-अतुल तारे
यूनियन कार्बाइड से 2 दिसम्बर 1984 की रात में जिस जहरीली गैस का रिसाव हुआ, वह आज भी दम घोट रही है। बल्कि यूं कहें तो ज्यादा सही होगा कि कारखाने से निकली गैस तो कम जहरीली थी, देश की समूची व्यवस्था से जो सडांध आ रही हैं, वह वाकई दम तोडने वाली है। देश अब तक तो अफजल और कसाब को जीवित देखकर ही शार्मिंदा था। पर अब तसल्ली है कि कम से कम उन्हें फांसी की सजा तो इस व्यवस्था ने सुनाई। लेकिन यूनियन कार्बाइड के प्रमुख वॉरेन एंडरसन के कांड ने विश्वास की चूलें ही हिला दी।
क्या कोई यह कल्पना भी कर सकता है कि पच्चीस हजार आदमियों को रात में हमेशा की नींद सुलाने वालें और इससे कई गुना अधिक जिंदगियों को जीवन भर अपाहिज बनाने के आरोपी को भारत सरकार लगभग राजकीय अतिथि का दर्जा देकर उसकी अमेरिका में सुनिश्चित वापसी की भूमिका अदा करेगी। बहस चल पडी है कि प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह दोषी हैं या तब केन्द्र में विराजमान राजीव गांधी की सरकार। दुर्भाग्य से श्री राजीव गांधी आज इस दुनिया में नहीं हैं और मर्यादा का तकाजा है कि जो आज जीवित ही नहीं है, उस पर सीधा व्यक्तिगत लांछन लगाया जाए। पर चाहे वह अर्जुन सिंह की सरकार हो या केन्द्र में बैठी कांग्रेस सरकार दोनों ने ही जो अक्षम्य एवं जघन्य अपराध किया है, उसे देखकर ऐसा लगता है कि भारतीय दंड संहिता की सारी धाराएं भी एक साथ लगा दी जाए तब भी कम है। पर मामला केवल कांग्रेस को कठघरे में खडा करने तक ही सीमित करना फिर एक राजनीति होगा। गैस पीडितों को इससे न्याय नही मिल पाएगा। कारण अब यह प्रसंग दुर्भाग्य के जिस दिशा की ओर है, वह यही संकेत कर रहा है। कारण फिर एक बार गैस पीडित के नाम पर राजनीति का खेल शुरु हो गया है। अच्छा होगा पक्ष एवं विपक्ष इस मूल विषय से भी अपना ध्यान ओझल न होने दे, और इतना ही नही अमेरिका से चल रहे परमाणु दायित्व विधेयक को लेकर भी फैसले के प्रकाश में आवश्यक संशोधन करें। साथ ही एक बार फिर भारत सरकार को यह जवाब देना ही होगा कि अगर एंडरसन की रिहाई में अमेरिका का दबाव है तो हम क्या वाकई संप्रभू राष्ट्र है? कारण जो तथ्य सामने आ रहे हैं अगर उनमें दशांश भी सत्यता है तो यह वाकई शर्मनाक है। फिर यह मामला अकेले राजीव गांधी की सरकार तक ही सीमित नही है उनके बाद भी देश में कई सरकारें आईं और गई और आज फिर कांग्रेस केन्द्र में है। क्यों नही वॉरेन एंडरसन का मुद्दा अमेरिका से हुई वार्ताओं के दौर में कभी नही उठा? आज देश यह जवाब भी विनम्रतापूर्वक चाहता है। अब भी अवसर है कांग्रेस के दिग्गज नेता घृणित राजनीति का खेल बंद करें और अपने अपराध को स्वच्छ मन से स्वीकार करें। अर्जुन सिंह की चुप्पी-फिर एक राजनीतिक खेल है। आज वे उम्र के उस पडाव पर हैं, जहाँ से उन्हें अब तक से कम वही करना चाहिए जो देश हित में है। वहीं कांग्रेस के तमाम आला नेता अपने-अपने राजनीतिक गणित के लिहाज से बयानबाजी बंद करें। कारण यह तो एक तथ्य है कि दोनों ही स्थानों पर सरकार कांग्रेस की ही थी अत: वह अपने आप को दोषमुक्त कर ही नही सकती। विपक्षी दलों को भी चाहिए कि वह भी अपने आंदोलन की दिशा में गैस पीडितों को इंसाफ सर्वोपरि रखें वरना इतिहास उनका अपराध भी दर्ज करेगा।
अभी तो संयोग से भोपाल के ही विख्यात शायर स्व. दुष्यंत याद आ रहे हैं। वे कह गए है-
-इस सिरे से अब उसे सिरे तक
सब शरीके जुर्म हैं
आदमी या तो जमानत पर
रिहा है या फिर फरार,
आप क्या सोचते हैं?