वार्तालाप द्वारा फैलाए तमिलनाडु में हिन्दी

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डॉ. मधुसूदन

hindi
(एक) प्रवेश और लाभ:

इस पद्धति में, देवनागरी लिपि सीखना  आवश्यक  नहीं। सफलता  भी तुरंत प्राप्त होती है।  अनपढ भी हिन्दी बोलना सीख सकता है।
यदि, बडी मात्रा में संसाधन लगाकर हिन्दी वार्तालाप तमिलनाडु में फैलाया जाए, तो,हिन्दी के लिए अनुकूल जनमानस बनाने में भी यह पद्धति सफल हो सकती है।
तीर्थ स्थानों के मार्ग (Tourist Guides) दर्शक, राज्य के वाहन चालक, छोटे व्यापारी, शेष भारत में जानेवाले प्रवासी या  पर्यटक, और अनेक छोटे बडे व्यावसायिकों को जिन्हें दिन रात लेन देन के लिए, और वार्तालाप के लिए हिन्दी का प्रयोग करना पडता है; ऐसे सारे लोगों को इस पद्धति से शीघ्र हिन्दी सिखाई जा सकती है।
आगे अधिक सीखने का इच्छुक भी प्रोत्साहित होकर हिन्दी कक्षाओं से लाभ ले सकता है।

(दो) हिन्दी सिखाने की अलग अलग विधाएँ: 

हिन्दी फैलाने की अलग अलग विधाएँ हैं।
(१) मात्र वार्तालाप द्वारा (बिना देवनागरी प्रयोग) हिन्दी सिखाना।
(२) मात्र देवनागरी का ही अभ्यास करवाना।
(३) दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार समिति की पद्धति; इत्यादि
इस आलेख में, तमिलनाडु को केंद्र में रखकर,  सरल वार्तालाप द्वारा हिन्दी फैलाने की पद्धति को संक्षेप में समझाया है।

(तीन)सरल वार्तालाप द्वारा हिन्दी:

हिन्दी की उपयुक्तता केन्द्र में रख कर देखें, तो तुरंत फल देनेवाली पद्धति है “वार्तालाप द्वारा हिन्दी”।इस पद्धति की सफलता, हमारे विश्वविद्यालय में संस्कृत भारती के “वार्तालाप द्वारा संस्कृत” के पाठ्यक्रम की सफलता से प्रत्यक्ष प्रमाणित हुयी थी। संस्कृत भारती की सफलता भी विशेष अनोखी थी। जब संस्कृत को भी “संस्कृत भारती” ने इस वार्तालाप पद्धति से पनपाया है; और अनपेक्षित सफलता दिलाई है, तो हिन्दी को  इसी पद्धति से लाभ होगा, इसमें मुझे तनिक भी सन्देह नहीं। वास्तव में, ऐसी मेरी दृढ मान्यता है।

(चार) कैसी होगी,  “वार्तालाप द्वारा हिन्दी”?

इस पद्धति में छात्र को सीधे और सरल वाक्य प्रयोग से, हिन्दी-वार्तालाप की पहचान करायी जाती है।
उन वाक्यों का बार बार उपयोग सभी विद्यार्थियों द्वारा जब होता है; तो ऐसे वाक्य कण्ठस्थ हो जाते हैं।
जिनके आधार पर छात्र फिर धीरे धीरे वार्तालाप करना सीख जाता है। सरल वाक्यों से प्रारंभ होकर, धीरे धीरे वाक्य कठिन होते जाते है। पर, कठिनता की मात्रा ऐसी कुशलता से प्रवेश करायी जाती है, कि, छात्र को उसका अनुभव तक नहीं होता।

(पाँच) जैसे बालक भाषा सीखता है।

इस पद्धति को, नया जन्मा बालक जिस प्रकार से भाषा का उपयोग  करना सीखता है; उसी प्रक्रिया के आधार पर समझा जा सकता है। बालक जन्म से भाषाका ज्ञान लेकर नहीं आता। गोद लिए हुए बालक भी जिस घरमें गोद जाते हैं, वहाँ की भाषा सीख ही लेते हैं। भले वह भाषा जन्मदात्री माता की भाषा से अलग हो। जन्म उपरांत बालक भी कुटुम्ब के सदस्यों की देखादेखी भाषा सीखता है। उस समय वह व्याकरण भी जानता नहीं। पर, बालक अपनी प्राकृतिक तर्क शक्ति और निरीक्षण के आधार पर भाषा सीखता है।भूल होनेपर बडों से सुधारा भी जाता है। सारा व्याकरण पढे बिना ही वह व्याकरण भी जान जाता है। कुछ त्रुटियाँ भी तब ही आदत में आ जाती है, जब कुटुम्ब में भाषा का त्रुटिपूर्ण प्रयोग होता है। इसी प्रतिमान के  आधार पर यह “वार्तालाप द्वारा हिन्दी” को देखा जा सकता है। संक्षेप में सरल और उपयोगी वाक्य से प्रारंभ कर, छात्र को सरल वाक्यों से, परिचित कराया जाता है। वाक्यों का पुनरावर्तन कर उनकी स्मृति दृढ की जाती है। विशेष छात्र को, हिन्दी सीखने का फल “तुरंत सफलता में” दिखाई देता है। ऐसे तुरन्त  फल का अनुभव भी छात्र को शिक्षा में टिकाए रखता है; बाँधे रखता है।

(छः)”वार्तालाप द्वारा हिन्दी” कैसे सीखी जाती  है?

इस पद्धति  में, सीधा बोलकर ही सिखाया जाता है।
शिक्षक पहले ही दिन वर्ग में आकर बिना लिखे, अपनी छाती पर हाथ रखकर  प्रत्येक शब्द का उच्चारण
अलग अलग कर के बोलता है,  कि,   “मेरा नाम अनंत  है।” फिर दुबारा  छाती पर हाथ रखकर प्रत्येक  शब्द स्पष्ट उच्चारित कर ,शब्दों के बीच विराम लेते हुए,  बोलेगा, “मेरा,— नाम,— अनंत,—-  है।”
फिर छात्रों को लक्ष्यित कर, अलग अलग छात्र समूहों की ओर देखते हुए, यही वाक्य बोलेगा।

पश्चात किसी एक छात्र की ओर हाथ से निर्देश  करते हुए फिरसे अल्प विराम सहित, और शब्दो शब्दो में अंतराल छोडकर दो, तीन बार पूछेगा;
आपका,—-नाम,—-क्या,—-है?  (दो तीन बार )
छात्र उत्तर में अपना  नाम बताएगा; कहेगा।
मेरा नाम ­­­”_______”__है।
(१) “मेरा नाम अनंत  है।”
(२) आपका नाम क्या है?
इन्हीं दो वाक्यों को, शिक्षक प्रत्येक छात्र द्वारा दुहरवायेगा। छात्र अपना अपना नाम बोलेंगे। और दूसरे छात्रों को पूछेंगे भी। आपका नाम क्या है?
जैसे मेरा नाम “सुरेश” है। मेरा नाम “रमेश” है। महिलाएं भी बोलेंगी उदा:  मेरा नाम “शुचिता” है। मेरा नाम “मीरा” है।  बिलकुल सभी को कण्ठस्थ हो, तब तक इन दो ही वाक्यों को  दोहराते रहना है।

(सात) जिज्ञासा टिकनी चाहिए:

संक्षेप में, छात्र की जिज्ञासा टिकनी चाहिए। पढाई धीमे धीमे भले, आगे बढें;  पर छात्रों की रूचि और रस टिके  रहना चाहिए। एक भी छात्र निराश होकर सीखना बंद न करें; यही शिक्षक की कुशलता की कसौटी है।
शिक्षक अपनी अध्यापन की गति, ऐसी रखें, कि छात्र कठिनता का अनुभव ही ना करे। किसी भी कठिन विषय को बार बार दोहराने पर वो विषय सरल हो जाता है। जिस प्रकार से चढाव आने पर गाडी धीमी हो जाती है, उसी प्रकार कठिनता आने पर शिक्षक अध्यापन की गति धीमी कर देता है।

शिक्षक इस पद्धति में, सफल होने के लिए कुछ अभिनय करने की क्षमता वाला होना चाहिए। कुछ अभिनय कला ही, इस पद्धति की विशेषता और आवश्यकता भी है। अभिनय के बिना यह पद्धति ठीक सफल नहीं होगी।

संस्कृत भारती के शिक्षक मात्र संस्कृत में बोलकर अभिनय द्वारा ही संस्कृत वार्तालाप सिखा देते हैं। अभिनय का प्रचुर उपयोग करते हैं।

(आठ) उपयुक्त वाक्यों की सूची:

इस विधा में सफलता के लिए, पहले उपयुक्त वाक्यों की सूची बनाई जाए। ऐसी सूची तीर्थ स्थानों के, यात्री मार्ग दर्शक, सारे राज्य के वाहन चालक, छोटे व्यापारी, तमिलनाडु से शेष भारत में जानेवाले पर्यटक, इत्यादि इत्यादि अनेक दृष्टियों से बनाई जा सकती है। और भी अलग अलग व्यावसायिकों की जो माँग हो, उनका ध्यान रखकर, और उनकी सहायता लेकर  सूची बनाई जाए। इस काम को बहुत कुशलता पूर्वक करना होगा।
अनेक वाक्यों की सूची बनाकर, उनका अनुक्रम सरलता से कठिनता की ओर चुना  जाए।

विशेषतः “संस्कृत भारती” के साथ  भी इस विषय में परामर्श किया जाना चाहिए।
दक्षिण भारत राष्ट्र भाषा प्रचार समिति कार्य कर ही रही है। वार्तालाप द्वारा हिन्दी का यह आलेख समिति के कार्य को पूरक ही प्रमाणित होगा।  प्रबुद्ध पाठक टिप्पणी अवश्य दें। प्रश्न हो तो भी पूछे। उत्तर देने में विलम्ब होगा।  धन्यवाद।

8 COMMENTS

  1. डां. अधुसुदन जी ने हिंदी प्रचार प्रसार के लिए कई लेख लिखे हैं। तमिलनाडु में हिंदी का बहुत विरोध होता रहा हैं। बहा पर तो द्रविड़ दलों ने हिंदी के विरोध के नाम से चुनाब भी जीते हैं। इसी हिंदी विरोध के कारण तमिलनाडु में हिंदी जानने वालो की संख्या बहुत कम हैं। तमिलनाडु में हिंदी के प्रचार प्रसार के लिए डा. मधुसूदन जी ने शृंखलावद लेख लिखे हैं। वर्तमान लेख भी उसी कड़ी का भाग हैं। कोई भी भाषा को फैलाने के कारन होते हैं , भाषा लिखी हुयी सर्वत्र दिखाई देनी चाहए और उसका बोलचाल में प्रयोग हो। तमिलनाडु में वर्तमान अवस्था में हिंदी को सर्वबिदित बनाना कठिन हैं किन्तु सिमित अवस्था में बोलचाल की भाषा , कुछ प्रयत्नो द्वारा , बनाई जा सकती हैं कुछ समय पहले तक बीबीसी हिंदी सेवा रेडियो द्वारा अंग्रेजी सिखाती थी। उसी तरह रेडियो जर्मन हिंदी सेवा (जो अब बंद हो चुकी हैं ) भी हिंदी भाषा द्वारा जर्मन बोलना सीखते थे। इसी तरह रेडियो द्वारा तमिल भाषा के माध्यम से हिंदी सिखानी चाहिए जहा कुछ बाक्य हिंदी में बोले जाते हैं तब श्रोताओ को उन वाक्यो को दोहराने के लिए कहा जाता हैं। तमिल लोगो को बोलचाल की हिंदी भाषा सिखाने के लिए लघु वृत चित्र और इंटरनेट की भी सहायता लेनी चाहिए।

  2. वास्तविकता यह है कि भाषा को व्यवहार में लाने से वह अपने आप मस्तिष्क में जगह बना लेती है .लिखना और पढ़ना कितना भी सीख ले बिना मौखिक प्रयोग के उसका उपयोग करना कठिन है . उच्चारण और वार्तालाप द्वारा शब्दों को ग्रहण करने में जो स्पष्टता और सीधी पहुँच है उससे सारी झिझक अपने आप दूर हो जाती है .
    हिन्दी भाषा के साथ सबसे बड़ा लाभ यह है कि उसकी वर्णमाला संस्कृतवाली है ,जो अधिकांश भारतीय भाषाओँ से किसी न किसी प्रकार जुड़ी हुई है ,और उसके वर्णों को लिखने तथा बोलने में एक रूपता है -अंग्रेज़ी आदि के समान शब्दों को बोलना अक्षरों के माध्यम से न हो कर अलग तरह से होने लगता है .
    हिन्दी भाषा को बोल कर सिखाना सबसे व्यावहारिक और उपयोगी प्रयास है ,सीखनेवाले के लिए सबसे सरल भी .सिखाने वाले के मनोयोग और सद्भाव इसके प्रसार में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका है . आ. मधुसूदन जी जिस लगन एवं समर्पण के साथ इस कार्य में जुटे हैं -प्रणम्य है ऍ

    • बहुत बहुत धन्यवाद डॉ. प्रतिभा जी। आप जैसी विदुषी की टिप्पणियाँ ही मेरा पुरस्कार है।
      उत्तर देने में देरी के लिए क्षमा चाहता हूँ।

      (१)सही कह रही हैं आप। विशेषतः भाषा में बोलने के अनुभव का त्वरित लाभ लोगों को प्रोत्साहित भी कर के रखता है।
      न लिपि की आवश्यकता। न लिखना सीखने में समय खर्च। और ऐसा त्वरित लाभ सभी को बांधे रखता है।

      समय देकर आप ने टिप्पणी की, और आलेख पढा।
      आपका आभार मानता हूँ।
      और फिरसे धन्यवाद व्यक्त करता हूँ।

  3. अब तक का सर्वश्रेष्ठ लेख, आकलन को व्यवहारिकता के स्तर तक ले जाता लेख। आज चार साल बाद हमारी कंपनी (जहाँ मैं कार्यरत हूँ, कंपनी मेरी नहीं है ) के चेइयार प्लांट (तिरुवन्नामलाई जिला) में हिंदी बोली जाने लगी है। लगभग ८० प्रतिशत तमिल स्टाफ और वर्कर हिंदी बोलने और समझने लगे हैं। कारण …………. जो डाक्टर साहब ने सुझाया है, हम उसे पहले से ही अपना रहे हैं। और यही व्यवहारिक भी है, इसीलिए मैंने लेख के शुरुआत में ही इसे अब तक का सर्वश्रेष्ठ लेख कहा है। सन २०११ से अब तक का लगभग ७० प्रतिशत समय मैंने तमिलनाडु में बिताया है और पाया की बहुत से भाई बहन हिंदी पढ़ लेते हैं लेकिन हिचक के कारण बोलने में असमर्थ हैं, कई लोग ऐसे भी मिले जो बोलने में बहुत अच्छे हैं और पढ़ नहीं पाते हैं। हमारे डाक्टर अरविन्द भाई हिंदी बहुत अच्छी बोलते हैं, एक दिन मैंने हिंदी पढ़ने का जिक्र किया तो बोले की सिक्किम से डाक्टरी (एम बी बी एस ) की पढ़ाई की है, और वहां उनके सहपाठी हिंदी बोलते थे, जिस कारण डाक्टर भाई ने भी हिंदी बोलना सीख लिया था, बाकि का काम मैंने किया और आज की तारीख में वो बहुत अच्छी तरह से हिंदी पढ़ भी लेते हैं। मैं जब भी उस प्लांट में जाता हूँ तो अपने हिंदी बोलने वाले स्टाफ और वर्कर्स को खूब प्रोत्साहित कर के आता हूँ। उनको कहता हूँ की बहुत अच्छा काम कर रहे हो करते रहो सबको हिंदी की सेवा करनी है। एक बात और कहूँगा कि इस कड़ी में पढ़ाने वाले को बहुत धैर्य की आवश्यकता होगी, क्योंकि लिपिगत सीमाओं के कारण वो बहुत से शब्दों का उच्चारण नहीं कर पाते हैं। इसका बहुत ध्यान रखना होगा।

    बहुत ही उत्तम लेख डाक्टर साहब की और लेख की मैं भूरि भूरि प्रशंसा करता हूँ।

    ​(अपना जिक्र सिर्फ मैंने इसलिए किया है कि यदि प्रयास किये जाएं तो सफलता अवश्य मिलती है। और प्रयास के लिए अपनी भाषा से प्रेम आवश्यक है)​

    ​इति शुभम्। ​


    सादर,
    शिवेंद्र मोहन सिंह

    • प्रिय शिवेन्द्र जी—-नमन

      समय देकर आप ने आलेख पढा और एक”विशेष टिप्पणी” भी डाल दी। हिन्दी सेवामें जिस कर्मठता से आप हिन्दी वार्तालाप के माध्यम से प्रचार में जुटे हैं। मेरा सर झुक जाता है।

      साथ साथ मुझे शासन से भी अपेक्षाएं पूरी होने की आशा बंधी है।

      और आप के शब्द मेरे लिए बडा प्रोत्साहन है। बाहर था, उत्तर में देर हो गयी।

      मुझे गौरव है, कि, आप भी हिन्दी प्रचार में, सक्रिय हैं।

      कभी संस्कृत भारती के पाठ यु ट्यूब पर देखिएगा। १ से लेकर २५ तक लगे हुए हैं। उसीके प्रतिमान(अनुकरण से) से हिन्दी भी फैल सकती है।
      आप स्वस्थ रहें। डटे रहें।

  4. Since most southerns know Sanskrit script, Have we ever try to teach all Indian languages in Devanagari script or in India’s simplest nukta and shirorekha Gujanagari script or in regional script by modifying this Google Translate?

    https://translate.google.com/#hi/ta/%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%B0%E0%A4%BE%20%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%AE%20%E0%A4%85%E0%A4%A8%E0%A4%82%E0%A4%A4%20%20%E0%A4%B9%E0%A5%88%E0%A5%A4%E2%80%9D%E0%A4%86%E0%A4%AA%E0%A4%95%E0%A4%BE%20%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%AE%20%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%20%E0%A4%B9%E0%A5%88%3F

    Through Hindi:
    मेरा नाम अनंत है।”
    आपका नाम क्या है?
    Mērā nāma ananta hai.”
    Āpakā nāma kyā hai?

    என் பெயர் முடிவற்றது. ”
    உங்கள் பெயர் என்ன?
    Eṉ peyar muṭivaṟṟatu. ”
    Uṅkaḷ peyar eṉṉa?

    Through English:

    my name is Anant.
    What is your name?
    मेरा नाम अनंत है.
    आपका नाम क्या है?
    Mērā nāma ananta hai.
    Āpakā nāma kyā hai?

    મારું નામ અનંત છે.
    તમારું નામ શું છે?
    Māruṁ nāma ananta chē.
    Tamāruṁ nāma śuṁ chē?

    என் பெயர் ஆனந்த் ஆகிறது.
    உங்கள் பெயர் என்ன?
    Eṉ peyar āṉant ākiṟatu.
    Uṅkaḷ peyar eṉṉa?

    One may watch this video.
    Samskrita Bharati ITV Interview Sri Chamu Krishna Shastry and Sowmya Joisa

    https://youtu.be/VhpRKY4a3ds

    આઓ મિલકર સંકલ્પ કરે,જન-જન તક ગુજનાગરી લિપિ પહુચાએંગે,
    સીખ, બોલ, લિખ કર કે,
    હિન્દી કા માન બઢાએંગે.
    ઔર ભાષા કી સરલતા દિખાયેંગે .

    બોલો હિન્દી લેકિન લિખો સર્વ શ્રેષ્ટ નુક્તા / શિરોરેખા મુક્ત ગુજનાગરી લિપિમેં !
    ક્યા દેવનાગરી કા વર્તમાનરૂપ ગુજનાગરી નહીં હૈ ?

    • Dr.Madhusuudan,

      You may read BBC-Tamil here in Hindi.

      https://www.virtualvinodh.com/aksharamkh/aksharamukha-web.php?website=https://www.bbc.co.uk/tamil/&src=tamil&tgt=hindi

      Here are some Tamil Words.

      One: ओऩ्ऱु [ondru]
      Two: इरण्टु [iraNtu]
      Three: मूऩ्ऱु [moondru]
      Four: नाऩ्कु [nānku]
      Five: ऐन्तु [aindhu]
      Six: आऱु [āRu]
      Seven: एऴु [Ezhu]
      Eight: एट्टु [ettu]
      Nine: ओऩ्पतु [onpadhu]
      Ten: पत्तु [paththu]
      First: मुतलावतु [mudhalāvadhu]
      Second: इरण्टावतु [iraNtāvadhu]
      Monday: तिङ्कट् किऴमै [thingat kizhamai]
      Tuesday: चेव्वाय्क् किऴमै [sevvāik kizhamai]
      Wednesday: पुतऩ् किऴमै [pudhan kizhamai]
      Thursday: वियाऴक् किऴमै [viyāzhak kizhamai]
      Friday: वेळ्ळिक् किऴमै [veLLik kizhamai]
      Saturday: चऩिक् किऴमै [sanik kizhamai]
      Sunday: ञायिऱ्ऱुक् किऴमै [gnāyitruk kizhamai]
      Now: इप्पोऴुतु [ippozhudhu]
      Yesterday: नेऱ्ऱु [nEtru]
      Today: इऩ्ऱु [indru]
      Tonight: इऩ्ऱिरवु [indriravu]
      Tomorrow: नाळै [nāLai]

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