आंखें तो उनके पास हैं लेकिन नज़र नहीं….

इक़बाल हिंदुस्तानी

कैसे वतन जला उन्हें आता नज़र कहीं,

आंखें तो उनके पास हैं लेकिन नज़र नहीं।

 

ज़ालिम है कौन हमको भी यह खूब है पता,

कुछ मस्लहत है चुप हैं मगर बेख़बर नहीं।

 

सच्ची हो बात तल्ख़ हो लेकिन कहेंगे हम,

फ़नकार की क़लम पे किसी का जबर नहीं।

 

हो भाई तो बताओ ये हमले किये हैं क्यों,

सहमे क्यों आप देखा जो मेरा असर कहीं।

 

सारे शहर को कर्फ्यू में क्यों क़ैद कर दिया,

मुजरिम तो चंद लोग हैं सारा नगर नहीं।

 

उनकी शिकस्त में हमको लगा कुछ अजब नहीं,

ताक़त तो उनके पास है लेकिन हुनर नहीं।

 

जलते रहे जो घर तो बचेगा शहर नहीं,

बनता है घरों से शहर शहरों से घर नहीं।

 

राहों की मुश्किलें नहीं हिम्मत की थी कमी,

मंज़िल मिलेगी कैसे जो करते सफ़र नहीं।।

 

 

नोट-मस्लहत-रण्नीति, तल्ख़-कड़वी, फ़नकार-कलाकार, जबर-ज़ोर,

असर-प्रभाव, मुजरिम-अपराधी, शिकस्त-हार, हुनर-विधा।।

 

 

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लेखक 13 वर्षों से हिंदी पाक्षिक पब्लिक ऑब्ज़र्वर का संपादन और प्रकाशन कर रहे हैं। दैनिक बिजनौर टाइम्स ग्रुप में तीन साल संपादन कर चुके हैं। विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में अब तक 1000 से अधिक रचनाओं का प्रकाशन हो चुका है। आकाशवाणी नजीबाबाद पर एक दशक से अधिक अस्थायी कम्पेयर और एनाउंसर रह चुके हैं। रेडियो जर्मनी की हिंदी सेवा में इराक युद्ध पर भारत के युवा पत्रकार के रूप में 15 मिनट के विशेष कार्यक्रम में शामिल हो चुके हैं। प्रदेश के सर्वश्रेष्ठ लेखक के रूप में जानेमाने हिंदी साहित्यकार जैनेन्द्र कुमार जी द्वारा सम्मानित हो चुके हैं। हिंदी ग़ज़लकार के रूप में दुष्यंत त्यागी एवार्ड से सम्मानित किये जा चुके हैं। स्थानीय नगरपालिका और विधानसभा चुनाव में 1991 से मतगणना पूर्व चुनावी सर्वे और संभावित परिणाम सटीक साबित होते रहे हैं। साम्प्रदायिक सद्भाव और एकता के लिये होली मिलन और ईद मिलन का 1992 से संयोजन और सफल संचालन कर रहे हैं। मोबाइल न. 09412117990

1 COMMENT

  1. इकबाल भाई
    आपकी ग़ज़लें और लेखों में जान है . मैं अक्सर आपकी ग़ज़लों को पड़ता हूँ .

    शुभाकांक्षी

    सुरेश महेश्वरी

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