लो, अब सरकार ही चली मन्दिर तोडने

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Rammandirकभी असामाजिक तत्वों, तो कभी आतंकवादियों के निशाने पर रहने वाले दिल्ली के

असंख्य मन्दिर व गुरुद्वारे अब जनता द्वारा चुनी गई सरकार की हिट लिस्ट में भी सामिल हो गए हैं। जिन 74 धर्म स्थलों को तोडने के लिए दिल्ली सरकार उच्च न्यायालय में शपथ पत्र दे चुकी है उनमें से 54 मन्दिर व गुरुद्वारे हैं। इसके अलावा तोडे जा सकने वाले अन्य धर्म स्थलों की सूची बनाने का कार्य भी जारी है। तर्क यह दिया जा रहा है कि ये सभी मन्दिर सरकारी जमीन पर बने हैं किन्तु यह सरासर झूंठ व मनगढ़न्त कहानी है। मन्दिरों का सर्वे करने के बाद पता चला कि ये न तो सरकारी भूमि पर बने हैं और न ही इनमें कोई अनधिकृत निर्माण है। गौर करने की बात यह है कि इन धर्म स्थलों को तोडने की सिफ़ारिश राज्य सरकार की जिस ‘धार्मिक कमेटी’ ने की है उसमें न तो कोई धर्म गुरू है और न ही धर्म क्षेत्र या धार्मिक संस्था से जुडा कोई व्यक्ति। एक बात और है कि जो सूची इस तथा-कथित धार्मिक कमेटी ने बनाई है उसमें धर्म स्थलों का न तो पूरा पता है और न ही कोई संपर्क सूत्र या दस्तावेज। इसके परिणाम स्वरूप दिल्ली का कोई भी मन्दिर कभी भी सरकारी दरिन्दगी का शिकार आसानी से हो जाएगा।

तो, दिल्लीवासियो, सावधान! अपने खून पसीने की कमाई से धार्मिक आस्था के साथ आध्यात्मिक उन्नति की मन:स्थिति से बनाए गए आपके असंख्य धर्म स्थलों को सरकार कभी भी धरासाई कर देगी। जो काम मुगल तानाशाह बाबर और औरंगजेब भी पूरा नहीं कर पाए उसे आपकी ही चुनी सरकार पूरा करने जा रही है। चौंकिए मत, यह कोई मनगडंत कहानी का हिस्सा नहीं बल्कि सरकार द्वारा दिए गए एक हलफ़नामे के आधार पर दिनांक 22 मई 2013 को दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए आदेश सख्या 7057-2005 के तहत यह सब होने जा  रहा है। इस आदेश में कहा गया है कि:

अ)  “40 अवैध रूप से बने धर्म स्थलों को तोडने हेतु समयवद्ध कार्य-योजना तैयार की जाए”;

ब) “34 अन्य अवैध धर्म स्थलों के बारे में धार्मिक कमेटी द्वारा सुझाए गए रास्ते पर चल कर बातचीत के तौर तरीकों को अन्तिम रूप दिया जाए तथा यदि आवश्यक हो तो कार्य योजना और उसके तौर-तरीकों को अंतिम रूप देने हेतु एक सप्ताह में बैठक बुलाई जाए”।

न्यायालय का यह भी स्पष्ट आदेश है कि “मामले की अगली सुनवाई की तिथि यानि 22 अगस्त, 2013 तक धार्मिक कमेटी द्वारा सुझाए गए 40 अवैध धार्मिक स्थलों को हटाकर भूमि दिल्ली विकास प्राधिकरण को सौंपी जाए। इसकी कार्यवाही रिपोर्ट (ए.टी.आर) दिल्ली के मुख्य सचिव द्वारा न्यायालय को दी जाए”।

दिल्ली सरकार द्वारा दिये गये हलफनामे में ही कहा गया कि “40 धर्मस्थलों को तो तोडा ही जाना चाहिए” किंतु “34 अन्य को यदि तोड़ा गया तो धार्मिक व राजनैतिक व्यक्तियों के सहयोग से स्थानीय जनता विरोध कर सकती है”। न्यायालय के आदेश में यह भी सुझाव दिया गया है कि ‘भूमि की मालिक संस्थाएं भूमि को खाली कराने हेतु अवैध धर्म स्थलों को कानूनी नोटिस भेजने के बारे में भी सोच सकती हैं।‘

उपरोक्त आदेश से स्पष्ट है कि दिल्ली सरकार ने कुल 74 धर्म स्थलों की सूची को पहले से ही दो भागों में विभक्त कर दिया था। एक वे 40 धर्म स्थल जो आसानी से सरकार के कोप-भाजन का शिकार हो सकते थे और दूसरे वे 34 जिनको छेड़ने से कांग्रेस का वोट बैंक खाली होने का भय था। इसी वजह से 40 की सूची में 36 हिंदू मंदिर हैं जबकि 34 की दूसरी सूची में आधे से अधिक गैर हिंदू (मुस्लिम व ईसाई) धर्म स्थल हैं। यहीं से पोल  खुलती है दिल्ली सरकार के तथाकथित धर्मनिरपेक्ष लवादे की।

यदि हम अपने इतिहास की तरफ़ लौटते हैं तो पाते हैं कि हमारे राजे-महाराजे कुएँ, तालाब, बावडी और ऊँचे से ऊँचा भव्य मंदिर बनाने में अपनी शान व प्रतिष्ठा समझते थे तथा मंदिरों के लिये न सिर्फ़ खुलकर दान देते थे बल्कि उसके लिए सर्वश्व समर्पण हेतु सदा तैयार रहते थे। पिछले दिनों दक्षिण भारत के एक मंदिर में मिले भारी-भरकम खज़ाने से भी यह बात और पुख्ता होती है। स्वतंत्र भारत के प्रथम उप-प्रधानमंत्री लौह पुरुष सरदार बल्लभ भाई पटेल ने भी तो आस्था के प्रमुख केंद्र भगवान सोमनाथ के मंदिर का जीर्णोद्धार कराया। दूसरी बात और, जब सरकारें अपनी जनता के शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य की रक्षार्थ पार्क, जिम, सामुदायिक भवन, खेल के बडे बडे मैदान इत्यादि बना सकती हैं तो उनके आध्यात्मिक, सांस्कृतिक व मानसिक उत्थान के प्रमुख केन्द्रों(मदिरों) की दुश्मन क्यों कर बन रही हैं? दिल्ली का यह दुर्भाग्य नहीं तो और क्या है कि यहाँ की सरकार मन्दिरों की सुरक्षा व संवर्धन की जगह अधार्मिक कृत्यों के संचालन में अपनी शान समझ रही है। एक ओर जहां दिल्ली नगर निगम ने अभी हाल ही में पार्कों व सामुदायिक केन्द्रों में होने वाले धार्मिक आयोजनों को नि:शुल्क करने की घोषणा की है वहीं दिल्ली सरकार हिदुओं के धार्मिक केन्द्रों को तहस-नहस करने पर आमादा है। दुर्भाग्य यह है कि इस कमेटी का प्रमुख कोई और नहीं, स्वयं दिल्ली के महामहिम उपराज्यपाल हैं।

एक ओर जहाँ दिल्ली की कांग्रेस नीति शीला सरकार स्थानीय पुलिस व प्रशासन की मदद से ‘सर्वे भवन्तु सुखिन: , सर्वे सन्तु निरामया:’ तथा ‘विश्व का कल्याण हो’ तथा ‘भारत माता की जय’का जय घोष करने वाले इन मंदिरों को धरासाई करने की फ़ौरी कार्यवाही में जुट गयी है वहीं दूसरी ओर विश्व हिंदू परिषद सहित राजधानी के अनेक हिंदूवादी व धर्मानुरागी संस्थाओं ने भी अपनी तलवार खींच ली है। इन मंदिरों व गुरुद्वारों की रक्षा के लिये बनी हिंदू धर्मस्थल सुरक्षा समिति की गत माह में दिल्ली के विभिन्न स्थानों पर अभी तक 4 बैठकें हो चुकी हैं तथा लगभग सभी पीड़ित धर्मस्थलों का दौरा समिति कर चुकी है। पीड़ित धर्मस्थलों से जुड़े स्थानीय धर्मावलंबियों का गुस्सा सातवें आसमान पर है।

समिति के प्रधान श्री बृजमोहन सेठी ने बताया कि “रणनीति के पहले हिस्से में हम दिल्ली की मुख्यमंत्री व उपराज्यपाल से मिलकर अपनी व्यथा सुनायेंगे किंतु, यदि इतने से बात नहीं बनी तो न्यायालय का दरवाज़ा भी खटखटायेंगे”। समिति के संगठन मंत्री श्री रामपाल सिंह यादव तथा विहिप के प्रांत उपाध्यक्ष श्री दीपक कुमार ने तो उनसे भी एक कदम और आगे बढ़कर ऐलान कर दिया कि “यदि हिंदू आस्था के केंद्रों को छेड़ा गया तो हम भी छोड़ेंगे नहीं। देश की राजधानी में ऐसा जनसैलाब उमड़ेगा जिसकी कल्पना भी सरकार ने कभी नहीं की होगी”।

अब देखना यह है कि 2013 के इस चुनावी वर्ष में दिल्ली की सरकार धर्मस्थलों को तोड़ेगी या जनता को जोडेगी। लगता है कि अब अपने ही बुने जाल में फ़ंसेगी दिल्ली की सरकार। क्योंकि जनता जान चुकी है कि उनकी चुनी हुई सरकार उन्हीं के पैसों से उन्हीं के आस्था केंद्रों पर हमला करने जा रही है जिसे वे कदापि सहन नहीं करेंगे।

2 COMMENTS

  1. यह तो कलयुग की पराकाष्ठा है…

    जो कुछ उत्तराखंड में हुआ उसके गर्भ में भी यही था… कि वहाँ सरकार मंदिर को प्रतिस्थापित कर रही थी..

    अतः हमें डर है की अगर मंदिरों को नुक्सान पहुचाया गया तो उत्तराखंड जैसे ही कुछ अनहोनी दिल्ली में भी न हो …

  2. Congress government is acting like sick dog and has proved to be worse than any government in the world
    Congress is behaving and proved beyond doubt that it is anti India and anti Indian heritage, traditions and civilization.
    China is entering in Laddakh and ready to grab but the congress cannot see this.
    Let us pelage not vote congress any more in all future local, state and national elections and then ban it as a political party considering its record pre and post independence period.

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