हिंद स्‍वराज

हिंद स्वराज : बंग-भंग

नवजीवन ट्रस्‍ट द्वारा प्रकाशित महात्‍मा गांधी की महत्‍वपूर्ण पुस्‍तक ‘हिंद स्‍वराज’ का दूसरा पाठ :

hind swarajjपाठक: आप कहते हैं उस तरह विचार करने पर यह ठीक लगता है कि कांग्रेस ने स्वराज्य की नींव डाली लेकिन यह तो आप मानेंगे कि वह सही जागृति नहीं थी। सही जागृति कब और कैसे हुई?

संपादक: बीज हमेशा हमें दिखाई नहीं देता। वह अपना काम जमीन के नीचे करता है और जब खुद मिट जाता है तब पेड़ जमीन के ऊपर देखने में आता है। कांग्रेस के बारे में ऐसा ही समझिये। जिसे आप सही जागृति मानते हैं वह तो बंग-भंग से हुई जिसके लिए हम लार्ड कर्जन के आभारी हैं। बंग-भंग के वक्त बंगालियों ने कर्जन साहब से बहुत प्रार्थना की लेकिन वे साहब अपनी सत्ता के मद में लापरवाह रहे।

उन्होंने मान लिया कि हिन्दुस्तानी लोग सिर्फ बकवास ही करेंगें। उनसे कुछ भी नहीं होगा। उन्होंने अपमान भरी भाषा का उपयोग किया और जबरदस्ती बंगाल के टुकडे क़िये। हम यह मान सकते हैं कि उस दिन से अंग्रेजी राज्य के भी टुकडे हुए। बंग-भंग से जो धक्का अंग्रेजी हुकूमत को लगा वैसा और किसी काम से नहीं लगा। इसका मतलब यह नहीं कि जो दूसरे गैर इन्साफ हुए वे बंग-भंग से कुछ कम थे। नमक महसूल कुछ कम गैर इन्साफ नहीं है। ऐसा और तो आगे हम बहुत देखेंगे। लेकिन बंगाल के टुकडे क़रने का विरोध करने के लिए प्रजा तैयार थी।

उस वक्त प्रजा की भावना बहुत तेज थी। उस समय बंगाल के बहुतेरे नेता अपना सब कुछ न्यौछावर करने को तैयार थे। अपनी सत्ता अपनी ताकत को वे जानते थे। इसलिए तुरन्त आग भड़क उठी। अब वह बुझने वाली नहीं है, उसे बुझाने की जरूरत भी नहीं है। ये टुकड़े कायम नहीं रहेंगे। बंगाल फिर एक हो जायगा लेकिन अंग्रेजी जहाज में जो दरार पड़ी है वह तो हमेशा रहेगी ही। वह दिन-ब-दिन चौड़ी होती जायगी।

जागा हुआ हिन्द फिर सो जाय, यह नामुमकिन है। बंग-भंग को रद्द करने की मांग स्वराज्य की मांग के बराबर है। बंगाल के नेता यह बात खूब जानते हैं। अंग्रेजी हुकूमत भी यह बात समझती है। इसीलिए टुकडे रद्द नहीं हुए। ज्यों दिन बीतते जाते हैं, त्यों त्यों प्रजा तैयार होती जाती है। प्रजा एक दिन में नहीं बनती। उसे बनने में कई बरस लग जाते हैं।

पाठक: बंग-भंग के नतीजे आपने क्या देखे?

संपादक: आज तक हम मानते आये हैं कि बादशाह से अर्ज करना चाहिये और वैसा करने पर भी दाद न मिले तो दुख: सहन करना चाहिये, अलबत्ता अर्ज तो करते ही रहना चाहिये। बंगाल के टुकड़े होने के बाद लोगों ने देखा कि हमारी अर्ज के पीछे कुछ ताकत चाहिये। लोगों में कष्ट सहन करने की शक्ति चाहिये। यह नया जोश टुकडे होने का अहम नतीजा माना जायेगा। यह जोश अखबारों के लेखों में दिखाई दिया।

लेख कडे होने लगे, जो बात लोग डरते हुए या चोरी चुपके करते थे वह खुल्लमखुल्ला होने लगीं, लिखी जाने लगीं। स्वदेशी का आन्दोलन चला। अंग्रेजो को देखकर छोटे-बडे सब भागते थे पर अब नहीं डरते। मार पीट से भी नहीं डरते। जेल जाने में भी उन्हें कोई हर्ज नहीं मालूम होता और हिन्द के पुत्ररत्न आज देश निकाला भुगतते हुए विदेशों में विराजमान हैं। यह चीज उस अर्ज से अलग है। यों लोगों में खलबली मच रही है। बंगाल की हवा उत्तर में पंजाब तक और (दक्षिण में) मद्रास इलाके में, कन्याकुमारी तक पहुंच गई है।

पाठक: इसके अलावा और कोई जानने लायक नतीजा आपको सूझता है?

संपादक: बंग-भंग से जैसे अंग्रेजी जहाज में दरार पड़ी है वैसे ही हममे भी दरार फूट पड़ी है। बड़ी घटनाओं के परिणाम भी यों बड़े ही होते हैं। हमारे नेताओं में दो दल हो गये हैं। एक माडरेट और दूसरा एक्स्ट्रीमिस्ट। उनको हम धीमें और उतावले कह सकते हैं। (नरम दल व गरम दल शब्द भी चलते हैं।) कोई माडरेट को डरपोक पक्ष और एक्स्ट्रीमिस्ट को हिम्मतवाला पक्ष भी कहते हैं। सब अपने अपने खयालों के मुताबिक इन दो शब्दों का अर्थ करते हैं।

यह सच है कि ये जो दो दल हुए हैं उनके बीच जहर भी पैदा हुआ है। एक दल दूसरे का भरोसा नहीं करता। दोनों एक दूसरे को ताना मारते हैं। सूरत कांग्रेस के समय करीब करीब मार पीट भी हो गई। ये जो दो दल हुए हैं वह देश के लिए अच्छी निशानी नहीं है। ऐसा मुझे तो लगता है। लेकिन मैं यह भी मानता हूं कि ऐसे दल लम्बे अरसे तक टिकेंगे नहीं। इस तरह कब तक ये दल रहेंगे, यह तो नेताओं पर आधार रखता है।

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