चीन एशिया के लिए बडा खतरा : डोलमा गिरी

Dolma for uploadडोलमा गिरी हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला स्थित निर्वासित तिब्बती संसद की उपाध्यक्ष हैं। उनका जन्म पश्चिम बंगाल के दार्जीलिंग क्षेत्र में हुआ है। डोलमा गिरी की शिक्षा-दीक्षा भारत में ही हुई। उनसे यहां सिलीगुडी में हिन्दुस्थान समाचार के संवाददाता अमृतांशु कुमार मिश्र तथा चंदना चौधरी ने विभिन्न विषयों पर लंबी बात की। प्रस्तुत हैं उस बातचीत के प्रमुख अंश:-

चीन ने दलाई लामा के अरुणाचल भ्रमण पर आपत्ति की है। आपका इस विषय पर क्या कहना है? चीन परम पावन दलाई लामा जी के अरुणाचल भ्रमण पर आपत्ति करनेवाला होता कौन है? चीन इसी प्रकार विभिन्न मामलों को लेकर चिल्लाता रहता है। हमें उसके चिल्लाने की परवाह नहीं है। भारत सरकार ने परम पावन दलाई लामा जी को भारत भर में कहीं भी जाने की छूट दे रखी है। इसलिए वे अपने प्रस्तावित कार्यक्रम के अनुसार अरुणाचल जाएंगे। अरुणाचल प्रदेश के लोगों की काफी दिनों से मांग है कि वे यहां आएं। उनके अरुणाचल प्रदेश भ्रमण पर भारत को कोई आपत्ति नहीं है इसलिए हमें चीन की चिंता नहीं है। चीन का अरुणाचल प्रदेश से क्या लेना-देना है?

तिब्बत की स्थिति काफी गंभीर है आपके पास इस बारे में क्या जानकारी है? वास्तव में तिब्बत की स्थिति काफी गंभीर है। तिब्बत कई प्रकार के खतरों से जूझ रहा है। मार्च 2008 से लेकर दिसंबर 2008 के बीच वहां हजारों लोग लापता हो गए। हमारी जानकारी के अनुसार वहां पांच हजार सात सौ लोगों को राजनैतिक बंदी बनाया गया है। चीन ने इन लोगों को केवल आजादी की आवाज उठाने पर गिरफ्तार किया है। इनकी गिरफ्तारी में वैधानिक प्रक्रिया का भी पालन नहीं किया गया। कई लोगों को गिरफ्तार करने के बाद न्यायालय भी नहीं ले जाया गया है। गिरफ्तार लोगों को वकील तक उपलब्ध नहीं कराया जा रहा है। उनपर कानूनी प्रक्रिया के आधार पर कार्रवाई नहीं की जा रही है। वहां मानवाधिकार का उल्लंघन किया जा रहा है।

क्या निर्वासित तिब्बत सरकार ने इस बारे में मानवाधिकार संगठनों से बातचीत की? हां, हमने इस बारे में विश्व भर में कई मानवाधिकार संगठनों से बातचीत की। अमेरिका तथा भारत ने इस विषय पर आपत्ति प्रकट की है। राष्टन् संघ को भी हमने लिखा है। भारत के कई संगठन हमें काफी सहयोग कर रहे हैं। मैं विशेष रूप से राष्टन्ीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) का नाम लेना चाहुंगी। आरएसएस का सभी मामलों में शुरू से ही विशेष सहयोग प्राप्त होता आ रहा है।

क्या चीन से भारत को भी खतरा है? केवल भारत ही नहीं बल्कि पूरे एशिया महादेश को चीन से सावधान रहना चाहिए। चीन ने एक सोची समझी रणनीति के तहत तिब्बत पर अपना कब्जा जमाया है। तिब्बत के सामरिक महत्व को चीन अच्छी तरह से समझता है। इसलिए वह तिब्बत में मिलिटरी बेस बना रहा है। चीन तिब्बत में जो भी कर रहा है वह सामरिक दृष्टि से कर रहा है। तिब्बत के विकास से चीन का कोई लेना देना नहीं है। तिब्बत में जिस रेलमार्ग का निर्माण किया गया है वह जिस-जिस भी जगह से आती है वहां यूरेनियम का भंडार है तथा उन जगहों पर न्यूक्लियर बेस तैयार किया गया है। भारत को इन बातों को गंभीरता से लेना चाहिए A

आपको क्या लगता है भारत सरकार इन मामलों को लेकर कितना गंभीर है? भारत तिब्बत में चीन के क्रियाकलाप को लेकर बहुत अधिक गंभीर नहीं है। सभी को पता है कि एशिया की अस्सी प्रतिशत जनता को मिलनेवाला पानी इसी क्षेत्र से आता है। तीसरा विश्वयुद्ध भी पानी को लेकर ही लडा जाएगा। चीन ब्रह्मपुत्र नदी का मुंह मोड कर चीन की ओर कर रहा है। भारत ने इसपर आपत्तिा की थी लेकिन चीन ने कहा कि वह ब्रह्मपुत्र नदी का दिशा परिवर्तन नहीं कर रहा बल्कि इस पर जलविद्युत परियोजना के लिए बांध का निर्माण कर रहा है। इस मामले में चीन सरासर झूठ बोल रहा है। हम तिब्बती हैं तथा तिब्बत के बारे में हमारे पास सही जानकारियां आती रहती है।

चीन के क्रियाकलाप से क्या हिमालय को भी खतरा है? हां, निश्चित रूप से। चीन की रेल परियोजना का विश्व भर के पर्यावरणविदों ने विरोध किया था। चीन तिब्बत को उसके ‘न्यूक्लियर वेस्ट’ का ‘डंपिंग ग्राउंड’ बना रहा है। वहां, कई जलविद्युत परियोजनाओं का निर्माण किया जा रहा है। चीन द्वारा तिब्बत के सामरिक उपयोग के कारण ही हमने तिब्बत को ‘पीस जोन’ घोषित करने की मांग करते हुए वहां किसी भी प्रकार के सामरिक क्रियाकलाप पर रोक की मांग उठाई है। लेकिन, इस पर चीन कोई ध्यान नहीं दे रहा है। चीन के क्रियाकलाप के कारण हिमालय को काफी नुकसान हो रहा है जिसका प्रभाव भारत के साथ ही सभी एशियाई देशों पर पडना शुरू हो गया है। तिब्बत की निर्वासित सरकार ने पर्यावरण के बारे में आवाज उठाई लेकिन दुर्भाग्य से न ही भारत सरकार ने और न ही भारतीय मीडिया ने इसे गंभीरता से लिया।

तिब्बत की स्वतंत्रता के प्रति आप कितने आशावान हैं? मैंने भारत में जन्म लिया है। हमने भारत में स्वतंत्रता आंदोलन के बारे में काफी कुछ पढा है। इसलिए हम यह विश्वास के साथ कह सकते हैं कि तिब्बत अपनी स्वतंत्रता की लडाई में निश्चित रूप से सफल होगा। हमें इस बात का पूरा भरोसा है। हां, लेकिन यह एक राजनैतिक मामला है इसमें कितना समय लगेगा यह कहना कठिन है। हम अपनी ओर से कोशिश कर रहे हैं।

निर्वासित तिब्बतियों का इस विषय में क्या मानना है? सभी निर्वासित तिब्बती अपने देश की स्वतंत्रता के प्रति आशावान हैं। हां, वे सभी संघर्ष के तरीकेपर दो प्रकार की सोच रखते हैं। जो युवा वर्ग है उनका स्पष्ट मानना है कि चीन पर किसी भी बात को लेकर विश्वास नहीं किया जा सकता है। इसलिए हमें अपने आंदोलन तथा तिब्बत की स्वतंत्रता को लेकर किसी भी प्रकार से चीन से बात नहीं करते हुए अपने तरीके से आंदोलन चलाना चाहिए। वहीं, कई लोगों का यह भी मानना है कि इस समस्या का समाधान चीन के साथ बातचीत के आधार पर ही किया जा सकता है। हां, लेकिन दोनों ही वर्ग तिब्बत की स्वतंत्रता के प्रति आशावान है। इस दो प्रकार की सोच के कारण ही परम पूजनीय दलाई लामा ने बीच का मार्ग अपनाया है तथा तिब्बत को स्वायत्ता क्षेत्र घोषित करने की मांग की है।

2 COMMENTS

  1. डोलमा गिरी जी कॆ बयान सॆ हम सभी सहमत है कि चीन ऎक् अज्गर् कॆ स्मान् है जॊ धीरॆ धीरॆ पुरॆ भारत कॊ निगलनॆ कॆ लियॆ तेयार है. हिमालय की सुरक्शा मॆ ही भारत की सुरक्शा है.
    हिमालय परिवार

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