कविता

हे साधो! तुम साध सको तो साथ लो

—विनय कुमार विनायक

हे साधो! तुम साध सको तो साध लो,

सुनो ये अपना भारत देश ना बर्बाद हो,

तुम कुछ जतन करो,  कुछ प्रयत्न करो,

हर मुश्किल में राष्ट्र हमारा आबाद हो!

हे साधो! तुम साध सको तो साध लो,

फिर भेड़ियों से भर गई है भारत भूमि,

जहां पहले होते थे सिद्ध, ऋषि, मुनि,

मार भगाओ भारत से नर ब्याघ्र को!

मत हो कभात, बता दो उनको औकात,

एक तरफ चालबाज चीन सीना ताने है,

दूसरी ओर पाक नापाक हरकत कर रहा,

देश के अंदर मीरजाफर बिछाए बिसात!

ऐसे में बड़ी कुर्बानी से मिली

आजादी पर कैसी आफत आई,

देखो कैसे सांप पालनेवालों ने

हर पहर में कर्कश बीन बजाई!

हर तरफ से आस्तीन के सांप,

अपने बिल से निकल आया है,

हर चौंक, चौराहे व फुटपाथ पर

इन पापियों ने डेरा जमाया है!

पागल भेड़िए औ जहरीले सांपों से,

अगली पीढ़ी को अब बचाना होगा,

बहुत झेल चुके हमनें, टूटते देश में

फिर से हमें इन्कलाब लाना होगा!

इन पापी भेड़िए और विषधर से,

टूटते-बंटते देश को बचाना होगा,

सोई मानवता के पक्षधर जन को,

विश्व स्तर पर हमें जगाना होगा!

हर हालत में हमें इस दुनिया में,

अमन-चैन औ सुकून लाना होगा,

हे साधो तुम साध सको तो साध,

इन देशद्रोहियों को भगाना होगा!

भारत है विश्व का एकमात्र देश,

जहां मानवता और भाईचारा है,

यहां सब धर्मों के लोग रहते हैं,

पर भारत में ना कोई बेचारा है!

भारत चारागाह नहीं बन सकता,

मजहबी आतंकी-जेहादी जन का,

हर रावण व कंस का तोड़ यहां,

भगवान राम व कृष्ण के जैसा!

रावण-कौरव-कंश यहां आता रहा

तैमूर,बाबर और औरंगजेब बनकर,

राम, कृष्ण आते रहे गुरु नानक,

गुरु गोबिंदसिंह, शिवाजी बनकर!

भारत में कभी कोई टिक ना सका,

गजनवी-गोरी-तैमूर लंग के वंशधर,

भारत को आक्रांता आतंकी से नहीं,

भीतरघाती औ नकली बाबर से डर!

—विनय कुमार विनायक