जरूर पढ़ें राजनीति

मानवीयता पर राजनीति हावी…

-नरेश भारतीय-

Arvind-kejriwal-l-pti

आआपा के अरविन्द केजरीवाल स्वयं को किसानों का हितचिन्तक सिद्ध करने के लिए अपने राज्य दिल्ली में एक जनसभा को सम्बोधित कर रहे थे. राजस्थान से आए गजेन्द्र सिंह ने इस सभा के चलते एक पेड़ से लटक कर आत्महत्या कर ली. पेड़ पर चढ़ते हुए लोगों ने उसे देखा. उसके हाथ में आआपा का चुनाव चिन्ह झाड़ू था. साथ में लाए रस्से के एक सिरे को अपनी गर्दन में लपेट लिया. उसके बाद नारों की मुद्रा में अपना बाजू उठाए गजेन्द्र कुछ बोले. वे क्या कह रहे थे इस पर तो प्रत्यक्षदर्शी ही टिप्पणी कर सकते हैं जो उस वृक्ष के आस पास खड़े थे. वे लोग उनसे कैसा वार्तालाप करने या समझाने की चेष्ठा में थे कहना मुश्किल है. कुछ पुलिस वाले भी वहां खड़े दिखाई दिए. अरविन्द केजरीवाल ने अपना भाषण जारी रखा. राजनीति का खेल चलता रहा. सरकार की आलोचना और पुलिस पर उसकी निष्क्रियता का आरोप लगाते रहे. आम आदमी पार्टी के नेता को जब घटना का पता चल गया था तो वे तभी भाषण बीच में छोड़ कर गए क्यों नहीं? गजेन्द्र सिंह को अचेतावस्था में कुछ लोगों ने पेड़ से नीचे उतारा. अस्पताल पहुंचने तक उनकी मृत्यु हो चुकी थी. किसानों के हितचिंतन का दावा करते करते आआपा नेता की सभा में एक किसान ने आत्महत्या की.

 

समाचार के फैलते ही प्रतिस्पर्धी राजनीति ने अपना रंग जमाना शुरू कर दिया. बयानों की मानों झड़ी लग गई. बहसों का दौर शुरू गया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आत्महत्या की इस घटना को दुखद बताया. लेकिन विपक्ष में किसने गम्भीरता के साथ यह जानने की कशिश की है कि गजेन्द्र ने वस्तुत: कैसी पारिवारिक परिस्थति के कारण ऐसा कदम उठाने का निर्णय किया था? उनका राजस्थान से दिल्ली आकर आआपा की इस जनसभा में ही ऐसा करना अनेक शंकाओं को जन्म दे सकता है. जिसे आत्महत्या से सम्बंधित ‘नोट’ कहा जा रहा है उसे पढ़ने से इतना तो स्पष्ट होता है कि गजेन्द्र को घर से निकाल दिया गया था. उसमें यह भी लिखा है कि वे घर वापस लौट सकें उसके लिए सहायता चाहते हैं. लेकिन उनका इरादा या निर्णय आत्महत्या करने का है यह स्पष्ट नहीं होता. तो क्या यह पत्र लिखने के बाद उन्हें आत्महत्या करने की सूझी थी? क्या उन्होंने पेड़ से लटक कर फांसी ले लेने से पहले आत्महत्या करने की धमकी दी थी? क्या राजस्थान से दिल्ली के लिए रवाना होने से पहले उन्होंने अपने किसी मित्र के साथ अपने मन की पीड़ा प्रकट की थी?

 

भूमि अधिग्रहण अध्यादेश के सम्बन्ध में टिप्पणियों पर टिप्पणियाँ की जा रही हैं. लोकतंत्र है इसलिए यह सब तो होगा ही. लेकिन यह भी ध्यान में रहना चाहिए कि मानवीयता को यदि कीचड़ भरी परस्पर दोषारोपण की राजनीति का लक्ष्य बनने दिया गया तो विकास की दिशा में उठते कदमों के विनाश की दिशा में आगे बढ़ने का खतरा मंडराते देर नहीं लगेगी. गजेन्द्र की दुखद मृत्यु को एक दूसरे पर दोषारोपण का विषय बना कर देश के राजनीतिकार मानवीय संवेदनशीलता की उपेक्षा कर रहे हैं जो लोकतंत्रीय प्रक्रिया के मर्म में है.

 

दिवंगत गजेन्द्र की आत्मा को शांति मिले और उनके परिवार को यह दुःख सहन कर पाने की शक्ति.