चैत्र पूर्णिमा ही है हनुमान जयन्ती

Hanuman-Jayanti2-Wallpaperअशोक “प्रवृद्ध”

रामायण के प्रमुख पात्रों में से एक वेद – वेदांग पारंगत, महावीर श्रीराम भक्त श्रीहनुमान के पिता सुमेरू पर्वत के वानरराज राजा केसरी थे तथा माता अंजना थी। हनुमान आञ्जनेय, मारुति, बजरंग बली, अंजनि सुत, पवनपुत्र, संकटमोचन, केसरीनन्दन, महावीर, कपीश, बालाजी महाराज आदि अनेक नामों से भी जाने जाते हैं। इन्हें बजरंगबली के रूप में जाना जाता है क्योंकि इनका शरीर एक वज्र की तरह था। इन्द्र के वज्र से बाल्यकाल में ही इनकी हनु अर्थात ठुड्डी टूट गई थी। इसलिए इन्हें हनुमान कहा गया। हनुमान को पवन पुत्र के नाम से भी जाना जाता है और उनके पिता वायु देव भी माने जाते है । हवा अर्थात वायु के देवता पवनदेव ने हनुमान को पालने मे महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इसीलिए हनुमान को पवन-पुत्र भी कहा गया है। पुरातन ग्रंथों के अनुसार हनुमान मारुति अर्थात मरुत-नंदन अर्थात हवा के बेटा हैं। मारुत संस्कृत में जिसे मरुत् कहा गया है, का अर्थ हवा है। नंदन का अर्थ बेटा होता है। इन्हें संकटों को हरने वाला संकटमोचन भी कहा जाता है। तुलसीदास ने भी इन्हें संकट मोचन नाम तिहारो कहकर इस नाम की पुष्टि की है। भगवान के भक्ति की सबसे लोकप्रिय अवधारणाओं में से एक श्रीराम, भक्त हनुमान को भगवान शिव का ग्यारहवां रुद्रावतार, सबसे बलवान और बुद्धिमान माना जाता है। उनकी सर्वाधिक बड़ी उपलब्धि राम –रावण युद्ध में बानरों की सेना के अग्रणी के रूप में राक्षसराज रावण से लड़ाई मानी जाती है। रामायण के अनुसार वे जानकी के अत्यधिक प्रिय हैं। रामायण व पुराणों में हनुमान को भक्ति और शक्ति का अद्वितीय उदाहरण बताया गया है। मान्यतानुसार हनुमान का अवतार भगवान राम की सहायता के लिये हुआ। हनुमानजी के पराक्रम की असंख्य गाथाएं प्रचलित हैं। राम के साथ सुग्रीव की मैत्री और फिर वानरों की मदद से राक्षसों का मर्दन करने में हनुमान की कार्य प्रणाली, वीरता व सूझ –बूझ अत्यन्त प्रशंसनीय व सर्वप्रचलित आख्यान हैं। पौराणिक गाथाओं के अनुसार इस धरा पर जिन सात अथवा आठ मनीषियों को अमरत्व का वरदान प्राप्त है, उनमें बजरंगबली भी एक हैं। यही कारण है कि हनुमान को सदैव अमर रहने वाले सप्तचिरंजिवियों अथवा अष्टचिरंजीवियों में भी शामिल किया गया है। अर्थात वे अजर-अमर देवता हैं और उन्होंने मृत्यु को प्राप्त नहीं किया। यही कारण है कि त्रेतायुग के पश्चात् द्वापरयुग में भी उनकी भीम से मुलाकात हुई और प्रत्येक कुछ दशक के अंतराल पर श्रीलंका के एक जाति विशेष के लोगों से मिलने के लिए उनके मध्य हनुमान के आने की ख़बरें आज भी समाचार माध्यमों की सुर्खियाँ बनती रहती हैं। अभी गत वर्ष ही इस प्रकार की ख़बरें सभी समाचार माध्यमों में आई थी कि हनुमान जी श्रीलंका में एक स्थान पर कुछ लोगों के साथ देखे गए हैं।

ज्योतिषीय गणना के अनुसार श्रीहनुमान का जन्म 1 करोड़ 85 लाख 58 हजार 115 वर्ष पहले चैत्र पूर्णिमा को मंगलवार के दिन चित्र नक्षत्र व मेष लग्न के योग में सुबह 6.03 बजे हुआ था। मान्यतानुसार चैत्र मास की पूर्णिमा तिथि को ही राम भक्त हनुमान ने माता अंजनी के गर्भ से जन्म लिया था। इसीलिए चैत्र मास की पूर्णिमा के दिन श्रीहनुमान का जन्म दिन अर्थात हनुमान जयन्ती का पर्व मनाया जाता है। यह सर्वविदित तथ्य है कि प्रत्येक देवता अथवा व्यक्ति की जन्मतिथि एक होती है और वर्ष में एक बार ही जन्म दिवस अथवा उसे सम्बंधित व्रत मनाई जाती है, परन्तु हनुमान के सम्बन्ध में यह एक विचित्र बात है कि हनुमान जन्म से सम्बंधित व्रत हनुमान जयन्ती वर्ष में दो बार दो विभिन्न तिथियों को मनाई जाती हैं। इसका कारण यह है कि हनुमान की जन्मतिथि को लेकर मतभेद हैं। कुछ विद्वान् हनुमान जयन्ती की तिथि कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी मानते हैं तो कुछ चैत्र शुक्ल पूर्णिमा। विचित्र बात यह भी है कि इस विषय में पुरातन ग्रंथों में दोनों तिथियों के ही उल्लेख मिलते हैं, परन्तु इनके कारणों में भिन्नता बतलाई गई है। प्रथम जन्म दिवस है और दूसरा विजय अभिनन्दन महोत्सव।

सनातन भारतीय संस्कृति परम्परा में श्रीहनुमान को ब्रह्म का प्रतीक नहीं माना गया है, परन्तु भगवान श्रीराम के परम प्रिय भक्त के रूप में श्रीहनुमान की उपासना सर्वत्र होती देखी जाती है l वर्तमान में श्रीहनुमान जी की उपासना अत्यन्त व्यापक रूप में ग्राम-ग्राम, नगर-नगर तथा प्रत्येक तीर्थ स्थलों में ,राम मन्दिरों में, सार्वजनिक चबूतरादि स्थलों पर होता है l इसके साथ ही घर-घर में हनुमान जी की उपासना के अनेक स्तोत्र, पटल, पद्धतियाँ, शतनाम तथा सहस्त्रनाम एवं हनुमान चालीसादि का पाठ होता है l कपिरूप में होने पर भी वे समस्त मंगल और मोदों के मूल कारण, संसार के भार को दूर करने वाले तथा रूद्र के अवतार माने गये हैं l श्रीहनुमानजी को समस्त प्रकार के अमंगलों को कोसों दूर कर कल्याण राशि प्रदान करने वाला तथा भगवान की तरह साधु संत, देवता-भक्त एवं धर्म की रक्षा करने वाला माना जाता है l रामायण एवं पुराणादि ग्रन्थों के अनुसार हनुमान जी के ह्रदय में भगवान श्रीसीताराम सदा ही निवास करते हैं l

पौराणिक मान्यतानुसार अंजनी के कोख से हनुमान का जन्म हुआ। जन्म के पश्‍चात् एक दिन इनकी माता फल लाने के लिये इन्हें आश्रम में छोड़कर चली गईं। जब बालक हनुमान को भूख लगी तो वे उगते हुये सूर्य को फल समझकर उसे पकड़ने आकाश में उड़ने लगे। उनकी सहायता के लिये पवनदेव भी तेजी से चले। सूर्य ने उन्हें अबोध बालक समझकर अपने तेज से नहीं जलने दिया। लेकिन जिस समय हनुमान सूर्य को पकड़ने के लिये लपके, उस दिन व उसी समय पर्व तिथि होने से सूर्य को ग्रसने के लिए राहु सूर्य पर ग्रहण लगाना चाहता था। हनुमान ने सूर्य के ऊपरी भाग में जब राहु का स्पर्श किया तो वह भयभीत होकर वहाँ से भाग खड़ा हुआ और उसने इन्द्र के पास जाकर शिकायत किया की कि आपने तो मुझे अपनी क्षुधा शान्त करने के साधन के रूप में सूर्य और चन्द्र प्रदान किये थे। परन्तु आज अमावस्या के दिन जब मैं सूर्य को ग्रस्त करने के लिए गया तो देखा कि एक और दूसरा राहु सूर्य को पकड़ने जा रहा है। राहु की बात सुनकर इन्द्र घबरा गये और उसे साथ लेकर सूर्य की ओर चल पड़े। राहु को आता देखकर हनुमान सूर्य को छोड़ राहु पर झपटे। इस पर राहु ने इन्द्र को रक्षा के लिये पुकारा तो इन्द्र ने हनुमान पर वज्रायुध से प्रहार कर दिया, जिससे बालक हनुमान एक पर्वत श्रृंखला पर गिर पड़े और उनकी बायीं हनु अर्थात ठुड्डी टूट गई। हनुमान की यह दशा देखकर वायुदेव को अत्यंत क्रोध आया और उन्होंने उसी क्षण अपनी गति रोक दिया। इससे संसार में त्राहि- त्राहि मच गई। और इससे बचाव के लिए सुर, असुर, यक्ष, किन्नर आदि सभी ब्रह्मा की शरण में गये। ब्रह्मा उन सबको लेकर वायुदेव के पास गये। वे मूर्छित पड़े बालक हनुमान को गोद में लिये उदास बैठे थे। जब ब्रह्मा ने बालक हनुमान को जीवित किया तो वायुदेव ने अपनी गति का संचार करके संसार क्र समस्त प्राणियों की पीड़ा दूर की। फिर ब्रह्मा ने बालक हनुमान को वरदान दिया कि कोई भी शस्त्र इसके अंग को हानि नहीं कर सकता। इन्द्र ने शरीर को वज्र से भी कठोर होने का वरदान दिया। सूर्यदेव ने अपने तेज का शतांश प्रदान करते हुए शास्त्र मर्मज्ञ होने का भी आशीर्वाद दिया। वरुण ने अपने पाश और जल से बालक के सदा सुरक्षित रहने का तथा यमदेव ने अवध्य और नीरोग रहने का आशीर्वाद दिया। यक्षराज कुबेर, विश्वकर्मा आदि देवों ने भी अमोघ वरदान दिये। पौराणिक गाथाओं के अनुसार इन्द्र के अंजनीपुत्र पर वज्र का प्रहार किये जाने से से उनकी हनु अर्थात ठोड़ी टेढ़ी हो जाने के कारण उनका नाम हनुमान पड़ा। वैसे तो वर्तमान में चैत्र शुक्ल नवमी श्रीरामनवमी के दिन राम के साथ ही इनकी पूजा- अर्चना कर हनुमान पताका अर्थात कपिध्वज लहराने तथा जुलूस निकलने की परम्परा कायम है, परन्तु हनुमान के जन्म दिन चैत्र मास की पूर्णिमा के दिन हनुमान की विशेष पूजा-आराधना की जाती है तथा व्रत किया जाता है। मूर्ति पर सिन्दूर चढ़ाकर हनुमान का विशेष श्रृंगार करने के उपरांत रामभक्तों द्वारा स्नान ध्यान, भजन-पूजन और सामूहिक पूजा में हनुमान चालीसा और हनुमान की आरती के विशेष आयोजन किये जाते हैं। मान्यता है कि भक्ति और शक्ति का बेजोड़ संगम मारुतिनंदन को चोला चढ़ाने से जहां सकारात्मक ऊर्जा मिलती है वहीं बाधाओं से मुक्ति भी मिलती है। पौराणिक मान्यतानुसार हनुमान को प्रसन्न करने के लिए शनि को शांत करना चाहिए। जब हनुमानजी ने शनिदेव का घमंड तोड़ा था तब सूर्यपुत्र शनिदेव ने हनुमान को वचन दिया कि उनकी भक्ति करने वालों की राशि पर आकर भी वे कभी उन्हें पीड़ा नहीं देंगे। मान्यता है कि बजरंगबली की उपासना करने वाला भक्त कभी पराजित नहीं होता। हनुमान का जन्म सूर्योदय के समय बताया गया है इसलिए इसी काल में उनकी पूजा-अर्चना और आरती का विधान है।

उल्लेखनीय है कि भारतीय संस्कृति में सर्वोच्च स्थान प्राप्त सेवा भाव अर्थात सेवा का कार्य निष्काम कर्म करने के लिए प्रेरित करती है। इस सेवाभाव का उत्कृष्ट उदाहरण हैं केसरी और अंजनी के पुत्र महाबली हनुमान। बाल्मीकि रामायण में वर्णित हनुमान के जीवन से यह प्रेरणा मिलती है कि बिना किसी अपेक्षा के सेवा करने से व्यक्ति सिर्फ भक्त ही नहीं, भगवान भी बन सकता है। ऐसा लगता है कि जैसे हनुमान के चरित्र ने राम के आदर्श को गढ़ने में मुख्य भूमिका निभाई हो। हनुमान के चरित्र से जीवन के सूत्र यथा, वेद – वेदांग विद, वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय क्षमता जैसे गुणों को अपनाकर हम सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। हनुमान अपार बलशाली, महावीर और विद्वता में अद्वितीय हैं फिर भी उनके भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं। यह सर्वविदित तथ्य है कि थोड़ी शक्ति या बुद्धि प्राप्त कर व्यक्ति अहंकार से भर जाता है, परन्तु बाल्यकाल में ही सूर्य को ग्रास बना लेने वाले हनुमान राम के समक्ष मात्र सेवक की भूमिका में सदैव रहते हैं। सेवा ही उनके जीवन का कल्याणकारी मंत्र है। यही कारण है कि जिसने भी अहंकार किया, उसका मद हनुमान ने चूर कर दिया। सीताहरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे, अपितु अहंकारी रावण का मद चूर-चूर कर दिया। जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे ही दहन कर दिया। यह रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था। अतुल बलधामा अर्थात अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान के भीतर रंच मात्र भी अहंकार नहीं था। जहां उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, सीता और माता अंजनी के प्रति सदा विनम्र भी रहे। उन्होंने अपने सभी पराक्रमों का श्रेय अपने भगवान श्रीराम को ही दिया। और यही श्रीहनुमान के आदर्श व्यक्तित्व को प्रतिविम्बित करता है ।

Previous articleअपनी ही बारूद से झुलसता पाकिस्तान
Next articleसभ्य समाज की असभ्यता’-भाग-2
अशोक “प्रवृद्ध”
बाल्यकाल से ही अवकाश के समय अपने पितामह और उनके विद्वान मित्रों को वाल्मीकिय रामायण , महाभारत, पुराण, इतिहासादि ग्रन्थों को पढ़ कर सुनाने के क्रम में पुरातन धार्मिक-आध्यात्मिक, ऐतिहासिक, राजनीतिक विषयों के अध्ययन- मनन के प्रति मन में लगी लगन वैदिक ग्रन्थों के अध्ययन-मनन-चिन्तन तक ले गई और इस लगन और ईच्छा की पूर्ति हेतु आज भी पुरातन ग्रन्थों, पुरातात्विक स्थलों का अध्ययन , अनुसन्धान व लेखन शौक और कार्य दोनों । शाश्वत्त सत्य अर्थात चिरन्तन सनातन सत्य के अध्ययन व अनुसंधान हेतु निरन्तर रत्त रहकर कई पत्र-पत्रिकाओं , इलेक्ट्रोनिक व अन्तर्जाल संचार माध्यमों के लिए संस्कृत, हिन्दी, नागपुरी और अन्य क्षेत्रीय भाषाओँ में स्वतंत्र लेखन ।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

17,871 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress