आसमान में छेद कराते दादाजी

कड़क चाय मुझको पिलवाते दादाजी|

काजू या बादाम खिलाते दादाजी|

 

थाली में भर भर कर चंदा की किरणे,

मुझे चांदनी में नहलाते दादाजी|

 

कभी कभी जब मैं जिद पर अड़ जाता हूं,

तोड़ गगन से लाते तारे दादाजी|

 

मुझको जब भी लगती है ज्यादा गरमी,

बादल से सूरज ढकवाते दादाजी|

 

नहीं बूंद भर पानी जब होता घर में,

आसमान में छेद कराते दादाजी|

 

फिर वे मेघों को आदेश दिया करते,

जब चाहे जब जल गिरवाते दादाजी|

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प्रभुदयाल श्रीवास्तव
लेखन विगत दो दशकों से अधिक समय से कहानी,कवितायें व्यंग्य ,लघु कथाएं लेख, बुंदेली लोकगीत,बुंदेली लघु कथाए,बुंदेली गज़लों का लेखन प्रकाशन लोकमत समाचार नागपुर में तीन वर्षों तक व्यंग्य स्तंभ तीर तुक्का, रंग बेरंग में प्रकाशन,दैनिक भास्कर ,नवभारत,अमृत संदेश, जबलपुर एक्सप्रेस,पंजाब केसरी,एवं देश के लगभग सभी हिंदी समाचार पत्रों में व्यंग्योँ का प्रकाशन, कविताएं बालगीतों क्षणिकांओं का भी प्रकाशन हुआ|पत्रिकाओं हम सब साथ साथ दिल्ली,शुभ तारिका अंबाला,न्यामती फरीदाबाद ,कादंबिनी दिल्ली बाईसा उज्जैन मसी कागद इत्यादि में कई रचनाएं प्रकाशित|

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