डा वीरेन्द्र भाटी मंगल
जल जीवन का मूल आधार है। मानव सभ्यता का विकास नदियों के किनारे हुआ। कृषि, उद्योग, संस्कृति और सामाजिक संरचना सब कुछ जल पर निर्भर रहा है किंतु आज वही जल, जो कभी सहज और प्रचुर था, संकट का रूप धारण कर चुका है। विश्व के अनेक देश, विशेषकर भारत, गंभीर जल संकट की ओर बढ़ रहे हैं। यह संकट केवल प्राकृतिक नहीं, बल्कि मानव की अदूरदर्शिता, अनियंत्रित विकास और असंवेदनशील व्यवहार का परिणाम है। जल संकट वास्तव में भविष्य के लिए एक भारी चेतावनी है, जिसे यदि आज नहीं समझा गया तो कल के परिणाम भयावह होंगे।
भारत जैसे देश में, जहां एक ओर गंगा, यमुना, ब्रह्मपुत्र जैसी महान नदियां हैं, वहीं दूसरी ओर करोड़ों लोग पीने के पानी के लिए संघर्ष कर रहे हैं। भूजल स्तर लगातार गिरता जा रहा है। अनेक शहरों में टैंकरों पर निर्भरता बढ़ गई है। ग्रामीण क्षेत्रों में कुएं और हैंडपंप सूख चुके हैं। जलवायु परिवर्तन ने इस संकट को और गहरा कर दिया है। अनियमित वर्षा, कभी अतिवृष्टि तो कभी सूखा ये सब जल प्रबंधन की पुरानी प्रणालियों को विफल कर रहे हैं।
जल संकट का एक प्रमुख कारण जनसंख्या वृद्धि है। बढ़ती आबादी के साथ जल की मांग तेजी से बढ़ी है, किंतु जल संसाधनों का संरक्षण और पुनर्भरण उसी अनुपात में नहीं हो पाया। कृषि क्षेत्र में अत्यधिक जल-खपत वाली फसलों का प्रचलन, जैसे धान और गन्ना, विशेष रूप से शुष्क क्षेत्रों में, स्थिति को और गंभीर बनाता है। आधुनिक सिंचाई तकनीकों के अभाव में बड़ी मात्रा में पानी व्यर्थ बह जाता है।
औद्योगीकरण भी जल संकट का बड़ा कारण है। उद्योगों द्वारा जल का अत्यधिक दोहन और जल स्रोतों में अपशिष्ट का निर्वहन नदियों और तालाबों को प्रदूषित कर रहा है। स्वच्छ जल स्रोत धीरे-धीरे अनुपयोगी बनते जा रहे हैं। शहरीकरण के कारण जल संग्रहण के प्राकृतिक स्रोत तालाब, झीलें, जोहड़ या तो पाट दिए गए हैं या उपेक्षा के शिकार हो गए हैं। कंक्रीट के जंगलों ने वर्षा जल के भूमि में समाने की प्रक्रिया को बाधित कर दिया है, जिससे भूजल पुनर्भरण नहीं हो पाता।
जल संकट के सामाजिक और आर्थिक प्रभाव अत्यंत गंभीर हैं। स्वच्छ पेयजल की कमी से स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ बढ़ रही हैं। जलजनित रोग, कुपोषण और महिलाओं-बच्चों पर बढ़ता बोझ चिंता का विषय है। ग्रामीण क्षेत्रों में जल के लिए पलायन की स्थिति उत्पन्न हो रही है। भविष्य में जल को लेकर संघर्ष और विवाद बढ़ने की आशंका भी व्यक्त की जा रही है, जो सामाजिक स्थिरता के लिए खतरा है। यह संकट हमें चेतावनी देता है कि यदि हमने अभी ठोस कदम नहीं उठाए, तो आने वाली पीढ़ियों को भारी कीमत चुकानी पड़ेगी। समाधान संभव है, बशर्ते इच्छाशक्ति हो। वर्षा जल संचयन, पारंपरिक जल संरचनाओं का पुनर्जीवन, जल का संतुलित और न्यायसंगत वितरण ये सभी प्रभावी उपाय हैं। कृषि में सूक्ष्म सिंचाई तकनीकें, जैसे ड्रिप और स्प्रिंकलर, जल की बचत कर सकती हैं। उद्योगों में जल पुनर्चक्रण को अनिवार्य बनाना होगा।
सरकार के साथ-साथ समाज की भी बड़ी भूमिका है। जल संरक्षण को जनआंदोलन बनाना होगा। जल है तो कल है केवल नारा नहीं बल्कि जीवन-दर्शन बनना चाहिए। विद्यालयों से लेकर पंचायतों तक जल साक्षरता फैलाने की आवश्यकता है। प्रत्येक नागरिक को अपने स्तर पर जल बचाने का संकल्प लेना होगा चाहे वह नल बंद रखना हो, वर्षा जल संग्रहण करना हो या जल स्रोतों की स्वच्छता बनाए रखना हो। जल संकट केवल पानी की कमी का प्रश्न नहीं है, यह हमारी सोच, हमारी प्राथमिकताओं और हमारे भविष्य का प्रश्न है। प्रकृति ने हमें पर्याप्त संसाधन दिए हैं, किंतु उनका विवेकपूर्ण उपयोग करना हमारा दायित्व है। यदि आज हमने चेतावनी को नहीं समझा तो भविष्य हमें क्षमा नहीं करेगा। जल संरक्षण ही सुरक्षित और समृद्ध भविष्य की कुंजी है।
डा वीरेन्द्र भाटी मंगल