नववर्ष शुभ कहने से ही शुभ कैसे हो सकता है ?

इक़बाल हिंदुस्तानी

जिसके प्रति शुभकामनायें व्यक्त करें उसके लिये काम भी करें ! ‘नववर्ष शुभ हो’ ‘नया साल मुबारक’ और ‘हेप्पी न्यू इयर’ मात्र ये कुछ जुमले हैं जो हर साल हर आदमी एक दूसरे से 31 दिसंबर से लेकर 1 जनवरी तक बेसाख़्ता बेसबब और बेमतलब बोलता है। इसका एक ताज़ा उदाहरण है कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह की अन्ना हज़ारे को दी गयी नववर्ष की बधाई। अरे भाई पूरे साल तो आप इस बुजुर्ग को ‘उूपर’ पहुंचाने का इंतज़ाम करते रहे। कौन सा ऐसा आरोप, षड्यंत्र और दुर्भावना रही होगी जो इस वयोवृध्द गांधीवादी नेता पर कांग्रेस की तरफ नहीं थोपी गयी। उनको सर से पांव तक भ्रष्टाचार में डूबा तक बताया गया। अब भी बिना किसी सबूत के उनके तार लगातार संघ परिवार से जोड़े जा रहे हैं। कहने का मतलब यह है कि चाहे दिग्विजय सिंह हों या कोई और वह क्या अधिकार रखते हैं इस झूठ को बोलने का कि नववर्ष शुभ हो….।

आज के दौर में जब परिवार में सब सदस्य एक दूसरे के बारे में सद्भावना नहीं रखते। स्वार्थ और ईर्ष्या इतनी हावी है कि आदमी रिश्तों नातों में ही नहीं दोस्ती और भाईचारे मंे भी दगा कर रहा है। गुरू शिष्य परंपरा तक कलंकित हो रही है। पड़ौसी पड़ौसी की तरक्की से जल रहा है। भाई भाई के खून का प्यासा है वहां नये साल की मुबारकबाद खोखली लगती है। आदमी दोगला जीवन जी रहा है। जिस आदमी को दूर से देखकर मन ही मन गाली निकालता है पास आने पर ऐसी नौटंकी करता है मानो उससे ख़ास कोई दूसरा उसके लिये हो ही नहीं सकता। यही हाल तमाम संस्थाओं, कार्यालायों और स्कूल कालेजों का है। वे बच्चे जो अपने मास्टर को सुबह सबसे पहले हैप्पी न्यू इयर कहते हैं, पीठ पीछे आपस में बात करते हैं तो सबसे पहले तो उस शिक्षक को उसके असली नाम से न पुकार कर कोई अजीब सा मज़ाकिया या अपमानजनक नाम देंगे और फिर उसपर घटिया सा कमेंट ज़रूर करेंगे।

यही हाल दुकानदार और उसके ग्राहक का है। यही हाल मरीज़ और डाक्टर का है। जो चिकित्सक पहले भगवान का दूसरा रूप माना जाता था वह आज साक्षात ‘यमराज’ नज़र आने लगा है। वजह उसका रोगी को धोखा देकर लूटना, कमीशन खाना और जानलेवा लापरवाही से इलाज करना। ऐसे ही जो वादी प्रतिवादी वकील साहब को नये साल की दुआये देता है, दिल से बद्दुआ देता है। वजह वही वकील साहब जमकर चूना लगा रहे हैं। ऐसे ही पत्रकार महोदय दिखाई देंगे तो बड़े बड़े व्यस्त लोग उनके लिये सम्मान में खड़े हो सकते हैं लेकिन जाते ही वही बुराई कि ऐसा है वैसा है। आजकल विवाह आदि की पार्टी में जायेंगे तो सब नेताओं को कोसते मिलेंगे लेकिन जब नया साल आता है तो यही नेता जी सबसे पहले शुभकामना लेते या देते दिखाई देंगे।

सरकार, यानी मंत्री, एमपी और एमएलए का भी कमोबेश यही हाल है जो नववर्ष की बधाई देंगे तो दिखावे के तौर पर। ज़रा कभी फुर्सत के लम्हों में सोचिये कि ऐसे कितने लोग हैं जिनको हम या वे हमें वास्तव में प्यार, शुभकामना और सम्मान देते हैं। कहने का मतलब यह है कि हम जिनको नववर्ष की बधाई दें अगर दिल साफ करके ऐसा नहीं करते तो हमारे नववर्ष शुभ हो मात्र कह देने से नववर्ष शुभ नहीं हो जायेगा। हम यहां उदाहरण स्वरूप अपवादों की चर्चा नहीं करना चाहते बल्कि हम तो उस नंगी और कड़वी सच्चाई को देखना चाहते हैं जो आज हमारे समाज में उदारीकरण, निजीकरण और वैष्वीकरण की पूंजीवादी नीतियों को अपनाने और अपनी महान भारतीय सभ्यता और संस्कृति को त्यागने के बाद होती जा रही है। यह विडंबना और त्रासदी ही कही जा सकती है कि जिन गोरों और पश्चिम से हम घृणा और ईर्ष्या रखते थे आज उनकी ही नक़ल करके उनके ही नक़्शे कदम पर सरपट दौड़ रहे हैं और वे इसके विपरीत हमारे योग और अध्यात्म का महत्व समझकर हमारे रंग में रंग रहे हैं।

हम समझते हैं कि हमारा काम मात्र इतना कह देने से ख़त्म हो गया लेकिन हमारा मानना है कि हमारा काम यहीं से शुरू होता है। अगर हम वास्तव में किसी से दिली हमदर्दी रखते हैं तो उसको बधाई दें या ना दें लेकिन उसके लिये हमें सदा तैयार रहना होगा उसके भले के लिये। उसके दुख सुख का साथी बनना होगा। उसके परिवार को अपना परिवार मानकर अगर आधी रात या संकट में कभी भी हमारी ज़रूरत उसको होती है तो हमें उसके लिये अपना हर संभव मदद का प्रयास करना होगा वर्ना तो नववर्ष शुभ हो कहना मात्र एक औपचारिकता और परंपरा से अधिक कुछ भी नहीं होगा चाहे आप ऐसा अंग्रेजी न्यू इयर पर करें और चाहे नवसंवत्सर और हिजरी व अन्य किसी नये साल पर अंतर कुछ नहीं है।

उसके होंटो की तरफ़ न देख वह क्या कहता है,

उसके क़दमों की तरफ़ देख वह किधर जाता है।

 

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इक़बाल हिंदुस्तानी
लेखक 13 वर्षों से हिंदी पाक्षिक पब्लिक ऑब्ज़र्वर का संपादन और प्रकाशन कर रहे हैं। दैनिक बिजनौर टाइम्स ग्रुप में तीन साल संपादन कर चुके हैं। विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में अब तक 1000 से अधिक रचनाओं का प्रकाशन हो चुका है। आकाशवाणी नजीबाबाद पर एक दशक से अधिक अस्थायी कम्पेयर और एनाउंसर रह चुके हैं। रेडियो जर्मनी की हिंदी सेवा में इराक युद्ध पर भारत के युवा पत्रकार के रूप में 15 मिनट के विशेष कार्यक्रम में शामिल हो चुके हैं। प्रदेश के सर्वश्रेष्ठ लेखक के रूप में जानेमाने हिंदी साहित्यकार जैनेन्द्र कुमार जी द्वारा सम्मानित हो चुके हैं। हिंदी ग़ज़लकार के रूप में दुष्यंत त्यागी एवार्ड से सम्मानित किये जा चुके हैं। स्थानीय नगरपालिका और विधानसभा चुनाव में 1991 से मतगणना पूर्व चुनावी सर्वे और संभावित परिणाम सटीक साबित होते रहे हैं। साम्प्रदायिक सद्भाव और एकता के लिये होली मिलन और ईद मिलन का 1992 से संयोजन और सफल संचालन कर रहे हैं। मोबाइल न. 09412117990

3 COMMENTS

  1. इक़बाल जी आपका लेख और उसपर विभिन्न विद्वानों की टिप्पणियां पढ़ीं. खासकर डॉ.पुरुषोत्तम मीना जी की. आपने ठीक ही कहा है की हम सदैव अन्ग्रेजों का विरोध करते रहे और आज उन्ही की परम्पराओं को धड़ल्ले से अपना रहे हैं. आजकल बाजार वाद का बोलबाला है. नववर्ष के बहाने से ही बहुत से होटलों और रेस्तराओं को ग्राहकों को तरह तरह के आकर्षक व मनभावन कार्यक्रमों के जरिये बुलाने और उनके जेबों से मोती रकमें निकलवाने का मौका मिल जाता है. नववर्ष की पूर्व संध्या पर हजारों लाखों खर्च करने वाले इन नव धनाढ्य वर्ग के लोगों से यदि नव वर्ष की पूर्व संध्या को सड़क के किनारे ठण्ड से ठिठुरते किसी गरीब को एक रजाई देने को कहा जाये या पच्चीस हजार रुपये प्रतिव्यक्ति की दर से नए साल की पार्टी का लुत्फ़ लेने वालों से किसी गरीब के बच्चे की साल भर की पढाई के लिए कुछ हजार रुपये देने को कहा जाये तो इन्हें सांप सूंघ जायेगा. ये हमारी व्यवस्था की विसंगति ही है. एक और चलन आज कल बढ़ गया है. फरवरी में विभिन्न नामों से दिन मानाने और अंत में चौदह फरवरी को वेलेन्तायीं डे मानाने का फेशन चल पड़ा है. जबकि हजारों सालों से हमारे देश में फरवरी मॉस में वसंत उत्सव मानाने की परंपरा रही है और इसका सम्बन्ध भी श्रृंगार रस से ही है.कहानी के अनुसार जब शिवजी का तीसरा नेत्र खुलने के कारण कामदेव भस्म हो गए तो सब लोग उनके पास गए और कहा की यदि कामदेव नहीं होंगे तो श्रृष्टि कैसे चलेगी?सोच विचार कर शिवजी ने कहा की जब वसंत ऋतू आएगी तो सारी प्रकृति पर कामदेव का वास हो जायेगा और लोग श्रंगारिक भाव से भर उठेंगे जिससे सृष्ठी का विकास हो सकेगा.तो वसंत ऋतू के आते ही पूरी प्रकृति में नव रस का संचार होने लगता है. ऐसे में यदि वेलेन्तायीं डे के स्थान पर वसंत उत्सव मनाया जाये तो ज्यादा उपयुक्त होगा और इसके लिए वसंत पंचमी से लेकर होलिका तक चालीस दिन का लम्बा समय है न की वेलेन्तायीं डे की तरह केवल एक दिन. इक़बाल जी अपने विचार खुलकर लिखते रहिये. आश्चर्य है की मीना जी को हर खुले विचारों में संघ की महक आ जाती है इसी कारण से उन्होंने आपको भी संघ की विचारधारा से प्रभावित बता दिया है.

  2. निहायत घटिया रश्मो रिवाजो का आज बोल बाला है क्योकि इसी में लोग अपना बडप्पन समझते है .

  3. श्री इकबाल हिन्दुस्तानी जी|
    मैं कुछ समय से आपके लेख और टिप्पणियों को पढकर आपके विचारों को जानने का प्रयास करता रहा हूँ| प्रस्तुत लेख को पढकर मैं आपके लेख और विचारों पर सीधी टिप्पणी कर रहा हूँ|

    लेख में जो कुछ लिखा गया है, वह आज के समय में खोखले आदर्श की खोखली हिमायत के आलावा कुछ भी नहीं है! लगता है की लेखक संघ की विचारधारा से अत्यधिक प्रभावित है! और कॉंग्रेस से अत्यधिक खफा है|

    अन्ना के बारे में दिग्विजय सिंह के मन में क्या है ये तो मुझे नहीं पता, लेकिन मैं ये जरूर जानता हूँ की अन्ना जैसे अपराधी को जो लोगों को विशेषकर निचले तबके के लोगों को खम्बों से बांधकर मारता पीटता है, उसे तो जेल में होना चाहिए और जब तक ऐसा नहीं हो हर मानवता के पुजारी को अन्ना को ऐसी शभकामनाएँ अवश्य देनी चाहिए कि अन्ना नए वर्ष में इस देश को बर्बाद नहीं करे! अपराध करना छोड़ दे और दमित लोगों को भी जीने दे!

    इकबाल जी आपको अन्ना की हकीकत तब पता लगेगी, जब आप अन्ना के गॉंव में जाकर बकरीद के दिन बकरे की कुर्बानी देकर दिखा दें! यह अलग बात है कि कि मैं खुद किसी भी जीव की हत्या या शराब से सेवन के खिलाफ हूँ, लेकिन मेरे खिलाफ होने से किसी को क्या फर्क पड़ता है! संसार में बहुसंख्यक लोग मेरे विचारों के समर्थक नहीं हैं! इसलिए दुनिया में अन्ना जैसों के लिए जेल बनी हैं!

    अत: लेख के मूलाधार अन्ना का उदाहरण देकर कही गयी आपकी इस लेख की महत्वपूर्ण बात भी अन्ना की भांति ढोंग ही प्रतीत हो रही है! बेशक आपने एक ठीक विषय को उठाया है, लेकिन जब आपकी खुद की सोच ही अन्ना और भारत के योग के इर्द-गिर्द ही घूम रही है तो ये भी पहली नजर में मात्र ढोंग ही है!

    संसार भारत से अधिकतर क्षेत्रों में आगे ही नहीं, बल्कि बहुत आगे है! यदि योग ही जीवन का अंतिम सत्य होता और योग में संघ या मनुवादियों को पूर्ण विश्वाश और आस्था रही होती तो (जिनसे आप प्रभावित लगते हैं? तो भाजपा की सत्ता में योग को अनिवार्य कर दिया गया होता और ऐलोपथी के सभी कॉलेज बंद कर दिए होते! आयुर्वेद पर नब्बे फीसदी बजट खर्च होता!

    हॉं ये बात सच है कि अधिकतर लोगों को ढोंग को उसी प्रकार से बढ़ावा देने की आदत है जैसे कि आपको ढोंगी अन्ना को बढ़ावा देने की आदत है! इसी वजह से आपकी नज़र के अनुसार हम नव वर्ष या ईद या दिवाली पर या रोजाना नमस्ते, सलाम, शुभकामना देते समय आपको ढोंग करते दिखाई देते हैं! लेकिन मनुवादी कहते हैं कि चौबीस घंटे में हर व्यक्ति के जीवन में एक क्षण ऐसा होता है, जिसमें कही गयी बात सच होती है! इसलिए हर क्षण को महत्वपूर्ण मानना चाहिए और हर कही गयी बात को भी!

    जहॉं तक मेरा मानना है दुआ और शुभकामनाएँ जितनी हों कम हैं, बेशक बेमन से ही क्यों न हों!

    यदि हम हर दिखावे की बात को बंद कर देंगे तो फिर नंगे होकर घूमने को तैयार रहें! रंगों का मतलब समाप्त हो जायेगा! बहुत सारी बातें निरर्थक हो जायेंगी| अनेक धर्म धराशायी हो जायेंगे| शिक्षा व्यवस्था चरमरा जायेगी| देश की आजदी का जश्‍न और गणतन्त्र दिवस मनाने या त्यौहारों को मानने के लिये अवकाश स्वीकृति या सार्वजनिक अवकाश घोषित करना भी ढोंग के अलावा और क्या लगेगा?

    अंतिम बात सच्चे हमदर्दों और सच्चे लोगों की समाज में कमी नहीं है, बशर्ते हम खुरापतियों के घेरे से बाहर निकलें! यह एक कड़वा वैज्ञानिक सत्य है कि जो व्यक्ति जैसे लोगों के बीच में रहेगा उसका नजरिया भी वैसा ही हो जायेगा!

    मनोवैज्ञानिकों और मानव व्यवहार शास्त्रियों ने सिद्ध भी किया है कि किसी भी रुग्ण मानसिकता के व्यक्ति को उसकी सोच से बाहर कुछ भी नजर नहीं आता, जबकि संसार अच्छियों से भरा पड़ा है! देखने की नजर चाहिये फूल ही फूल खिले हुए हैं| हर ओर सुगन्ध और सौन्दर्य बिखरा पड़ा है!

    -डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’
    सम्पादक-प्रेसपालिका (पाक्षिक), जयपुर
    ०१४१-२२२२२२५, ९८२८५-०२६६६

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