वैश्विक अर्थव्यवस्था पर बढ़ता अमेरिकी आतंक और भारत


प्रो. महेश चंद गुप्ता

दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक होने के कारण अमेरिका लंबे समय से वैश्विक आर्थिक नीतियों पर दबदबा बनाए हुए है। यह 

दबदबा अब खुलेआम दादागिरी का रूप ले चुका है, खासकर जब 

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप मनमाने टैरिफ लगाकर देशों को आर्थिक रूप से झुकाने की कोशिश कर रहे हैं। भारत पर 25 फीसदी टैरिफ 

लगाने के बाद अतिरिक्त 25 फीसदी टैरिफ की घोषणा ने इस दादागिरी को और स्पष्ट कर दिया है, यानी कुल मिलाकर 50 फीसदी का टैरिफ — यह न सिर्फ व्यापारिक प्रतिस्पर्धा को प्रभावित करेगा, बल्कि वैश्विक व्यापार संतुलन पर भी असर डालेगा।

ट्रंप को भारत द्वारा रूस से तेल खरीदने पर आपत्ति है जबकि विडंबनायह है कि चीन भी यही कर रहा है और अमेरिका स्वयं रूस से यूरेनियम और खाद खरीद रहा है, यानी सिद्धांत और व्यवहार में अमेरिकी नीति दोहरे मानदंडों से भरी है। सवाल यह है कि भारत क्यों अपने हितों को ताक पर रखकर अमेरिकी दबाव में काम करे?

कल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भारत पर टैरिफ बढ़ोतरी के एलान के बाद पहली बार एमएस स्वामीनाथन शताब्दी अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में प्रतिक्रिया ने भारत के अडिग रुख को और मजबूती से सामने रखा है। उससे भारत का अडिग रवैया परिलक्षित हो रहा है। मोदी ने साफ कह दिया है कि हमारे लिए, हमारे किसानों का हित सर्वोच्च प्राथमिकता है, चाहे उसके लिए कोई भी कीमत चुकानी पड़े। भारत किसानों, मछुआरों और डेयरी किसानों के हितों से कभी समझौता नहीं करेगा। यह वक्तव्य बताता है कि भारत अब वैश्विक दबावों के आगे नतमस्तक नहीं होगा।

  यूनाइटेड स्टेट्स ट्रेड रिप्रेजेंटेटिव (यूएसटीआर) के आंकड़ों के अनुसार भारत-अमेरिका के बीच वार्षिक व्यापार 11 लाख करोड़ रुपये का है। भारत अमेरिका को 7.35 लाख करोड़ रुपये का निर्यात करता है जिसमें दवाइयाँ, दूरसंचार उपकरण, जेम्स-एंड- ज्वेलरी, पेट्रोलियम, इलेक्ट्रॉनिक्स, इंजीनियरिंग उत्पाद और वस्त्र शामिल हैं। वहीं, अमेरिका से भारत 3.46 लाख करोड़ रुपये का आयात करता है जिसमें कच्चा तेल, कोयला, हीरे, विमान व अंतरिक्ष यानों के पुर्जे 

शामिल हैं।

लेकिन यहां चिंता की बात यह है कि चीन, वियतनाम, बांग्लादेश और इंडोनेशिया जैसे देशों पर अमेरिका ने इतना भारी शुल्क नहीं लगाया है, जिससे उनके उत्पाद भारतीय उत्पादों की तुलना में अमेरिकी बाजार में सस्ते पड़ेंगे। फिर भी, मोदी सरकार का रवैया दृढ़ है। साठ के दशक में हम गेहूं, दूध के लिए भी अमरीका पर निर्भर थे लेकिन लगता है ट्रंप ने उन दिनों लिखी गई कोई किताब ताजा मानकर पढ़ ली है। उन्हें आज भी पुराना भारत दिख रहा है जिसे वह झुकाने की सोच रहे हैं। उन्हें यह समझ में आ जाना चाहिए कि अब भारत पहले वाला भारत नहीं रहा है। वह आत्मनिर्भर एवं विश्व में तेजी से बढ़ती हुई अर्थ व्यवस्था है। भारत का पूरे विश्व में दबदबा बढ़ रहा है।

उद्योग जगत भी इस दबाव को एक अवसर के रूप में देख रहा है। उद्योगपति हर्ष गोयनका का कहना है कि अमेरिका निर्यात पर टैरिफ लगा सकता है लेकिन हमारी संप्रभुता पर नहीं। आनंद महिंद्रा ने तो यह भी कहा कि जैसे 1991 के विदेशी मुद्रा संकट ने उदारीकरण की राह खोली थी, वैसे ही यह टैरिफ संकट भी हमें आत्मनिर्भरता की दिशा में गति दे सकता है। ललित मोदी ने एक सोशल मीडिया पोस्ट के जरिए ट्रंप को 2023 की उस रिपोर्ट की याद दिलाई है जो अमेरिका की कंपनी गोल्डमैन सैक्स ने ही जारी की थी। गौरतलब है कि गोल्डमैन सैक्स ने इस रिपोर्ट में कहा था कि भारत 2075 तक दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की ओर अग्रसर है जो न केवल जापान और जर्मनी, बल्कि संयुक्त राज्य अमेरिका को भी पीछे छोड़ देगा। रिपोर्ट में अनुमान है कि 2075 तक भारत की जीडीपी 52.5 ट्रिलियन डॉलर होगी जो चीन के 57 ट्रिलियन डॉलर से कम लेकिन अमेरिका के 51.5 ट्रिलियन डॉलर से अधिक होगी। वर्तमान में, भारत दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और तेजी से आगे बढ़ रही है।

अमेरिका की आर्थिक दादागिरी कोई नई बात नहीं है। प्रथम विश्व युद्ध के बाद से ही वह वैश्विक आर्थिक नीतियों में अपनी शर्तें थोपता आया है लेकिन अब हालात बदल रहे हैं। चीन पहले ही उसके दबाव में नहीं आ रहा और अब भारत भी साफ संकेत दे रहा है कि उसकी प्राथमिकता अपने राष्ट्रीय हित हैं। हाल ही में ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारत-पाक युद्ध रोकने का श्रेय लेने की अमेरिकी कोशिश को भारत ने सिरे से खारिज कर दिया। यही रुख अब टैरिफ विवाद में भी नजर आ रहा है।

मोदी सरकार का लक्ष्य स्पष्ट है  मेक इन इंडिया, वोकल फॉर लोकल और इंडिया फर्स्ट जैसी नीतियों के जरिये 2047 तक भारत को दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनाना। ऐसे में ट्रंप की टैरिफ राजनीति भारत के आत्मनिर्भरता अभियान को और तेज कर सकती है।

धैर्य और संयम के साथ नेतृत्व करना भारत की ताकत है। रामचरितमानस का वह प्रसंग याद आता है जब विभीषण ने युद्ध के समय श्रीराम से कहा कि रावण के पास सब कुछ है, पर आपके पास कुछ नहीं। तब श्रीराम ने उत्तर दिया कि सबसे बड़ी शक्ति धैर्य, शांति और सहनशीलता है। यही नीति आज भारत के नेतृत्व में झलक रही है. जहां ट्रंप अभिमान में हैं, वहीं भारत दृढ़ता और शांति के साथ आगे बढ़ रहा है।

इतिहास ने साबित किया है कि अमेरिका कभी भी भारत का स्थायी 

मित्र नहीं रहा। ट्रंप की नीतियों का विरोध अमेरिका के भीतर भी हो रहा है। ऐसे में बदलते समीकरण भारत के लिए नए अवसर खोल सकते हैं। ट्रंप भले ही मनमाना रवैया अपनाए हुए हैं पर वह भी फंस रहे हैं। 

टैरिफ के मुद्दे पर उनका अमरीका में भी विरोध हो रहा है। बदले 

परिदृश्य मे नए वैश्विक समीकरण बनने की संभावनाएं हैं। ट्रंप का रुख चीन के साथ भारत के संबंधों को बदल सकता है।

 पीएम मोदी इस महीने के आखिर में सात सालों के बाद चीन के दौरे पर जा रहे हैं। वह वहां तिआनजिन में 31 अगस्त से 1 सितंबर तक आयोजित होने वाली शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गेनाइजेशन (एसीओ) समिट में शामिल होंगे। मोदी का यह चीन दौरा ऐसे समय में होने जा रहा है, जब दोनों देशों के रिश्तों को सुधारने की कोशिशें चल रही हैं। भारत बहुत बड़ा बाजार है जिसकी चीन को सख्त जरूरत है। भारत मे जब भी स्वदेशी का मुद्दा उठता है तो चीन इसे अपने खिलाफ मानता है। स्वदेशी की अवधारणा का चीनी उत्पादों पर सर्वाधिक प्रभाव पड़ता है। ऐसे में चीन क्यों नहीं चाहेगा कि उसके भारत के साथ संबंध मधुर हों, खासकर तब जब अमरीका खुद ही भारत से दूरियां बढ़ा रहा है। चीन को भारत के विशाल बाजार की जरूरत है, और अमेरिका के साथ भारत के रिश्तों में दूरी बढ़ने से बीजिंग अपने संबंध सुधारने को उत्सुक होगा।

अमेरिका की आर्थिक दादागिरी भले ही अभी भी जारी हो पर बदलते वैश्विक परिदृश्य में भारत का आत्मविश्वास, अडिग रुख और दूरदर्शी नेतृत्व इसे न सिर्फ झेलने में सक्षम है बल्कि इसे अपने विकास की सीढ़ी भी बना सकता है। आने वाले समय में अपने हितों की रक्षा करते हुए दुनिया में अपनी शर्तों पर आगे बढ़ना ही भारत की असली ताकत होगी । अर्थव्यवस्था के शिखर पर पहुंचकर भी भारत वसुधैव  कुटुंबकम  के मार्ग पर चलेगा। सबका कल्याण ही भारत की सोच है। हम तो प्राचीन काल से ही सर्वे भवन्तु सुखिन: ही सोच रखते हैं। दादागिरी हमारा स्वभाव नहीं है।

प्रो. महेश चंद गुप्ता

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