों द्वारा नेट जीरो के महत्वाकांक्षी लक्ष्यों पर हस्ताक्षर करने के बावजूद वैश्विक स्तर पर कोयला, तेल और गैस का उत्पादन अब भी बढ़ रहा है, जबकि नियोजित कटौती जलवायु परिवर्तन के सबसे बुरे प्रभावों से बचने के लिए पर्याप्त नहीं है। यह सरकारों की बयानबाजी और उनके बीच बढ़ती खाई है।” कार्रवाई न केवल उनके अधिकार को कमजोर कर रही है, बल्कि हम सभी के लिए जोखिम बढ़ा रही है। हम पहले से ही इस दशक में ग्लोबल वार्मिंग में वृद्धि 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के लिए निर्धारित मात्रा की तुलना में 460% अधिक कोयला, 82% अधिक गैस और 29% अधिक तेल का उत्पादन करने की राह पर हैं। सीओपी28 से पहले सरकारों को इस बात को लेकर पारदर्शिता बढ़ानी चाहिए कि वे उत्सर्जन में कटौती के लक्ष्यों को कैसे हासिल करेंगे और इन लक्ष्यों का समर्थन करने के लिए कानूनी रूप से बाध्यकारी उपाय लाएंगे।” 

– एंजेला पिचेरियेलो, वरिष्ठ अनुसंधानकर्ता, आईआईएसडी 

“इस दशक में कोयला, तेल और गैस की मांग अतिरिक्त नीतियों के बिना भी चरम पर है। इससे स्पष्ट है कि स्वच्छ ऊर्जा विकास और जीवाश्म ईंधन में गिरावट नई आर्थिक वास्तविकता में से एक बन रही है। फिर भी सरकारें अपरिहार्य ऊर्जा रूपांतरण के लिए योजना बनाने में विफल हो रही हैं। कोयले, तेल और गैस की वैश्विक मांग कम होने के बावजूद नए जीवाश्म ईंधन उत्पादन में निवेश जारी रखना सबसे सस्ते उत्पादकों को छोड़कर सभी के लिए एक निकट अवधि का आर्थिक जुआ है। हम जब तक जीवाश्म ईंधन के विस्तार को नहीं रोकेंगे तब तक जलवायु को होने वाली क्षति और भी ज्यादा बढ़ जाएगी। अब समय आ गया है कि सरकारें स्वच्छ ऊर्जा रूपांतरण को अपने नियंत्रण में लें और जलवायु के लिहाज से सुरक्षित दुनिया के लिए जो चीजें जरूरी हैं उनके अनुरूप अपनी नीतियों को ढालें।” 

– कैटरीन पेटरसन, ई3जी में सीनियर पाॅलिसी एडवाइजर 

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