करीब एक महीने से भी ज्यादा के समयअंतराल में उत्तराखंड में जो चुनावी हलचल थी वो 30 जनवरी के मतदान के बाद थम सी गयी है। कुल 788 उम्मीदवारों के भाग्य का फैसला राज्य की जनता ने ईवीएम में बंद कर दिया है।
प्रदो में विधानासभा चुनाव के दौरान उम्मीदवारों द्वारा किये गए चुनावी घोषणाओं का जनता पर क्या असर हुआ ये तो 6 मार्च को होने वाले मतगणना के बाद ही साफ हो पायेगा। इन सब के बीच राज्य में सरकार बनाने व सत्ता हथियाने का दावा करने वाले प्रमुख राजनीतिक दल चुनावी गणित को सुलझाने में लग गये हैं। ऑकड़े जुटाने और मतदाताओं के बीच अपनी पैठ बनाने के क्रम में चुनावी मुद्दों से लबरेज नेताजी को जनता के जवाब का इंतजार है।
हालांकि, उत्तराखंड में पिछले कुछ दिनों के दौरान सत्ता परिवर्तन की जो बयार बही थी उसने राज्य में बीजेपी के जमे हुये पैर को भी हिला दिया है। वहीं कांग्रेस ने बीजेपी के इस कमजोरी का फायदा उठाकर अपनी गहरी पैठ बनाने की पूरी कोशिश की है। कांग्रेस ने बीजेपी सरकार पर घोटाले और राज्य में स्थिर विकास की गति, जैसे आरोप लगाकर अपने वोट बैक को और मजबूत करने का काम किया है।
वहीं बीजेपी ने अपनी तरफ से इन आरोपो को बेबुनियाद करार देते हुए इसे कांग्रेस द्वारा चुनावी स्टंट बताया और प्रदो की जनता के बीच अपने भरोसे और विश्वास को भर दम जताने की भरपूर कोशिश की। मगर वोट की राजनीति में जनता को समझना अब आसान नहीं रह गया है। इस क्रम में राजनीतिक दलों का अपना समीकरण उनके गणित को बिगाड़ सकता है। ताजा हालात में जनता की नब्ज़ को टटोलना वीमार राजनीति के वा की बात नहीं रह गई है।
हाल ही में उत्तराखंड में मतदान का प्रतित 70 फीसदी के पार जाना चुनाव के प्रति मतदाताओं में जागरुकता का एक बड़ा सबूत पो किया है वहीं काफी संख्या में युवाओ की भागीदारी लोकतंत्र के इस महान पर्व की महत्ता को और बढ़ा दिया। चुनाव के प्रति जनता की जागरुकता न केवल उत्तराखंड में देखने को मिली, पंजाब में भी 77 फीसदी मतदान राज्य में लोगों के जोश और अपने अधिकारो के प्रति सजगता को प्रदिर्त किया है।
राजनीतिक दलों के बीच मतो का जोड़-घटाव और कयासो का दौर तब तक जारी रहेगा जब तक की चुनावी नतीजे घोषित न हो जाते हैं। अब हम सभी को इंतजार उस 6 मार्च का होगा जब चुनावी नतीजे घोषित होंगे और सत्ता के सिंहासन पर काबिज होने के लिए सियासी दल एक बार फिर सत्ता के गणित को सुलझाने में व्यस्त दिखाई देंगे।