जन्म व कर्म से महान तथा कृत्रिम महान लोग’

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 किसी विद्वान की उक्ति है कि कुछ लोग जन्म से महान होते हैं, कुछ अपने कर्मों से महान बनते हैं और कुछ महानता को ओढ़ कर महान बनते हैं या उन्होंने महानता को ओढ़ लिया होता है। हमने यह भी उक्ति सुनी है कि मनुष्य जन्म से नहीं कर्म से महान होता है। महाभारत में कर्ण का उदाहरण ले सकते हैं। वह जन्म से अज्ञात माता-पिता का पुत्र होने व रथ के एक सारथी द्वारा पालन-पोषण किये जाने से उनके साथ अन्याय किया जाता रहा। वह ज्ञानी, वीर, बलवान, साहसी और शौर्य की मूर्ति थे। दान देने में अपनी उपमा वह अपने आप थे। इसी कारण उनको महादानी कहकर पुकारा जाता है। उनका एक गुण स्मरण करने योग्य है कि योगेश्वर श्री कृष्ण द्वारा उन्हें यह सत्य बताये जाने पर कि वह माता कुन्ती के पुत्र हैं और युधिष्ठिर, अर्जुन, भीम के बड़े भाई हैं, उन्होंने युद्ध में अपने सहोदर भाईयों का साथ न देकर अपने मित्र दुर्योधन का साथ देना ही धर्म सम्मत समझा था और दिया भी।  उनका यह गुण मित्रता की मिसाल माना जा सकता है। उन्होंने कहीं अपमानित किये जाने पर यह कहा भी है कि जन्म लेना मेरे वश में नहीं था। हां, कर्म मेरे वश में था जितना हो सका मैंने अपने आप को अच्छा ऊंचा बनाया है।

जन्म से कब कौन महान हुआ है, हमारी समझ में नहीं आ रहा। हमारे शास्त्रों का एक वाक्य है कि जन्मना जायते शूद्रा संस्कारत् द्विज उच्यतेअर्थात् जन्म से सभी शूद्र होते हैं और अच्छे संस्कार व कर्मों से मनुष्य द्विज, विद्वान, देव व महापुरूष बनता है। क्या भगवान राम व श्री कृष्ण जन्म से महान थे। हम समझते हैं कि यह जन्म से महान नहीं थे अपितु यह अपने कर्मों से महान हुए हैं। भगवान राम एक राजा के पुत्र थे। पिता ने उन्हें गुरूकुल भेजा, वहां गुरूओं की संगति, शिक्षा तथा अपने पुरूषार्थ व अध्ययन से वह आगे चलकर अपने मर्यादा पुरूषोत्तम व अन्य गुणों से महान बने। इसी प्रकार से योगेश्वर श्री कृष्ण बन्दी गृह में जन्में, पिता वसुदेव उन्हें नन्द के पास छोड़ आये जहां उनका पालन-पोषण हुआ। वह भी गुरूओं की संगति व शिक्षा तथा अपने पुरूषार्थ व अध्ययन से किंवा अपने महान कार्यों को करके महान बने। इसी क्रम में महर्षि दयानन्द सरस्वती का नाम आता है। शिवरात्रि के दिन रात्रि में शिवलिंग पर चूहों को स्वतन्त्रतापूर्वक उछलकूद करते देखकर उनमें सच्चे ईश्वर की खोज करने का संकल्प जागृत हुआ। कालान्तर में उन्होंने ईश्वर के सच्चे स्वरूप को जानकर योग-समाधि द्वारा उसका प्रत्यक्ष व साक्षात्कार किया। इतिहास में अपूर्व दण्डी गुरू प्रज्ञाचक्षु स्वामी विरजानन्द सरस्वती से आर्ष व्याकरण की शिक्षा से सुसज्जित होकर उन्होंने वेदादि शास्त्रों के सत्य अर्थों के दर्शन किये और उनका प्रचार-प्रसार कर देश की निर्बलता को दूर कर उसे ज्ञान व विवेक से समुज्जवल व शक्तिशाली बनाया। उन्होंने मतधर्मसम्प्रदायपंथमजहब आदि में विद्यमान ज्ञानअसत्यमिथ्यामान्यताओंअन्धविश्वासपाखण्डों का खण्डन कर सारे विश्व के सभी मनुष्यों का कल्याण किया। हमारा अध्ययन व अनुभव कहता है कि महाभारतकाल के बाद उन जैसा देशभक्तदेशहितैशीईश्वरभक्तउपासकशास्त्रवेत्ताशास्त्रकारवेदोद्धारकसमाजसुधारकमिथ्यापूजामूर्तिपूजाव्यक्तिपूजा का विरोधी, निर्धनों- दलितो-शोषितों का उद्धारक व उनसे सच्ची सहानुभूति रखने वाला व उन्हें समानता का अधिकार प्रदान करने वाला दूसरा कोई महापुरूष पैदा नहीं हुआ है। महर्षि दयानन्द अपने ज्ञान व कर्मों से महान थे। जन्म से महान पुरूषों में हमें केवल पांच नाम ही स्मरण आते हैं। वह हैं अग्नि-वायु-आदित्य-अंगिरा-ब्रह्मा जिन्हें ईश्वर ने अमैथुनी सृष्टि में उत्पन्न किया और इन्हें अपने वेद ज्ञान से सुभूषित किया। यही पांच व्यक्ति सारे संसार के आदिम ज्ञानदाता मता-पिता-आचार्य थे। यह जन्म से महापुरूष व महान इस कारण हुये कि इनके पूर्व जन्मों के सदकर्मों के कारण ईश्वर ने इन्हें अपनी विरासत सौंपी और इन्हें वेदों के प्रचार का यह दायित्व सौंपा था।

 

हमारे देश में स्वेच्छा से देश के आन्दोलन में भाग लेने वाले जो शहीद हुए वह सभी हमारी श्रद्धा व आदर के पात्र हैं। वह सभी महान महापुरूषों की कोटि के व्यक्ति थे। कुछ आन्दोलनकारी व नेता शहीद तो नहीं हुए परन्तु उन्होंने तिल-तिल कर देश भक्ति व देश की आजादी के लिए अपना तन-मन-धन समर्पित कर ज्ञात व अज्ञात तरीकों से देश की स्वतन्त्रता के लिए कार्य करते रहे, जेलों में असहनीय पीड़ा भी कुछ ने सही, ऐसे सभी देशभक्त भी देशवासियों द्वारा पूजा व सम्मान के पात्र है एवं उन सबका हार्दिक वन्दन है।  इन महापुरूषों में एक नाम महान देशभक्त और क्रान्तिकारी वीरसावर जी का भी है, दूसरा नाम श्यामजी कृष्ण वम्र्मा व अन्य अनेक लोग हैं। कुछ लोग ऐसे भी हुए हैं जिन्हें देश के लिए कार्य किया, कुर्बानी भी दी, कष्ट भी सहे, उनका आजादी के आन्दोलन में उल्लेखनीय योगदान रहा, देश ने उन्हें भी महापुरूष और महान माना है और बहुत सम्मान दिया है। निश्चित रूप से वह सम्मान के अधिकारी थे व हैं। परन्तु कुछ नेताओं की नीति व कार्यों के कारण देश को हानि भी हुई है, असंख्य लोगों को कुछ गलत नीतियों के कारण दुःख भी झेलना पड़ा है, ऐसे लोगों के बारे में हम कुछ कहना नहीं चाहते। हो सकता है कि वह दूसरी या तीसरी श्रेणी में से किसी एक श्रेणी में अथवा उनमें दोनों श्रेणियों का संगम माना जा सकता है। यह हमारे अपने विचार हैं। अन्यों के ऐसे हो भी सकते हैं और नहीं भी, उनसे हमारा किसी प्रकार का मतभेद नहीं है। हम तो यह भी कहेंगे कि सबसे महान तो वह कोटि-कोटि लोग हैं जिन्होंने देश के कारण पीड़ायें सहन की, उनके परिवार बरबाद हो गये, आजादी के बाद भी उनका किसी ने ध्यान नहीं रखा, ऐसे लोग सचमुच में महान थे। ऐसे लोगों के द्वारा ही देश को स्वतन्त्रता प्राप्त हुई है। इन महान लोगों को हमारा वन्दन है।

 

इस लेख की प्रेरणा हमें एक वाक्य वा पंक्ति कि कुछ लोग जन्म से महान होते हैं, कुछ लोग कर्म से महान होते हैं और कुछ लोग महानता अपने ऊपर जबरदस्ती ओढ़ लेते हैं, से मिली है। शास्त्र कहते हैं कि आर्य कौन है? उत्तर दिया कि आर्य ईश्वर के पुत्रः हैं। संसार में मनुष्य ही नहीं सभी प्राणी ईश्वर के पुत्र व पुत्रियां हैं एवं महान हैं। सबको यदि अच्छे संस्कार मिल सकें तो उन्हें महान बनाया जा सकता है। व्यवस्था में कमी के कारण ऐसा नहीं हो पाता। आईये, महान पुरुषों का अनुकरण अनुसरण कर स्वयं को ऊपर उठायें और महानता की ओर कुछ कदम बढ़ायें।

 

5 COMMENTS

  1. आदरणीय. महानो में एक किस्म और जोड़ लीजिए. कुछ लोगों को महानता थोप दी जाती है, चाटुकार,चमचे, जूते ,उठाऊ ,भांड प्रवृत्ति के लोग अपने स्वार्थ के लिए अपने नेता ,अपने राजा, अपने तानाशाह ,को एक मसीहा बताते हैं. इन्हे तारणहार ,मुक्तिदाता,गरीबो का मसीहा बताया जाता है। ये चाटुकार हर समय,हर राजनीतिक व्यवस्था में, मौजूद रहते हैं. इन चाटुकारों के जाल मैं वे मसीहा ऐसे फंसते हैं की जो ये कहें उन्हें मानना पड़ता है. और फिर एक शोषण का चक्र चलता है ,एक मकड़जाल बनता जाता है ,और अंततः वो महान स्वयं इस जल मैं फंसकर समाप्त हो जाता है. हमारी संस्कृति,हमारे धर्म हमारे शासकों के साथ यही हुआ है. स्वामी दयानंद सरीखे महान वैदिक ऋषि के बताये जाने के बावजूद हम अवतारवाद ,अति मूर्ति पूजा, और अन्य रूढ़ियों से अपने आपको मुक्त नहीं कर पाये हैं. तथाकथित धर्माचार्य स्वामीजी के नाम का उल्लेख तो अपने प्रवचनों में करते हैं ,किन्तु उनकी सार्थक शिक्षाओं का उल्लेख नहीं करते. इन लोगों ने ज्ञान और वह भी दिव्य ज्ञान की महानता अपने आप पर थोपी हुई है. जो आपने तीसरी किस्म बताये है. आपका बेबाक लेख इन थोपे गए महान लोगों के लिए एक सीख है. होना तो यह चाहिय्र जहाँ जहाँ ये लोग अपने ज्ञान के प्रवचन दे ,वहां वहां बड़े पोस्टरों पर लिखा जाय की सामाजिक कुरीतियों के बारे मैं आप अपने विचार प्रगट करे. आज देहातों मैं मृत्यु भोज और उत्तर क्रियाओं के जंजाल मैं गरीब आदमी पर कर्ज चढ़ रहाहै. कई कुरीतियां हैं स्वामीजी के उपदेश कालांतर तक उपयोगी होङ्गेऽअज तो वे सबसे अधिक ग्राह्य हैं.

    • आपके विचार सत्य एवं प्रशंसनीय है। मेरी आपसे पूरी सहमति है। हार्दिक धन्यवाद।

  2. कुछ लोग न जन्म से न कर्म से महान होते हैं पर उनके चापलूस पिछलग्गू जबरन महान बनाने लगते हैं और तब वे ऐसा ही चोला ओढ़ने को तैयार हो भी जाते हैं जब कि अपने अंतर्मन से वे अपनी सच्चाई जानते हैं हमारे सामाजिक राजनीतिक जीवन में ऐसे कई महानुभाव मिल जायेंगे ,जिनका नाम लेने की जरुरत नहीं

  3. लेख का नाम व चित्र किसी भिन्न व्यक्ति / लेखक का लग गया है। सूचनार्थ।

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