मीडिया विश्ववार्ता

विनाश की दिशा में बढ़ते इन कदमों को कौन रोकेगा?

                                                                         – नरेश भारतीय

imagesपेरिस में हुआ हमला मज़हबी उन्माद न कहा जाए तो इसे और क्या कहा जाएगा? इस्लाम के नाम पर विश्व भर में इस प्रकार भय और आतंक के प्रसार की हर ऐसी घटना की हर बार ‘सीमित और स्थानीय स्तर पर कुछ बिगड़े दिमाग़ लोगों का कारनामा’ मान कर उपेक्षा नहीं की जा सकती. ऎसी घटनाओं की कड़ी का हर नया दौर कट्टरपंथी इस्लामवादियों के द्वारा इसके अमानवीय पक्ष को कहीं अधिक शक्ति के साथ सामने लाता जा रहा है.

पश्चिम के लोकतंत्रवादी देश व्यक्ति और उसकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की दुहाई देते रह जाते हैं. भारत के सेकुलरवादी ऎसी घटनाओं में मारे जाने वाले निरपराधों के परिजनों के लिए सहानुभूति के दो शब्द भी कहने से कतराने लगते हैं. दुर्भाग्य यह है कि जो लोग इस्लाम के नाम को बदनामी से बचाने की कोशिश में इस्लाम के शांतिप्रिय मज़हब होने की दुहाई देते सुनाई पड़ते हैं वे स्वयं उनके अपनों को ही इस विनाशकारी मार्ग पर आगे बढ़ने से रोकने में प्रकटत: इसलिए असमर्थ पाते हैं क्योंकि कहीं उन्हें भी काफिर करार न दे दिया जाए.

ऐसी घटनाएं निरंतर वृद्धि पर हैं. इनसे न पश्चिम सुरक्षित है और न ही पूर्व. यह मानवता पर दानवता के और प्रखर होते जाते घोर घातक प्रहारों की टंकार मात्र है. सभ्यता और संस्कृतियों के बीच जोर ज़बरदस्ती थोपे जाने वाले महासंघर्ष के ऐसे पूर्व संकेत हैं जिनकी इस समय किसी भी समाज के द्वारा की जाने वाली उपेक्षा उस पर ही नहीं अपितु समस्त विश्व पर भारी पड़ेगी. इसलिए सबको इस पर गम्भीरता के साथ ध्यान देना होगा कि इस समय की नितांत आवश्यकता क्या है. अपने अपने राजनीतिक, सामाजिक और मज़हबी पूर्वाग्रह एक तरफ करके सभी समर्थ राष्ट्र और विश्व भर के बुद्धिसम्पन्न लोग समस्त विश्व मानव समाज के हित और रक्षा के लिए एकजुट रणनीति बनाने की युक्ति करें. अन्यथा, विश्व को जिस विनाश की दिशा में बरबस धकेला जा रहा है उसे रोका जा सकना असम्भव हो जायगा. अंतत: इसका क्या परिणाम होगा उसकी कल्पना करना मुश्किल नहीं है. हर बार मात्र मत, वक्तव्यों, भाषणों और बहसों से इस मंडराते ख़तरे से मुक्ति नहीं पाई जा सकेगी.