राजनीति

सरकार भ्रष्ट ही नही झूठी भी है।

शादाब जफर ‘‘शादाब ’’

आज सत्ता के राजनीतिक गलियारो में जो भी राजनीतिक ड्रामा हो रहा है वो सिर्फ और सिर्फ लोकसभा 2014 के चुनाव का कमाल है। ये भारत बंद का शोर, सरकार से सर्मथन वापसी का नाटक, और अंदर ही अंदर सरकार को बचाने के नाम पर जो सौदेबाजी की खिचड़ी मुलायम और मायावती पका रहे है ये सब क्या है क्या देश की जनता नही जानती। जनता सब जानती है पर क्या करे मजबूर है, क्या कहे किस से कहे। क्यो कि राजनीति के इस हमाम में तो सब नंगे है। सरकार रहेगी या जायेगी आज देश के गली मौहल्लो चौराहो पर ये ही चर्च है। पर ममता बनर्जी ने जिस प्रकार सरकार से बढे हुए डीज़ल के दामो, एफडीआई और छः गैस सिल्डेरो पर सर्मथन वापस लेकर अपने मंत्रियो से इस्तीफे दिलाये ये एक बहुत ही बडा कदम कहा जा सकता है। सवाल ये नही कि सरकार अपने ऐलान से पीछे हटे या न हटे पर जिस प्रकार से ममता बनर्जी ने गरीबो के हक में ये फैसला लिया उस से देश के गरीबो अति पिछडे लोगो के दिलो मे ममता के लिये कही न कही ममता जरूर जागी है। और ममता का ये फैसला सौ फीसदी गरीबो के लिये गरीबो के हक में ही माना जायेगा जो आज देश की घटिया राजनीति में बहुत बुरी तरह पिस रहे है।

एफड़ीआई के मुद्दे पर माननीय प्रधानमंत्री जी का ये कहना कि इस से किसान का फायदा होगा गले नही उतरता है। जिस एफडीआई की प्रधानमंत्री पैरवी कर रहे है आखिर वो किस प्रकार देश के लिये फायदे मंद हो सकती है जिस देश में लोग बीस रूपये रोज तक कमाते हो और जिस देश में आधा से ज्यादा जनसंख्या ग्रामीण इलाको में निवास करती हो वहा क्या एफडीआई के अंर्तगत वालमार्ट का स्वागत किया जा सकता है। प्रधानमंत्री का ये कहना कि रूपये पेड़ पर नही उगते बिल्कुल सही है पर जिस प्रकार से रूपये के कार्यकाल में भ्रष्टाचार हुआ और देश के लोगो की खून पसीने की गाढी कमाई काली कमाई बनी उस पर कभी प्रधानमंत्री की नजर क्यो नही गई। टू जी स्पेक्ट्रम घोटाला, राष्ट्रमंडल खेल, घोटाला, कोलगेट घोटाला, क्या इन घोटालो में भ्रष्टाचारियो के लिये सरकार ने पैसा पेड़ पर नही उगाया। आज सरकार देश की आर्थिक स्थिति कमजोर बताकर गरीब से सूखी रोटी भी छीनने के लिये तैयार है पर जब 2006 से 2011-12 तक मनमोहन की सरकार ने देश के कारपोरेट घरानो को इन्कम टैक्स, एक्साइज और कस्टम ड्यूटी में छूट देकर कुल इक्कीस लाख पच्चीस हजार तेइस करोड़ रूपयो का फायदा पहुॅचाया। 2010-2011 में ही देश के इन कारपोरेट घरानो को 460972 करोड़ रूपये की छूट दी गई। इन में इन्कम टैक्स के 88263 करोड़, एक्साइज ड्यूटी का 198291 करोड़ और कस्टम ड्यूटी का 174418 करोड़ रूपया शामिल हैं नतीजन देश के थैलीशाहो की दौलत में दिन दूना रात चौगना इजाफा हुआ। पर पूरा टैक्स न मिलने से देश की अर्थ व्यवस्था डगमगा गई। जिस का दंड़ पेट्रोल, डीज़ल, और एलपीजी के रेट बढा कर आम आदमी पर सरकार ने लाद दिया।

देश में आर्थिक सुधार के नाम का ढोंग रच कर यूपीए सरकार ने एक बार फिर गरीब की कमर मंहगाई से तोड़ दी। पिछले दिनो जिस प्रकार से सरकार ने मल्टी ब्रांड़ रिटेल में 51 प्रतिशत प्रत्यक्ष विदशी निवेश (एफडीआई) को मंजूरी दी उस से कब कितना देश का भला होगा ये तो वक्त बतायेगा। पर इस वक्त सरकार खुद संकट में आ गई है ? ऐसा लोग कह रहे है। पर सरकार पूरी तरह मुतमईन है कि उसे कोई संकट नही वो जानती है कि भारतीय राजनीति में पद और पैसे के लालची ऐसे कई राजनेता है जो अपने फायदे के लिये सरकार के एक इशारे पर दुम हिलाने लगेगे। ये ही कारण है कि यूपीए 2 ने एक बार फिर डीजल, रसोई गैस में बढोतरी कर मंहगाई डायन को तगडी खुराक देने के साथ ही आम आदमी की रही सही जान निकालने के बाद डीज़ल, रसोई गैस की कीमतो में कि गई वृद्धि पर समाचार पत्रो के माध्यम से सार्वजनिक सफाई पेश करते हुए अपने इस फैसले को जायज ठहराने की झूठी कोशिश की। केंन्द्रीय पेट्रोलियम एंव प्राकृतिक गैस मंत्रालय की ओर से जारी एक विज्ञापन की शक्ल मे अपील देश के सभी प्रमुख समाचार पत्रो में देकर केन्द्र सरकार ने लोगो के दिलो में डीजल, रसोई गैस में बढोतरी से धधक रही आग पर पानी डालने की कोशिश की। सरकार ने सफाई देते हुए कहा है कि पेट्रोलियम उत्पादो के मूल्य वृद्धि से नही बचा जा सकता था। सरकार ने विज्ञापन के द्वारा इस के दस कारण भी गिनाए है। पेट्रोलियम कंपनियो के नुकसान का कर्थित तौर पर रोना रोने वाली कंग्रेस सरकार या प्रधानमंत्री क्या ये नही जानते कि देश की पैट्रोलियम कंपनिया नुकसान में है या चॉदी काट रही है। प्रधानमंत्री ने राष्ट्र के नाम अपने संदेश में कहा कि आज डीजल पर 17 रूपये बढाने की जरूरत है पर सरकार ने केवल पॉच रूपये ही बढाये। सरकार जिस पेट्रोल डीज़ल पर सब्सिड़ी रोना रो रही है उस की हकीकत सरकार को कटघरे में खडा करती है। पिछले दिनो पेट्रोल का दाम बढाने से पहले भी तेल कंपनिया 42 रूपये की लागत वाला पेट्रोल 70 रूपये में बेच रही थी अब भी तेल कंपनिया 46 रूपये की कीमत वाला पेट्रोल 72 से 75 रूपये प्रति लीटर तक बेच रही है। तो फिर आखिर इन उत्पादो पर सब्सिडी कैसे हुए। डीज़ल और एलपीजी पर जो कोहराम सरकार ने मचाया उस की भी हकीकत कुछ ऐसी ही है। सब्सिडी के नाम पर 49-53 रूपये में प्रति एक लीटर डीजल मिल रहा है जब कि रिफाइनिंग से लेकर सारे कॉस्ट मिलाकर भी इस वक्त डीजल 42 रूपये लीटर बैठता है। सन् 2006 से अगर देश की पेट्रोलियम कंपनियो की आर्थिक स्थिति पर नजर डाले तो यूपीए सरकार बनने के बाद से आज तक प्रधानमंत्री मनमोहन सिह जी के कार्यकाल में जितनी बार पेट्रोल के दाम बढे और जितना इन कंपनियो ने मुनाफा कमाया वो एक रिकॉड़ है। आज भी देश की कोई पेट्रोलियम कंपनी ऐसी नही जो हर साल करोड़ो रूपये मुनाफे के न कमाती हों।

वर्श 2011 के इन आयल कंपनियो के घटे और नुकसान पर नजर डाले तो एचपीसीएल ने तकरीबन 1539 करोड़, इंडियन आयल ने 7445 करोड़ और बीपीसीएल ने 1547 करोड़ का षुद्व मुनाफा अर्जित किया था। गरीबो की सरकार होने का दावा करने वाली केंन्द्र सरकार क्या ये बता सकती है कि हवाई जहाज में प्रयोग होने वाला एटीएफ तेल क्यो सस्ता है। भारत दुनिया में एक ऐसा अकेला देश है जहां सरकार की भ्रामक नीतियो के कारण विमान में प्रयोग होने वाला एयर टरबाइन फ्यूल यानी एटीएफ पेट्रोल से सस्ता है। दिल्ली में एटीएफ और पेट्रोल में सिर्फ तीन रूपये का अंतर है। नागपुर और देश के कई अन्य शहरो में तो हवाई जहाज में प्रयोग होने वाला ये एटीएफ तेल पेट्रोल से 15 रूपये तक सस्ता है। इस सब को क्या समझा जाये। आखिर कहा गया कांग्रेस का वो नारा जिसे 2005-06 में कांग्रेस ने लगाया था ‘‘कांग्रेस का हाथ गरीब के साथ’’ आज ये नारा पूरी तरह बदल गया आज अब ये नारा कुछ यू हो गया है ‘‘कांग्रेस और मनमोहन का हाथ थैली शाहो के साथ’’।

सवाल ये उठता है की देश की गिरती अर्थ व्यवस्था को ऊपर लाने के लिये सरकार का ध्यान बार बार देश के नागरिको को मिलने वाली तथाकर्थित सब्सिड़ी पर ही क्यो जाता है। आज देश की संसद कीं कैंटीन में सासदो को खाने नाश्ते पर बहुत बड़ी सब्सिडी दी जाती है। बिना वजह देश के राजनेताओ की सुरक्षा पर करोडो रूपया खर्च किया जाता है। इन के काफिलो के साथ 100 से लेकर 200-250 गाड़ियो का काफिला सरकारी खर्च पर देश की अर्थ वयवस्था को चूना लगा रहा है आखिर सरकार यहा क्यो चाबुक नही चलाती सकार को ये भी सोचना होगा।