हरियाणा-महाराष्ट्र में मोदी मैजिक से ज़्यादा सेकुलर असफलता!

 

 

 haryana and maharashtraएंटी इनकम्बैंसी के साथ ही विकास का विकल्प बन गयी भाजपा?

   लोकसभा चुनाव के बाद यह पहला मौका था जब देश की निगाहें हरियाणा और महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव परिणामों पर लगी थीं। हालांकि इससे पहले पूरे देश में लोकसभा और विधानसभाओं के जो उपचुनाव हुए थे उनको लेकर भी भाजपा विरोधी सेकुलर दल यह ऐलान करते नहीं थक रहे थे कि देश से भगवा लहर का सफाया होना शुरू हो चुका है लेकिन निष्पक्ष विश्लेषण करने वाले चुनावी पंडितों का कहना सही था कि इस तरह के छिटपुट चुनाव नतीजों से कोई परिणाम निकालना जल्दबाज़ी होगी। इसमें कोई दो राय नहीं कि हरियाणा में अपने बल पर बहुमत लाकर और महाराष्ट्र में सबसे बड़ा दल बनकर भाजपा ने अपने स्टार प्रचारक प्रधनमंत्री मोदी के बल पर एक बार फिर यह साबित किया है कि मोदी अभी भी लोगों में विकास की उम्मीद जगाने में कामयाब हैं।

   हालांकि महाराष्ट्र में भाजपा का शिवसेना से दशकों पुराना गठबंधन टूट गया था जिससे यह लगता था कि दोनों ही दलों को नुकसान उठाना पड़ेगा लेकिन कांग्रेस और एनसीपी के अलग अलग रास्ता अपनाने से उनका विरोधी गठबंधन भी धराशाही होने से मुकाबला न केवल रोचक हो गया बल्कि मनसे और पहली बार महाराष्ट्र के चुनाव में कूदी इत्तेहादुल मुस्लिमीन ने चुनाव को बहुआयामी बना दिया। इससे वहां चौतरफा और कहीं कहीं षष्टकोणीय लड़ाई हो गयी। इसका नतीजा यह हुआ कि भाजपा के पक्ष में मोदी के धुआंधार प्रचार करने और केंद्र में उसके सत्ता में होने से उसके पक्ष में मतदाताओं का मामूली झुकाव भी उसकी सीटें पहले से दो ढाई गुनी करने में कामयाब हो गया।

   हालांकि क्षेत्रीय अस्मिता के नाम पर शिवसेना ने मराठी मानुष को अपने पक्ष में काफी हद तक गोलबंद किया लकिन उसके जवाब में हर तरह से शक्तिशाली गुजराती और उत्तरभारतीय वोटोें के एक साथ आने से शिवसेना कमज़ोर पड़ गयी। उधर इस चुनाव में 15 साल से सत्ता का सुख भोग रही कांग्रेस और राकापा से लोगों का एंटीइनकम्बैंसी और भ्रष्टाचार के आरोपों की वजह से भी काफी मोहभंग हो चला था। करप्शन की हालत यह थी कि एनसीपी के कई बड़े नेता और पूर्व मंत्री घोटालों की जांच के डर से भाजपा को सरकार बनाने के लिये बिना मांगे बिना शर्त बेशर्मी से बाहर से समर्थन देने का खुलेआम ऐलान कर रहे हैं लेकिन मोदी ने शरद पवार के बारे में चुनाव में जिस तहर की भाषा का कर्कश शब्दों में इस्तेमाल किया है इससे उनको एनसीपी का सपोर्ट लेने में हिचक हो रही है।

   भाजपा की पहली च्वाइस शिवसेना ही है लेकिन गठबंधन में बड़े भाई का अचानक छोटा बनना एक तो इतना आसान नहीं होता दूसरे भाजपा ने उत्तरप्रदेश में मायावती को छोटा दल होते हुए भी मुख्यमंत्री बनाने का रास्ता दिखाकर एक गलत और सत्तालोलुप मिसाल पहले से बना रखी है जिससे शिवसेना का एक लगना गलत भी नहीं है कि शायद भाजपा थोड़ा ना नकुर के बाद उसकी शर्तों पर समर्थन लेकर सरकार बनाने को तैयार हो सकती है। इसमें कोई दो राय भी नहीं शिवसेना भाजपा की स्वाभाविक सहयोगी दल है। उसका साथ भी 25 साल पुराना है। भाजपा बाल ठाकरे की आत्मा को भी तकलीफ नहीं देना चाहेगी जिससे आज नहीं तो कल शिवसेना से लेदेकर समझौता हो ही जायेगा।

   दिलचस्प बात यह है कि एनसीपी ने बिना शर्त सपोर्ट का ऐलान करके कम से शिवसेना की अकड़ ज़रूर ढीली कर दी है अब यह अलग बात है कि चाहे उससे भाजपा समर्थन ले या ना ले क्योंकि एनसीपी की नज़र राज्य में सपोर्ट से सरकार बनवाकर केंद्र में शरद पवार के लिये देर सवेर कोई मलाईदार मंत्रालय हड़पने पर भी है। इसी तरह सत्ता विरोधी लहर का सामना हरियाणा में कांग्रेस के काबू से बाहर हो गया और रही सही कसर वहां डीएलएफ यानी दामाद जी राबर्ट वढेरा भूमि घोटाला ने पूरी कर दी। इसके साथ कांग्रेस लोगों को यह विश्वास दिलाने में नाकाम रही कि वह सबका विकास कर सकती है। उस पर इन चुनावों में भी मोदी और उनकी भाजपा यह आरोप चिपकाने में कामयाब होती नज़र आये कि कांग्रेस सिर्फ अल्पसंख्यकों और उनमें भी मुसलमानों का भला करना चाहती है।

   भाजपा का सबका विकास सबका साथ और तुष्टिकरण विरोध का कॉकटेल एक बार फिर चुनाव में लोगांे के सर चढ़कर बोला। इससे यह बात सामने आई कि अभी मोदी और भाजपा से देश के लोगोें का मोहभंग नहीं हुआ है जैसा कि मोदी विरोधी सेकुलर दल लगातार दावा कर रहे थे। यह बात इसलिये भी समझ में आती है कि मतदाताओं का एक बड़ा वर्ग युवा है जिसको विकास का नारा बेहद प्रभावित और आकृषित कर रहा है। यही वजह है कि भाजपा ने अभी अपना हिंदूवादी एजेंडा एक तरफ रखा हुआ है। उसका सारा ध्यान फिलहाल विदेशी निवेश और मेक इन इंडिया पर ही केंद्रित हो रहा है। इन चुनाव नतीजों से यूपी में सत्ता संभाले सपा की चूलें एक बार फिर हिलने लगीं हैं।

   हालांकि लोकसभा चुनाव में बुरी तरह मुंह की खाने के बाद आईसीयूी में पड़ी सपा 11 में से 8 विधानसभा उपचुनाव जीतकर अभी वापस होश में आने की कोशिश कर ही रही थी लेकिन इन दो विधानसभाओं के चुनाव परिणामों ने उसके माथे पर फिर से चिंता की रखायें खींच दी हैं। इस दावे से असहमत हुआ जा सकता है कि भाजपा केंद्र ही नहीं जिन राज्यों में चुनाव जीतकर सत्ता में आ रही है वहां अपना कार्यकाल पूरा करते करते अलोकप्रिय हो सकती है क्योंकि उसके पास विकास का न तो कोई सुनियोजित एजेंडा है और ना ही हर राज्य में मुख्यमंत्री बनाने को उसके पास मोदी जैसा काम करने वाला नेता है।

   साथ ही पूंजीपतियों, व्यापारियों, उच्चवर्गों और भ्रष्ट नेताओं व अधिकारियों के हित साधकर वह आम आदमी के हित में चाहकर भी कोई बड़ा और उल्लेखनीय काम नहीं कर पायेगी यह बात राजनीति के जानकार अभी से दबी ज़बान से कहने लगे हैं। बहरहाल देश को कांग्रेस से मुक्त करने का उसका अभियान ज़रूर सफल होने लगा है।

मुझे क्या ग़रज़ पड़ी है तेरी हस्ती मिटाने की,

तेरे आमाल काफ़ी है तेरी तबाही के लिये ।।

 

 

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इक़बाल हिंदुस्तानी
लेखक 13 वर्षों से हिंदी पाक्षिक पब्लिक ऑब्ज़र्वर का संपादन और प्रकाशन कर रहे हैं। दैनिक बिजनौर टाइम्स ग्रुप में तीन साल संपादन कर चुके हैं। विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में अब तक 1000 से अधिक रचनाओं का प्रकाशन हो चुका है। आकाशवाणी नजीबाबाद पर एक दशक से अधिक अस्थायी कम्पेयर और एनाउंसर रह चुके हैं। रेडियो जर्मनी की हिंदी सेवा में इराक युद्ध पर भारत के युवा पत्रकार के रूप में 15 मिनट के विशेष कार्यक्रम में शामिल हो चुके हैं। प्रदेश के सर्वश्रेष्ठ लेखक के रूप में जानेमाने हिंदी साहित्यकार जैनेन्द्र कुमार जी द्वारा सम्मानित हो चुके हैं। हिंदी ग़ज़लकार के रूप में दुष्यंत त्यागी एवार्ड से सम्मानित किये जा चुके हैं। स्थानीय नगरपालिका और विधानसभा चुनाव में 1991 से मतगणना पूर्व चुनावी सर्वे और संभावित परिणाम सटीक साबित होते रहे हैं। साम्प्रदायिक सद्भाव और एकता के लिये होली मिलन और ईद मिलन का 1992 से संयोजन और सफल संचालन कर रहे हैं। मोबाइल न. 09412117990

1 COMMENT

  1. सेक्युलर का नारा अब लोग नकार चुके हैं,और यदि भा ज पा ने सहिष्णुता की नीति अपनाई, व अपने विकास के वादे को पूरा किया तो लोग इस नारे को ही भूल जायेंगे। पिछड़े व अनुसुचित वर्ग ल प्रतिनिधित्व करने की बात अब कांग्रेस को भूल जनि चाहिए इनकी राजनीती करने वाले क्षेत्रीय दल बहुत खड़े हो गए हैं, जो जीते नहीं तो क्या वोटों का गणित तो बिगाड़ ही देते हैं ,मुस्लिम कार्ड भी अब उतना प्रभावी नहीं रहा, क्योंकि अब उनमें भी चेतना आ गयी है वे समझ गए हैं कि उनहें कांग्रेस ने केवल प्रयोग ही किया है। साम्प्रदायिक माहौल बिगाड़ने में उनका प्रयोग कर , समाज के ताने बाने को क्षति पहुँचाने में कांग्रेस पीछे नहीं रही है ,और इसी का अंजाम सामने है , जिसका प्रभाव दूरगामी होगा यदि भा ज पा ने कोई गलती नहीं की तो यह और भी पार्टी के लिए चिंताजनक होगा

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