सपा में ‘अखिलेश युग’ का आगाज

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संजय सक्सेना

उत्तर प्रदेश की समाजवादी सियासत एक बार फिर करवट ले रही है। अब साढ़े चार मुख्यमंत्री वाली बात खत्म हो चुकी है। अखिलेश अपना ही ‘सिक्का’ चला रहे हैं। सही-गलत का निर्णय स्वयं लेने के साथ ही अखिलेश अपने आप को भावी सीएम और नेताजी मुलायम का उत्तराधिकारी भी घोषित कर चुके हैं, लेकिन बाप-चचा भी अपने अधिकारों और पार्टी पर वर्चस्व छोड़ने को तैयार नहीं हैं। इसके चलते एक समय तो पार्टी में बगावत की स्थिति बन गई थी। चचा-भतीजे के बीच नोंकझोंक से शुरू हुई लड़ाई मेें दोंनो के बीच ‘तलवारें’ खिंचते देर नहीं लगी। अखिलेश ने ‘पंख’ फैलाये तो शिवपाल खेमा उनके पंख काटने में जुट गया। पार्टी में हालात बदल गये और ऐसा लगने लगा कि समाजवादी पार्टी में नेताजी का अशीर्वाद पाये सपा प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल यादव खेमे की ही चलेगी। ऐसा हुआ भी। पहले विधान सभा चुनाव के बाद मुख्यमंत्री के नाम का फैसला होने के बात कहकर और उसके पश्चात अखिलेश की मर्जी के बिना अंसारी बंधुओं की पार्टी कौमी एकता दल का सपा में विलय करके शिवपाल ने पहली बार अखिलेश को सीधी चुनौती दी थी। चचा-भतीजे की लड़ाई में सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव अपने भाई शिवपाल के पक्ष में खड़े नजर आ रहे थे। चाहें अखिलेश को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाये जाने का मामला हो या फिर उनके समर्थन करने वाले नेताओं को बाहर का रास्ता दिखाने का मसला। यहां तक की प्रोफेसर रामगोपाल यादव की सपा से विदाई भी इसी से जुड़ा मामला बन गया था।
दरअसल, प्रोफेसर ने नेताजी को पत्र लिखकर अखिलेश का समर्थन किया था और गोलमोल शब्दों में समजवादी पार्टी में मचे बवाल के लिये शिवपाल और अमर सिंह को जिम्मेदार ठहरा दिया था, जिसके बाद उन्हें सपा से बर्खास्त कर दिया गया था। कहने को तो प्रोफेसर साहब का बाहर का रास्ता दिखाने के लिये मुलायम की सहमति लिये जाने की बात कही जा रही थी,लेकिन इसके पीछे शिवपाल की सियासत ज्यादा अहम थी। पार्टी से निकाले जाने के बाद प्रोफेसर रामगोपाल यादव ने आरोप लगाया था कि मुख्यमंत्री को नजरअंदाज कर पार्टी में टिकट बांटे जा रहे हैं। उनका इशारा शिवपाल की तरफ था। तब एक प्रेस कांफे्रस में पार्टी से निष्कासन के प्रश्न के जवाब में रामगोपाल ने कहा था कि वे अपने को समाजवादी पार्टी का सदस्य मानते हैं और पार्टी सदस्य होने के नाते ही यह बयान दे रहे हैं। अपने ऊपर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों पर रामगोपाल रो पड़े थे। भ्रष्टाचार के आरोप से आहत रामगोपाल ने कहा था कि उन्हें इससे बेहद तकलीफ हुई। गौरतलब हो शिवपाल यादव ने रामगोपाल पर भ्रष्टाचार करने सहित कई गंभीर आरोप लगाये थे।
ऐसा नहीं था कि इस दौरान मुख्यमंत्री अखिलेश यादव चुपचाप सब कुछ सहते रहे। उन्होंने ने भी खूब पलटवार किये। चचा शिवपाल यादव और उनके समर्थक कहलाये जाने वाले नेताओं को मंत्रिमंडल से बर्खास्त कर दिया। शिवपाल के समर्थन में खड़े नजर आ रहे अमर सिंह को अंकल की जगह दलाल की उपमा दे डाली। शिवपाल के समर्थन में खड़े अमर सिंह शातिराना तरीके से सब कुछ चुपचाप देखते रहे ,लेकिन जब अखिलेश को समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष पद से हटा कर शिवपाल को अध्यक्ष बनाया गया तो इस खुशी में अमर सिंह ने दिल्ली में एक दावत दे दी। अमर सिंह का दावत देना अखिलेश को बेहद नागवार गुजरा और इसके बाद तो अखिलेश अपने कथित अंकल के पीछे ही पड़ गये। बाप-चचा का पूरा गुस्सा अमर पर उतार दिया। तो उधर अमर सिंह ने भी रामगोपाल के खिलाफ खूब भड़ास निकाली। यहां तक कह दिया कि उन्हें (अमर सिंह) कुछ हो जाता है तो इसकी जिम्मेदारी रामगोपाल पर होगी। इससे पूर्व अमर की करीबी और मंत्री का दर्जा प्राप्त फिल्म अभिनेत्री जयाप्रदा को भी अखिलेश ने उत्तर प्रदेश फिल्म विकास परिषद के उपाध्यक्ष के पद से हटा दिया था।
चचा शिवपाल और भतीजे अखिलेश यादव के बीच सार्वजनिक मंच पर हुई तू-तू मैं-मैं और बर्खास्ती के बाद भी रामगोपाल से अखिलेश की मेल-मुलाकत की सियासत को कोई भूल नहीं सकता है। इस जंग की सबसे खास बात यह थी कि इस पारिवारिक जंग में मुलायम सिंह यादव पूरी तरह से भाई शिवपाल के पक्ष में खड़े नजर आ रहे थे। जिसकी वजह से एक समय तो पिता मुलायम और पुत्र अखिलेश के बीच बोलचाल तक बंद हो गईं अखिलेश परिवार के साथ अलग घर में चले गये। परंतु अखिलेश ने पिता के खिलाफ बदजुबानी नहीं की। वह नेताजी को लगातार समझाते ही रहे।
नेताजी की शह पर ही शिवपाल यादव मुख्यमंत्री की इच्छा के खिलाफ प्रदेश में महागठबंधन की बात आगे बढाने लग गये। समाजवादी पार्टी के रजत जयंती समारोह यूपी में महागठबंधन की चाहत रखने वाले कई नेताओं का मंच पर जमावड़ा देखा गया। चर्चा यह भी होने लगी कि विधान सभा चुनाव का टिकट किसे दिया जाये यह फैसला मुलायम सिंह के दिशा निर्देशन में शिवपाल यादव तय करेंगे। परिवार की इस लड़ाई में पूरा परिवार दो हिस्सों में बंट गया था तो सरकार और संगठन पर भी यह बिखराव देखने को मिला। मगर कुछ मामलों में सियासत के चतुर खिलाड़ी समझे जाने वाले मुलायम सिंह ने शिवपाल की एक नहीं सुनी। महागठबंधन की खबरों को नेताजी ने सिरे से खारिज कर दिया। जब उनसे शिवपाल यादव की अखिलेश मंत्रिमंडल से बर्खास्तगी और उनकी(शिवपाल यादव) अखिलेश कैबिनेट में वापसी के संबंध में सवाल पूछा गया तो इसे मुलायम ने मुख्यमंत्री का अधिकार क्षेत्र बता कर शिवपाल को झटका दे दिया। मुख्यमंत्री के तौर पर अखिलेश के नाम पर भी मुलायम ने मोहर लगा दी। राज्यसभा मंे जब प्रोफेसर ने सपा का पक्ष रखा तो यूपी सपा के गलियारों में हड़कम्प मच गई। रामगोपाल की वापसी हो चुकी है वह भी मुलायम सिंह के हस्ताक्षर वाले पत्र के बाद जिसमें साफ-साफ रामगोपाल की वापसी की बात लिखी है। कहा जा रहा है जल्द ही अखिलेश समर्थक अन्य नेताओं का भी वनवास खत्म हो जायेगा। अब शिवपाल यादव प्रदेश अध्यक्ष तक सिमट कर रह गये हैं। हवा का रूख बदल चुका है। यह बात शिवपाल समझ गये है। इसके बाद यकायक अखिलेश को लेकर शिवपाल के तेवर ठंडे पड़ गये,लेकिन अखिलेश ने उन्हें आज तक कोई महत्व नहीं दिया। जबकि पार्टी में वापसी के बाद रामगोपाल यादव ने कहा, यह तो होना ही था, यह नेताजी की कृपा है। मैं पार्टी के खिलाफ कभी नहीं था, न ही कभी पार्टी के खिलाफ बयान दिया है। बताते चले पार्टी से निष्कासन के बावजूद रामगोपाल राज्यसभा में पार्टी के नेता पद पर कायम थे। सदन में उनका रुतबा बरकरार रहा। संसद के शीतकालीन सत्र के पहले दिन उन्होंने पार्टी का प्रतिनिधित्व करते हुए नोट बंदी के मामले पर केंद्र सरकार को घेरा था।
उधर, समाजवादी पार्टी में रामगोपाल यादव की वापसी पर अमर सिंह का कहना था कि मुलायम सिंह के इस फैसले पर उनको टिप्पणी करने का अधिकार नहीं है। मुलायम सिंह यादव की तारीफ करते हुए अमर ने कहा कि वो सर्वोपरि हैं और उनका फैसला सबको मान्य है। उन्होंने मुलायम की तुलना महादेव से की। अमर सिंह ने अपने बयान में कहा, मैंने पहले भी कहा था कि अखिलेश के बाप का नाम मुलायम सिंह और समाजवादी पार्टी के बाप नाम भी मुलायम सिंह है। मुलायम सिंह बापों के बाप हैं, वो जो चाहे वो कर लें. मुलायम सिंह का ये अधिकार है।‘ अमर सिंह ने जब पूछा गया कि रामगोपाल की पार्टी में वापसी के बाद अब राज्यसभा में आपकी भूमिका किस तरह से होगी, इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा, मैं हाउस में रामगोपाल के अंदर में वैसे ही काम करूंगा जैसे मल्लिकार्जुन खड़गे के अंदर में सोनिया गांधी काम करती हैं। मुलायम परिवार में कलह की बात को इनकार करते हुए अमर सिंह ने कहा कि अब सब कुछ ठीक है। ये लोग एक थाली में खाते हैं, और जब विरोधियों पर हमले की बारी आती है तो सभी एकजुट हो जाते हैं. इसलिए परिवार में मनमुटाव की बात अब गलत है। रामगोपाल की वापसी और नेताजी के महागठबंधन की खबरों से किनारा करने के साथ ही सपा में एक बार फिर अखिलेश का पलड़ा भारी नजर आने लगा है। लब्बोलुआब यह है कि शायद नेताजी को भी समझ में आ गया है कि अखिलेश के बिना समाजवादी पार्टी मजबूती के साथ आगे नहीं बढ़ सकती है। इसे सपा में अखिलेश युग के आगाज के रूप में देखा जा रहा है।

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संजय सक्‍सेना
मूल रूप से उत्तर प्रदेश के लखनऊ निवासी संजय कुमार सक्सेना ने पत्रकारिता में परास्नातक की डिग्री हासिल करने के बाद मिशन के रूप में पत्रकारिता की शुरूआत 1990 में लखनऊ से ही प्रकाशित हिन्दी समाचार पत्र 'नवजीवन' से की।यह सफर आगे बढ़ा तो 'दैनिक जागरण' बरेली और मुरादाबाद में बतौर उप-संपादक/रिपोर्टर अगले पड़ाव पर पहुंचा। इसके पश्चात एक बार फिर लेखक को अपनी जन्मस्थली लखनऊ से प्रकाशित समाचार पत्र 'स्वतंत्र चेतना' और 'राष्ट्रीय स्वरूप' में काम करने का मौका मिला। इस दौरान विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं जैसे दैनिक 'आज' 'पंजाब केसरी' 'मिलाप' 'सहारा समय' ' इंडिया न्यूज''नई सदी' 'प्रवक्ता' आदि में समय-समय पर राजनीतिक लेखों के अलावा क्राइम रिपोर्ट पर आधारित पत्रिकाओं 'सत्यकथा ' 'मनोहर कहानियां' 'महानगर कहानियां' में भी स्वतंत्र लेखन का कार्य करता रहा तो ई न्यूज पोर्टल 'प्रभासाक्षी' से जुड़ने का अवसर भी मिला।

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