मुस्लिम देश में हिंदू नेता

डॉ. वेदप्रताप वैदिक
दुनिया के सबसे बड़े मुस्लिम देश में दुनिया के सबसे बड़े हिंदू देश का प्रधानमंत्री जाए तो यह अपने आप में बड़ी खबर है। इससे भी बड़ी खबर यह है कि हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और इंडोनेशिया के राष्ट्रपति जोको विदोदो ने मिलकर ऐसी पतंग उड़ाई, जिन पर रामायण और महाभारत के दृश्य-चित्र बने हुए थे। मोदी ने रथ पर सवार अर्जुन की मूर्ति देखी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का यह प्रचारक इंडोनेशिया की प्रसिद्ध मस्जिद इस्तिकलाल के दर्शन करने भी गया। मोदी अपनी अवधि के आखिरी साल में जकार्ता गए। उन्हें तो पहले साल में ही इंडोनेशिया जाना चाहिए था। इंडोनेशिया भारत के भूतकाल का दर्पण ओर भविष्य का स्वप्न है। 1965 में पहली बार जब मैंने इंडोनेशियाई रामायण या रामलीला देखी तो मैं दंग रह गया। 300-400 पात्रोंवाली इस रामलीला के पात्र—-राम, सीता, रावण, लक्ष्मण सभी पात्र मुसलमान थे। इंडोनेशिया को वैसे हिंदेशिया भी कहा जाता है। इस देश के सबसे प्रसिद्ध नेता और राष्ट्रपति का नाम सुकर्ण था और वर्तमान नेता और उनकी बेटी का नाम सुकर्णपुत्री मेघावती है। सुकर्ण के ससुर का नाम 
अलीशास्त्रमिदजोजो था। इंडोनेशिया के प्रांत बाली में 84 प्रतिशत नागरिक हिंदू धर्म को मानते हैं। वे वहीं के मूल निवासी हैं। वे भारत से गए प्रवासी नहीं हैं। वैसे इंडोनेशिया के हिंदुओं की कुल संख्या 1 करोड़ 80 लाख मानी जाती है। 26 करोड़ के इस मुस्लिम राष्ट्र में चीनी मूल के भी लगभग 3 लाख लोग रहते हैं। 1965 के तख्ता-पलट के वक्त हजारों चीनियों को मार दिया गया था लेकिन हिंदुओं के साथ मुसलमानों का बर्ताव बेहतर है। भारत के मुसलमानों को इंडोनेशिया के मुसलमानों से यह बड़ी सीख लेनी चाहिए कि वे उत्तम मुसलमान हैं लेकिन वे अरबों के नकलची नहीं हैं। उनकी अपनी प्राचीन आर्य संस्कृति है, जिसे वे किसी भी हालत में छोड़ना नहीं चाहते। उनके राष्ट्रीय नायक, उनके नाम, उनका भोजन, उनका भजन, उनकी भूषा, उनकी भाषा, उनकी भेषज उनकी अपनी है। फिर भी वे नैष्ठिक मुसलमान हैं। इस देश के साथ भारत के संबंध इसलिए भी घनिष्ट होने चाहिए, क्योंकि इंडोनेशिया के सुकर्ण और भारत के नेहरु गुट-निरपेक्ष सम्मेलन के संस्थापक रहे हैं। मोदी ने इस देश को और भारत को एक ‘नई व्यापक समारिक साझेदारी’ के बंधन में बांध लिया है। दोनों देशों के बीच सैन्य-सहयोग नई ऊंचाइयां छुएगा। अंडमान-निकोबार से सिर्फ 90 किमी की दूरी पर स्थित इस सामुद्रिक देश के साथ व्यापार भी बहुत तेजी से बढ़ेगा। पिछले साल यह सवा लाख करोड़ रु. का था, अब कुछ वर्षों में यह साढ़े तीन लाख करोड़ का हो जाएगा। इंडोनेशिया 87 हजार करोड़ और भारत सिर्फ 27 हजार करोड़ का निर्यात करता है। यह असंतुलन दूर होना चाहिए। दोनों देशों को मजहबी कट्टरवाद और आतंकवाद के खिलाफ भी एकजुट होना होगा। यदि इंडोनेशिया, वियतनाम और भारत साझा रणनीति बनाएं तो वे चीन के सामुद्रिक विस्तारवाद पर भी अंकुश लगा सकते हैं। दोनों देशों के बीच हिंदी और भाषा इंडोनेशिया का प्रचार-प्रसार बढ़े तो सांस्कृतिक सहयोग और पर्यटन में भी वृद्धि हो। भारत के मुसलमान नेताओं को इंडोनेशिया जरुर देखकर आना चाहिए।

3 COMMENTS

  1. ज्ञानवर्धक, विशेषतः अनुकरणीय लेख के लिए आपको मेरा साधुवाद|

  2. डॉ. राजेश कपूर जी की टिप्पणी ने ध्यान खींचा.
    भारत को आज चमत्कार सर्जक और प्रतिभासम्पन्न मौलिक नेतृत्व वाला प्रधान मंत्री मिला है.
    **इस अवसर का उपयोग यदि भारत की प्रजा नहीं कर पाए, तो पता नहीं, कैसे अंधयुग में भारत फिरसे चला जाएगा!**
    ॥कृण्वन्तो विश्वमार्यम्‌॥
    सभी के उत्कर्ष में हम अपना उत्कर्ष देखते हैं.
    **बुद्धिमान और चिन्तक मुसलमान भी इस बात को समझता है.**
    दुनिया भर में मोदी ने अपनी अलग पर भारतीय संस्कृति की, उदार छवि प्रचारित और प्रस्थापित करने का भरसक प्रयास किया है. यही विशेष है मोदी जी का.
    विद्वान पाठक इस विशेषता को प्रचारित करें.
    जिसका लाभ भारत को भविष्य में मिलने लगेगा.
    कर्म का फल त्वरित नहीं मिलता –कुछ कालावधि के बाद मिलता है.
    सही आलेख-सही मूल्यांकन. लेखक को धन्यवाद.

  3. आपके अति उतम, समसामयिक लेख के लिये साधुवाद।

Leave a Reply to Rajesh Kapoor Cancel reply

Please enter your comment!
Please enter your name here