बाल पंचायत: बच्चों की अपनी सरकार

balpanchayatअंतराष्ट्रीय बाल अधिकार दिवस पर विशेष

बाल पंचायत: बच्चों की अपनी सरकार

रामकुमार विद्यार्थी

बच्चे आने वाला कल हैं, वे देश का भविष्य हैं ! ऐसी बातें हम सालों से सुनते आ रहे हैं । लेकिन इन बच्चों का आज बना रहे इसके लिए हम क्या कर रहे हैं ? इन सवालों को लेकर बांलपंचायत जैसे बच्चों के संगठन अपनी आवाज उठा रहे हैं । वे कह रहे हैं कि बच्चे कल के नहीं आज के नागरिक हैं इसलिए उनके लिए समाज व सरकार को आज ही ध्यान देना होगा। बाल पंचायत एक तरह से बच्चों की अपनी सरकार है जो बच्चों के द्वारा बच्चों के लिए बच्चों के साथ काम करती है। निवसीड बचपन जैसी स्वयं सेवी संस्थाएं इसकी प्रेरक भूमिका में हैं।

हाल ही में ’बाल पंचायत भोपाल ’ का चौथा चुनाव संपन्न हुआ है। प्रत्येक दो  साल में बच्चों की यह सरकार बदलती रहती है। इस सीखपूर्ण चुनाव प्रक्रिया में गरीब बस्तियों के 32 बाल पंचायत पंचों ने हिस्सा लिया । इन पंचों का चुनाव विभिन्न बाल समूहों के 500 सदस्यों ने किया था। देश में चुनाव बाहुबल,धनबल और जातीय विभेद के आधार पर लड़े ओर जीते जाते हैं चाहे वे एक ग्राम पंचायत के ही चुनाव क्यों न हों। ऐसे नकारात्मकता के बीच बच्चों का यह चुनाव पद, प्रलोभन, और कुटिल प्रतिस्पर्धा से दूर सकारात्मक लोकतंत्र की भावना जगाता है। बाल पंचायत के नवनिर्वाचित अध्यक्ष रोहित अहीरवार कहते हैं कि आज भी बाल मजदूरी और बस्तियों में पानी व साफ सफाई की दिक्कतों के कारण बच्चे शिक्षा से वंचित हैं। वे कई जगहों पर अपने जनप्रतिनिधियों से बच्चों से जुड़ी दिक्कतें बताने की कोशिश भी कर रहे हैं लेकिन उन्हें बच्चा समझकर कोई उनकी परेशानियों पर ध्यान नहीं दे रहा। ऐसी दिक्कतें घरों के अंदर भी है जहां उन्हें अपने परिवार में भी अपनी बात सुनाने के लिए काफी जोर लगाना होता है। म.प्र. बाल संरक्षण आयोग अध्यक्ष डाॅ. राघवेंद्र शर्मा भी मानते हैं कि बच्चों के साथ संवेदनशील व्यवहार न होने और उन्हें न सुने जाने के कारण बच्चे घर परिवार छोड़ रहे हैं ।

सन 2010 से सक्रिय बच्चों की इस छोटी सी सरकार ने कई तरह के महत्वपूर्ण  कामों की शुरूआत भी की है। पूर्व सदस्य रवीना प्रजापति व मनोहर राणावत कहते हैं कि उनके समूह ने स्कूल छोड़ चुके बच्चों को दुबारा शिक्षा से जोड़ा है। एकता समूह ने बाल विवाह रोकने के लिए परिवार को मनाया है तो गपषप और हरियाली ग्रुप के बच्चों ने अपनी बस्ती में नाली व कचरे को साफ किया है । इन जैसे कई समूहों के बच्चों ने अपने क्षेत्र के जनप्रतिनिधियों तक बस्ति में बिजली व सफाई , स्कूल , आंगनवाड़ी भवन की मरम्मत तथा बच्चों के लिए खेल के मैदान जैसे सुविधाओं की मांग की हैं जिसमें से कई काम पूरे भी हुए है। बच्चों के प्रतिनिधि पवन चौरसिया, तान्या जाटव और अल्का कुशवाहा आत्मविश्वास के साथ कहते हैं कि जब हम सारे बच्चे इकट्ठे होकर कोई आवाज उठाएंगे तो बड़े भी सुनेंगे। डासं, नाटक, गीत, चित्र और बच्चों के खेल ही इस बाल पंचायत के लोकतांत्रिक हथियार हैं जिसका उपयोग बच्चे अपने व्यक्तित्व विकास और दूसरों को प्रभावित करने में करते आ रहे हैं।

संयुक्त  राष्ट्र संघ बाल अधिकार समझौते पर भारत ने 1992 में हस्ताक्षर किये हैं। इसके तहत बच्चों को जीवन  , सुरक्षा ,विकास और सहभागिता  का अधिकार दिलाने के लिए कई तरह की घोषणाएं की गई है। लेकिन वास्तव में इन अधिकारों को बच्चों तक पहुचाने की हमारी रफतार बहुत धीमी है इसे तेज करना होगा। सभी बच्चों को पर्याप्त पोशण आहार मिले , उन्हें जीवन कौशल के साथ समान और निःशुल्क शिक्षा मिले,सुरक्षित व स्वस्थ वातावरण का अधिकार मिले और यह सब बच्चों की सहभागिता के साथ हो । इसलिए हमें देखना होगा कि क्या बच्चों का हक देना और उन्हें सुना जाना समाज की संवेदना और सरकार की राजनैतिक ईच्छाशक्ति में है ? हम भारत के बच्चे अभियान से जुड़कर एक बार फिर से ये सारे बच्चे हमसे अपना आज मांग रहे हैं।

नोट – लेखक संस्था निवसीड बचपन से जुड़े सामाजिक कार्यकर्ता हैं।

रामकुमार विद्यार्थी

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

17,871 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress