– लक्ष्मी जयसवाल अग्रवाल–
सांस दर सांस मुझे याद आते हो तुम
ज़िन्दगी के मेरे सुनहरे पल आज भी
जाने अनजाने क्यों सजा जाते हो तुम
मेरी ज़िन्दगी की इक ख्वाहिश थे तुम
आज भी मेरे दिल की राहों में बसकर
मेरे हर ख्वाब को सजा जाते हो तुम
न जाने कब से तुमसे नाता जुड़ा है मेरा
कि अब तो तन्हाइयों में भी चुपके से
हर बार मेरा साथ निभा जाते हो तुम
सोचा था न याद
करूंगी कभी
तुम्हें,
फिर भी हमेशा याद आ जाते हो तुम
भूली-बिसरी हर प्यारी सी बात में
हमेशा मीठे गीत
सुना जाते हो तुम
जाने कौन से जन्म का ये रिश्ता है कि
हर मुश्किल में साथ निभा जाते हो तुम
क्या पूछूं तुमसे मैं, बिन कहे ही हर बार
सवालों के जवाब खुद दे जाते हो तुम
दुनिया के हर बंधन हर रस्म से
हमेशा मुझे आज़ाद करा जाते हो तुम
तुमसे मांगूं क्या जीवन की राह पर
खुद ही सारे अधिकार दे जाते हो तुम
शिकवा या गिला भी क्या करूं तुमसे
रूठने से पहले ही मना जाते हो तुम
पता न चला कब बने तुम हिस्सा मेरा
खुद ही मेरे ख्यालों में समां जाते हो तुम
ख्वाब क्या देखूं मैं पता नहीं मुझे क्योंकि
हर बार सपना नया दिखा जाते हो तुम
सपने अब इन आँखों में सजते ही नहीं कि
हर सपना हक़ीक़त बना जाते हो तुम
पूछ रही हूँ तुमसे दूर होकर भी मुझसे
क्यों पास होने का एहसास करा जाते हो तुम
क्यों तुम मेरे हर दर्द में शामिल होते हो
क्यों हमेशा मेरा दर्द पी जाते हो तुम
कौन से जन्म का ये बंधन है जिससे
आज भी आज़ाद नहीं हो पाते हो तुम
कौन सी वो कसम है जिसे निभाने के लिए
दुनिया की हर रस्म तोड़ जाते हो तुम
कसम है तुम्हें आज खामोश मत रहना कि
क्यों अपना सब कुछ लुटा जाते हो तुम
क्यों अपनी राहें वीरान करके भी फूलों से
मेरी काँटों भरी राहें सजा जाते हो तुम
क्यों, क्यों और क्यों आखिर क्यों मेरे लिए
ही अपना जीवन बर्बाद किये जाते हो तुम
कह रहा है दिल मेरा तुमसे मत करो यह
संवारो जीवन अपना तुम, खुश रहो सदा
चाहता है दिल मेरी सिर्फ ख़ुशी तुम्हारी फिर
क्यों मेरी ये ज़िद पूरी नहीं कर पाते हो तुम ?