बढ़ती जनसंख्या अभिशाप नहीं!

डॉ गज़ाला ऊर्फी 

आम तौर पर यह धारणा बनी हुई है कि जनसंख्या वृद्धि हानिकारक है। इससे किसी भी देश की अर्थव्यवस्था चरमरा जाती है। आर्थिक दृष्टिकोण के सभी पैमाने भी इसी की पुष्टि करते हैं। अर्थशास्त्रियों की परिभाषा का निष्‍कर्ष यही है कि जनसंख्या वृद्धि के कारण ही खाद्यान्न की कमी होती है क्योंकि जिस अनुपात में आबादी में इजाफा होता उस अनुपात में पैदावार नहीं हो पाता है। इसीलिए जनसंख्या में अत्याधिक वृद्धि किसी भी देश की अर्थव्यवस्था के लिए एक बहुत बड़ा अभिशाप माना जाता है। चाहे वह विकसित राष्‍ट्र हो या अर्द्ध विकसित अथवा अल्प विकसित राष्‍ट्र।

 

माना जाता है कि दुनिया भर में बढ़ती गरीबी की जड़ जनसंख्या वृद्धि में निहित है। इसके कारण एक तरफ जहां जन सेवाएं चरमरा रही हैं वहीं बेरोजगारी और भूख भी भयंकर रूप दिखा रही है। खाद्यान्न संकट और यहां तक कि ग्लोबल वार्मिंग के लिए भी बढ़ती जनसंख्या को ही जिम्मेदार ठहराया जाता है। भारत समेत समूचा विश्‍व इस पर चिंता जताता रहा है और नियंत्रण के सभी फामूर्ले अपनाने पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। विश्‍व के अधिकतर अर्थशास्त्री इस बात पर सहमत हैं कि बढ़ती आबादी पर नियंत्रण से ही विकास संभव है। इसके पीछे मजबूती के साथ यह तर्क दिया जाता है कि कम लोगों में सुविधा का ज्यादा से ज्यादा लाभ प्रदान किया जा सकता है जो अधिक जनसंख्या में मुमकिन नहीं है।

 

जनसंख्या वृद्धि के इस नकारात्मक पहलू के अतिरिक्त एक पहलू और भी है। वर्तमान परिदृश्‍य में इसे श्राप की जगह वरदान के रूप में देखा जाना चाहिए। अर्थव्यवस्था की परिभाषा के अनुसार मानव शक्ति ही आर्थिक विकास को गति प्रदान करता है। श्रमिक अर्थात मानव शक्ति को संपत्ति का सृजक माना जाता है। श्रमिक उत्पादन का सक्रिय साधन है। जो प्रकृति प्रदत्त साधनों तथा अन्य निश्क्रिय साधनों जैसे पूँजी को सक्रिय बनाता है और विकास की प्रक्रिया को आगे बढ़ाता है। मनुष्‍य उत्पादक के साथ-साथ उपभोक्ता भी होता है। अत: जनसंख्या दूसरे उत्पादक कार्यों के विस्तार तथा उद्योगों की बनी चीजों के लिए गैर बाजार मांग का सृजन करता है। इस तरह मानव शक्ति साधनों के प्रयोग एवं उद्योगों के अलावा गैर कृषि क्षेत्र में बनी वस्तुओं के लिए भी बाजार उपलब्ध कराता है और श्रमिकों की आपूर्ति द्वारा देश की विकास प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है।

 

भारत विश्‍व की दूसरी सबसे बड़ी आबादी वाला देश है। यहां की तेजी से बढ़ती आबादी पर लगातार चिंता जताई जाती रही है। विश्‍व क्षेत्रफल के 2.7 प्रतिशत भारतीय भूभाग पर विश्‍व की 16 प्रतिशत जनसंख्या निवास करती है। 2011 की जनगणना के अनुसार यह संख्या एक अरब 22 करोड़ से भी अधिक है तथा इसमें 1.5 प्रतिशत की दर से वृद्धि हो रही है। तथ्य बताते हैं कि आबादी के बढ़ने की यही रफ्तार रही तो आने वाले कुछ वर्शों में यह चीन को भी पीछे छोड़ देगी। परंतु यही जनसंख्या वृद्धि हमारे विकास के लिए फायदेमंद साबित हो रहे हैं। आंकड़ों के अनुसार विश्‍व की करीब आधी जनसंख्या 25 वर्श से कम आयु की है जिसका अधिकांश भाग भारत में निवास करता है जबकि विकसित देशों में बूढ़ों की संख्या बढ़ रही है और काम करने वाले उर्जावान शक्ति की कमी हो रही है।

 

यही कारण है कि भारतीय युवा देश और दुनिया के लिए उत्पादकता की नई मिसाल कायम कर रहे हैं और विश्‍व की सभी कंपनियां इन्हें श्रेष्‍ठतम मानव संसाधन की संज्ञा दे चुकी हैं। शिक्षा और जन स्वास्थ्य पर आधारित जनसंख्या नीति ने उस पीढ़ी की तैयारी की जो आर्थिक तरक्की की सूत्रधार साबित हो रही है। भारतीय जनगणना की पष्चिम बंगाल ईकाई के निदेशक विक्रम सेन के अनुसार ‘देश जनसंख्या के लाभदायक चरण में पहुंच रहा है।’ आज भारत में लगभग आधी आबादी 20 से 30 वर्श आयु वर्ग की है जो उर्जावान है। जिनकी क्षमता का भरपूर उपयोग किया जा सकता है। यह स्थिती वर्श 2045 तक बनी रहेगी। वहीं आश्रितों की संख्या में कमी के कारण जनसंख्या का यह चरण अर्थव्यवस्था की वृद्धि में सहायक साबित होगा। खास बात यह है कि बढ़ती जनसंख्या पर चिंता के साथ-साथ सरकार द्वारा लगातार शिक्षा के प्रचार प्रसार ने भी भारतीय युवाओं की कौशल क्षमता को बढ़ाने में भरपूर मदद की है। इस संदर्भ में विक्रम सेन का तर्क है कि ‘शिक्षा बेहतरीन अर्थव्यवस्था और नियंत्रित आबादी की कुंजी है।’

 

गुणात्मक एवं प्रतिभा संपन्न युवाओं का यह वर्ग भारत को विश्‍व का सबसे बड़ा मानव संसाधन निर्यातक एवं रोजगार आयातक दोनों ही बना रहा है। यह जल्द ही अंतरराष्‍ट्रीय सेवा कारोबार के 37 प्रतिशत लक्ष्य को हासिल कर लेगा जो अर्थव्यवस्था के मामले में भारत को चीन से आगे ले जा सकता है। यही कारण है कि आबादी के लिए भारत को कोसने वाले विश्‍व को आज उसकी युवा क्षमता से जलन हो रही है। विस्तृत रूप से देखा जाए तो हर सार्वजनिक मंच पर जिसको लेकर सबसे ज्यादा चिंता जताई जा रही है वही आबादी संकट की बजाए संकट मोचक साबित होती रही है। प्रसिद्ध अर्थशास्त्री एडविड कैनन के अनुसार जो मनुष्‍य जन्म लेता है वो अपने मुंह और पेट के साथ-साथ काम करने के लिए दो हाथ भी लाता है, जिससे अधिक श्रमशक्ति के प्रयोग द्वारा कृषि और उद्योग की उत्पति बढ़ाई जा सकती है और इसे भारतीय युवा पीढ़ी सच साबित कर रही है। (चरखा फीचर्स)

7 COMMENTS

  1. श्री. सिंह साहब जी –और अन्य पाठक: दीपावली की शुभेच्छाएं।
    सिंह साहब, यह आपकी ही बात नहीं, बहुसंख्य (N R I ) प्रवासी भारतीयों को, पहले पहल, ऐसा ही, दिखाई देता है। मैं भी इसमें अपवाद नहीं था। जब तक मैं, अमरिकन छात्रों के, अन्य प्राध्यापकों के, सामान्य जन, और जीवन के परिचय में नहीं आया था, इस विषय पर मौलिक और गहरी सोच भी नहीं थी; तो ऐसे ही सोचा करता था।
    बडे (निर्माण अभियांत्रिकी के) प्रकल्प (प्रोजेक्ट) दिग्दर्शित किए थे, डिग्री पायी थी, पर विवेक-पूर्वक सोचने की योग्यता ऐसी उपलब्धियां थोडे ही, दे सकती है?
    पर, गत अनेक वर्षों के सतत, पठन-पाठन-विचार-चिंतन-मनन ने मुझे बदल नें पर विवश किया।
    दीपावली के बाद आप ने सुझाए विषय पर विस्तारसे (लेख) लिखूंगा।
    आप यदि फो. नं. दे सकें, तो फोन कर सकता हूं।
    बन पाए तो आप निम्न लेख देख ले।
    https://www.pravakta.com/archives/28694
    hamaari kuTumb santhaa–ek acharaj –हमारी कुटुम्ब संस्था -एक अचरज।

  2. मधुसूदन जी आप तो अमेरिका में रहते हैं ,जबकी मेरी अमेरिका की केवल दूसरी यात्रा है.मैं अमेरिका में पहली बार करीब साढ़े पांच महीने रहा था और इसबार भी शायद उतना ही रहूँ,अतः मैं यह तो नहीं कह सकता कि मैं अमेरिका के बारे में बहुत जानकारी रखता हूँ ,पर मेरा अभी तक का अनुभव तो यही है कि सभ्यता और संस्कृति के मामले में भी आज हमलोग अमेरिका से पीछे हो गए हैं. मेरा अपना विचार तो यह है कि गंदगी फैलाने वाले लोग कभी सभ्य नहीं कहे जा सकते.यत्र तत्र थूंकने वाले अच्छी परम्परा यानी अच्छी संस्कृति वाले तो नहीं समझे जा सकते. हमारे यहाँ कार पर चलने वालों के लिए पैदल यात्री भेड़ बकरियों से ज्यादा कीमत नहीं रखते.अमेरिका में उनके साथ कैसा व्यवहार होता है ,वह आप मुझसे ज्यादा जानते हैं.कारों या किसी भी पेट्रोल या डीजल चालित वाहनों का हार्न यहाँ सुनाई नही पड़ता,जबकी हमारे यहाँ हार्न बजाते चलना आदतों में शुमार हो गया है.हो सकता है कि भूतकाल में हम बहुत सभ्य रहे हों पर आज के भारत को देख कर तो ऐसा कुछ नहीं लगता.मैंने यह टिप्पणी इसलिए की है ,क्योंकि मैं चाहता हूँ कि आप इसपर अपना वेवाक और विस्तृत विचार दे सके.अभी तक तो मैं समझता हूँ कि सस्कृति और सभ्यता में भी हम अमेरिका से पीछे हो गए हैं.शायद आप मेरे विचारों को बदल सके.

  3. जन संख्या विस्फोट पर श्री विपिन किशोर सिन्हा के विचारों से करीब करीब सहमत.असहमति केवल चीन के एक बच्चा एक परिवार वाली बात से.मैं समझता हूँ हमें केवल हम दो हमारे दो वाले सिद्धांत को पूर्ण रूप से अमल में लाने की आवश्यकता है.

  4. बडी गुत्थम गुत्थी की समस्या है जनसंख्या। किसी भी एकांगी कार्य कारण के तर्क से, नहीं देखी जानी चाहिए।
    (१)अमरिका की भूमि हमारी भूमिसे लगभग ३ गुना है, और उनकी जनसंख्या एक तिहाई है। अर्थात उन्हें हमसे ९ गुना प्राकृतिक लाभ क्षमता प्राप्त है।

    (२)फिर, हमारी प्रगति सर्वांगीण नहीं हुयी है। हमारा ग्रामीण जब प्रति दिन २५ रूपए से कम आय पर जीवन यापन करता है, तो हमारी उन्नति का कोई अर्थ नहीं है।
    (३)हम सांस्कृतिक दृष्टि से अमरिकासे ज़रूर आगे हैं।
    (४) हमें हमारा उत्पाद बढाना चाहिए। और जन संख्यापर कुछ नियमन करने की बडी आवश्यकता प्रतीत होती है।सामाजिक असंतोष का और आपसी वैमनस्य, गलाकाट स्पर्धा और कुछ भ्रष्टाचार का कारण भी हमारी जन संख्या का बेलगाम बढना —ऐसा मानता हूँ।
    (४) एक स्थूल अनुमान से, मान लीजिए कि जनसंख्या २५% कम होती, तो प्राकृतिक उत्पाद २५-३०% अधिक होते, और समस्याएं उतनी ही कम होती।
    (५)हमारे कुछ समर्थ युवक, बाहर जाने के लिए विवश इसी कारण से भी हैं।
    (६)सार: समस्या जटिल है। चीनने निर्दयतासे निर्णय लिए हैं। बूढों को कहां भेज दिया है, पता नहीं चलता। मेरी १८ दिनकी चीन यात्रा में कोई खास वृद्ध दिखाई ना दिए। कुत्ता बिल्ली तक कोइ पालतु प्राणी भी सहसा नहीं देखें।{चीनी किसी भी प्राणी को खाते हैं।}
    (७)पढा है, कि चीनने कई मिलियन लोगों को अकाल के समय दुनिया का अनाज ठुकरा कर मरने दिया। और कुछ मिलियन लोगों को आंदोलन के समय, गोली मार कर खतम किया।
    वहां, अब एक कुटुम्ब एक बालक का कानून है।
    क्या हम ऐसा कर सकते हैं?
    बहुत जटिल विषय है यह। इस छोटी टिप्पणी में कहना असम्भव है।

  5. बकवास. भारत की सभी समस्याओं की जड़ जनसंख्या विस्फोट है. अगर अमेरिका की तरह हमारी आबादी भी २० करोड़ ही होती, तो हम विश्व के सबसे उन्नत और संपन्न राष्ट्र होते. जनसंख्या पर प्रभावी नियंत्रण के कारण ही चीन प्रगति कर पाया. भारत को भी एक परिवार-एक बच्चा की नीति को कड़ाई से अपनाना चाहिए, तभी देश की प्रगति संभव है. आप यह कैसे भूल सकते हैं कि विश्व में सबसे ज्यादा भारत में ही बच्चे कुपोषण के शिकार हैं. बच्चों का मृत्यु दर भी भारत में सर्वाधिक है. भारत की बड़ी जनसंख्या देश के लिए अभिशाप है.

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