
नव-वर्ष की हार्दिक बधाई !! “ नवल किरण से सजी उषा का , दिव्य प्रभात मुबारक हो। धन-धान्य भरे आगार रहें, सुख- सम्पत्ति हर्ष मुबारक हो।। विद्या-व्यापार,कला-कौशल ,अवनी पर नाम मुबारक हो। भगवान-कृपा से आज सभी को,नूतन वर्ष मुबारक हो।।” **** नव-वर्ष का स्वागत है !!
ये इस वर्ष ( विगत ) वर्ष की विदा की वेला है। काल के अमर पुष्प की एक और पंखुरी अतीत के गर्भ में समा गयी। अब हम नये वर्ष का नया दिन देखने जा रहे हैं।पुराने कैलेंडर उतार कर नये लग रहे हैं। नव-वर्ष की शुभ-कामनाएँ देते हुए हम भविष्य के प्रति नयी नयी आशाएँ और विश्वास जगाने लगे हैं। आँखें नये सपने देखने लगीं हैं।नये वर्ष में हर्ष-उल्लास होगा, सुख-समृद्धि होगी, सफलता और शान्ति होगी। भगवान करें , ऐसा ही हो भी। एक वर्ष बीत गया किन्तु समय का चक्र निरन्तर चल रहा है।सत्य तो ये है कि समय का प्रवाह नदी की जल-धारा के समान सतत बहता जा रहा है। इसका आदि और अन्त किसने देखा है ? हर पल एक नया पल होता है।बीता हुआ पल कभी वापस नहीं आता है ।जैसे “ नन्हीं नन्हीं जल की बूँदें सागर को भर देती हैं।” वैसे ही ये नन्हें नन्हें पल मिलकर समय-सिन्धु को भरते चलते हैं।मिनटों से घंटे, घंटों से दिन,सप्ताह, महीने, और वर्ष बनते और बीतते जाते हैं।और फिर शताब्दियाँ बीत जाती हैं।यहीं हमने चार युग- सतयुग, त्रेता, द्वापर और कलियुग की भी मान्यता स्वीकार की है। समय तो उपनिषदों के “ चरैवेति “ के सिद्धान्त को लेकर निरन्तर चलते रहने वाले यायावर या यात्री के समान है-जो न कभी थकता है और न कभी रुकता है। समय का स्वरूप अद्भुत है। निराकार औरसर्वव्यापक। आँख से दिखता नहीं , हाथ से हम उसे छू नहीं सकते। सूर्योदय और सूर्यास्त से ही हमें उसके आने और जाने का ज्ञान या बोध होता है।घड़ी और कैलेंडर की तारीख़ों को ही हम इस परिवर्तन का प्रमाण मानते हैं। सुख-दु:ख के प्रभाव से दूर, समयएक वीतराग सन्यासी जैसा है ,जिस में गीता में वर्णित “ सुखदु:खे समे कृत्वा, लाभालाभौ जयाजयौ “ जैसे समत्व योगी के लक्षणदिखाई देते हैं ।कभी समय काटे नहीं कटता है तो कभी जैसे पंख लगा कर उड़ जाता है , किसी के हाथ नहीं आता है। समय के इस स्वरूप को हमनें घड़ी की सुइयों से नापने का प्रयास किया है। कैलेंडर की तिथियों में बाँधने का प्रयत्न किया है।कितनी विचित्र बात है कि हमने समय को बाँधने का प्रयास किया है , जब कि हमें स्वयं समय ने बाँधा हुआ है । तभी कहाजाता है कि समय बड़ा बलवान है। एक क्षण में राजा को रंक और रंक को राजा बनाते उसे देर नहीं लगती है।हमारा हर पल समय से बँधा है।यदि घड़ी न होती तो हम सूर्य के निकलने और डूबने पर ही निर्भर रहते , जैसे आज भी कहीं कहीं गाँवों में छप्पर पर आई धूपसे दिन चढ़ने का अनुमान लगाया जाता है। तब सभाओं और गोष्ठियाँ में लोक आगे पीछे पहुँचते , समय पर कार्यक्रम प्रारंभ न होता।समय एक ही गति से चलता है फिर हमें अचरज होता है कि परीक्षा-कक्ष मे यही समय भागता हुआ लगता है जब कि प्रतीक्षा करते समय इसकी गति बहुत मन्द लगती है।ख़ुशी के अवसर पर ये जल्दी जल्दी चलता है और संकट की घड़ी में लगता है कि जैसे ठहरकर थकान मिटा रहा हो। मैंने कभी समय पर लिखा था-
“ जन्म से ले मृत्यु तक का फ़ासला, बालपन , तरुणाई और वार्धक्य बन । कब कहाँ कैसे फिसलता ये रहा, और हमें प्रति पल ये छलता सा रहा।। ज़िंदगी ये बीत जाएगी मग़र , समय को इसकी कहाँ होगी ख़बर। सिन्धु क्या ये जान पाता है कभी, कौन सी उसकी लहर खोई किधर ?
तो समय के क़ाफ़िले के साथ हम भी आगे बढ़ते जाते है । आज हमें ये भी सोचना है कि विगत वर्ष में हमने क्या खोया, और क्या पाया? आगामी वर्ष में हमें क्या क्या करना है ? सच्चे मोती के समान बहुमूल्य समय के एक एक पल को हमें समय की गति के सूत्र में पिरोना होगा । उनका सदुपयोग करना होगा ,तभी हम अपने जीवन को सार्थक करके सफलता प्राप्त कर सकेंगे।। *********** – शकुन्तला बहादुर