विरत करते घनेरें वन

forest

कही कुछ था जो घट रहा था

सतत, निरंतर।

अहर्निश चल रहीं श्वासों में

सतत उपजतें जा रहें थे कुछ घनेरें वन

किन्तु जीवन की अविरलता में

उन अनचाहें उपजें वनों को देखना

उन वनों के निर्ब्रह्म रूप के साथ एकाकार हो जानें जैसा होता था।

निरंजन रूपों में अवतरित होतें वे

घनेरें वन

बहुत सी भावनाओं को

उठाये रहतें थे हौले हौले।

अपनें परिपक्व रूप में भी

वे बिम्बित करतें रहते थे

नर्म हरी घास के स्वभाव को।

परिपक्वता के अहसास को

खारिज करतें वे वन

विचारों के साथ

करतें रहतें थे अठखेलियाँ।

उन विशालकाय वनों के सामनें

छोटे छौनें ही होतें थे

वे विचार।

अपनी समग्रता का बोझ लिए वे

नहीं कर पातें थे अठखेलियाँ

और

न ही हो पाते थे

कुछ पलों के लिए विरत अपनें मूल स्वभाव से।

अकस्मात उपजें उन घनेरें वनों में

राह भूलें यायावर की तरह

खोजनें लगतें थे

अपनी साँसों का विकल होता संगीत।

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