बच्चों का पन्ना

आसमान में छेद कराते दादाजी

कड़क चाय मुझको पिलवाते दादाजी|

काजू या बादाम खिलाते दादाजी|

 

थाली में भर भर कर चंदा की किरणे,

मुझे चांदनी में नहलाते दादाजी|

 

कभी कभी जब मैं जिद पर अड़ जाता हूं,

तोड़ गगन से लाते तारे दादाजी|

 

मुझको जब भी लगती है ज्यादा गरमी,

बादल से सूरज ढकवाते दादाजी|

 

नहीं बूंद भर पानी जब होता घर में,

आसमान में छेद कराते दादाजी|

 

फिर वे मेघों को आदेश दिया करते,

जब चाहे जब जल गिरवाते दादाजी|