कोटि हिन्दु जन का ज्वार, मंदिर के लिए सब तैयार ……

-डॉ0 नवीन जोशी

क्या सूरज को सूरज होने का प्रमाण देना पड़ता है या चाँद को अपनी चांदनी साबित करना पड़ती है, मगर ये भारतीय जन के विश्वास पर चोट है कि इस देश में ‘राम जन्मभूमि’ को प्रामाणिकता की जंग लड़ना पड़ रही है। कोटि-कोटि हिन्दु जन के मन में आस्था का प्रतीक बने रामलला के मन्दिर निर्माण में बरसों से दांव पेंच चले जा रहे हैं। राजनीतिज्ञों ने मंदिर को मुद्दे की तरह इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है।

यदि राष्ट्र की धरती छिन जाए तो शौर्य उसे वापस ला सकता है, यदि धन नष्ट हो जाए तो परिश्रम से कमाया जा सकता है, यदि राज्य सत्त छिन जाए तो पराक्रम उसे वापस ला सकता है परन्तु यदि राष्ट्र की चेतना सो जाए, राष्ट्र अपनी पहचान ही खो दे तो कोई भी शौर्य, श्रम या पराक्रम उसे वापस नहीं जा सकता। इसी कारण भारत के वीर सपूतों ने, भीषण विषम परिस्थितियों में, लाखों अवरोधों के बाद भी राष्ट्र की इस चेतना को जगाए रखा। इसी राष्ट्रीय चेतना और पहचान को बचाए रखने का प्रतीक है श्रीराम जन्मभूमि मन्दिर निर्माण का संकल्प।

अयोध्‍या की गौरवगाथा अत्यन्त प्राचीन है। अयोध्‍या का इतिहास भारत की संस्कृति का इतिहास है। अयोध्‍या सूर्यवंशी प्रतापी राजाओं की राजधानी रही, इसी वंश में महाराजा सगर, भगीरथ तथा सत्यवादी हरिशचन्द्र जैसे महापुरूष उत्पन्न हुए, इसी महान परम्परा में प्रभु श्रीराम का जन्म हुआ। पाँच जैन तीर्थंकरों की जन्मभूमि अयोध्‍या है। गौतम बुद्ध की तपस्थली दंत धावन कुण्ड भी अयोध्‍या की ही धरोहर है। गुरूनानक देव जी महाराज ने भी अयोध्‍या आकर भगवान श्रीराम का पुण्य स्मरण किया था, दर्शन किए थे। श्रीराम जन्मभूमि पर कभी एक भव्य विशाल मन्दिर खड़ा था। मध्‍ययुग में धार्मिक असहिष्णु, आतताई, इस्लामिक आक्रमणकारी बाबर के क्रूर प्रहार से जन्मभूमि पर खड़े सदियों पुराने मन्दिर को ध्‍वस्त कर दिया। आक्रमणकारी बाबर के कहने पर उसके सेनापति मीरबाकी ने मन्दिर को तोड़कर ठीक उसी स्थान पर एक मस्जिद जैसा ढांचा खड़ा कराया। 1528 ई. के इस कुकृत्य से सदा-सदा के लिए हिन्दू समाज के मस्तक पर अपमान का कलंक लग गया। श्रीराम जन्मस्थान पर मन्दिर का पुन:निर्माण इस अपमान के कलंक को धोने के लिए तथा हमारी आस्था की रक्षा के साथ-साथ भावी पीढ़ी को प्रेरणा देने के लिए आवश्यक है।

हिन्दुओं के आराध्‍य भगवान श्रीराम की जन्मभूमि पर बने मन्दिर को तोड़कर मस्जिद बनाने का वर्णन अनेक विदेशी लेखकों और भ्रमणकारी यात्रियों ने किया है। फादर टाइफैन्थेलर का यात्रा वृत्तन्त इसका जीता-जागता उदाहरण है। आस्ट्रिया के इस पादरी ने 45 वर्षो तक (1740 से 1785) भारतवर्ष में भ्रमण किया, अपनी डायरी लिखी। लगभग पचास पृष्ठों में उन्होंने अवध का वर्णन किया, उन्होंने लिखा कि रामकोटि में तीन गुम्बदों वाला ढांचा है उसमें 14 काले कसौटी पत्थर के खम्भे लगे हैं, इसी स्थान पर भगवान श्रीराम ने अपने तीन भाइयों के साथ जन्म लिया। भावी मन्दिर का प्रारूप बनाया गया। अहमदाबाद के प्रसिद्ध मन्दिर निर्माण कला विशेषज्ञ श्री सी.बी. सोमपुरा ने प्रारूप बनाया। इन्हीं के दादा ने सोमनाथ मन्दिर का प्रारूप बनाया था। मन्दिर निर्माण के लिए जनवरी, 1989 में प्रयागराज में कुम्भ मेला के अवसर पर पूज्य देवराहा बाबा की उपस्थिति में गांव-गांव में शिलापूजन कराने का निर्णय हुआ। पौने तीन लाख शिलाएं पूजित होकर अयोध्‍या पहुँची। विदेश में निवास करने वाले हिन्दुओं ने भी मन्दिर निर्माण के लिए शिलाएं पूजित करके भारत भेजीं। पूर्व निर्धारित दिनांक 09 नवम्बर, 1989 को सब अवरोधों को पार करते हुए सबकी सहमति से मन्दिर का शिलान्यास बिहार निवासी श्री कामेश्वर चौपाल के हाथों सम्पन्न हुआ। तब उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री कांग्रेस के श्री नारायण दत्त तिवारी और भारत सरकार के गृहमंत्री श्री बूटा सिंह तथा प्रधानमंत्री स्व0 राजीव गांधी थे।

24 मई, 1990 को हरिद्वार में विराट हिन्दू सम्मेलन हुआ। सन्तों ने घोषणा की कि देवोत्थान एकादशी (30 अक्टूबर, 1990) को मन्दिर निर्माण के लिए कारसेवा प्रारम्भ करेंगे। यह सन्देश गांव-गांव तक पहुँचाने के लिए 01 सितम्बर, 1990 को अयोध्‍या में अरणी मंथन के द्वारा अग्नि प्रज्जवलित की गई, इसे ‘रामज्योति’ कहा गया। दीपावली 18 अक्टूबर, 1990 के पूर्व तक देश के लाखों गांवों में यह ज्योति पहुँचा दी गई। उत्तरप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह ने अहंकारपूर्ण घोषणा की कि ‘अयोध्‍या में परिन्दा भी पर नहीं मार सकता, उन्होंने अयोध्‍या की ओर जाने वाली सभी सड़कें बन्द कर दीं, अयोध्‍या को जाने वाली सभी रेलगाड़ियाँ रद्द कर दी गईं, 22 अक्टूबर से अयोध्‍या छावनी में बदल गई। फैजाबाद जिले की सीमा से श्रीराम जन्मभूमि तक पहुँचने के लिए पुलिस सुरक्षा के सात बैरियर पार करने पड़ते थे। फिर भी रामभक्तों ने 30 अक्टूबर को वानरों की भांति गुम्बदों पर चढ़कर झण्डा गाड़ दिया। सरकार ने 02 नवम्बर, 1990 को भयंकर नरसंहार किया। 3 दिसम्बर, 1992 को जब ढांचा गिर रहा था तब उसकी दीवारों से शिलालेख प्राप्त हुआ। विशेषज्ञों ने पढ़कर बताया कि यह शिलालेख 1154 ई. का संस्कृत में लिखा है, इसमें 20 पंक्तियाँ हैं। ऊँ नम: शिवाय से यह शिलालेख प्रारंभ होता है। विष्णुहरि के स्वर्ण कलशयुक्त मन्दिर का इसमें वर्णन है। अयोध्‍या के सौन्दर्य का वर्णन है। दशानन के मान-मर्दन करने वाले का वर्णन है। ये समस्त पुरातात्तिवक साक्ष्य उस स्थान पर कभी खड़े रहे भव्य एवं विशाल मन्दिर के अस्तित्व को ही सिद्ध करते हैं। सरकारें और न्यायालय भी इस सच को झुठला नहीं सके।

6 दिसम्बर, 1992 का ढांचा ढह जाने के बाद तत्काल बीच वाले गुम्बद के स्थान पर ही भगवान का सिंहासन और ढांचे के नीचे परम्परा से रखा चला आ रहा विग्रह सिंहासन पर स्थापित कर पूजा प्रारंभ कर दी। हजारों भक्तों ने रात और दिन लगभग 36 घण्टे मेहनत करके बिना औजारों के केवल हाथों से उस स्थान के चार कोनों पर चार बल्लियाँ खड़ी करके कपड़े लगा दिए 5-5 फीट ऊँची, 25 फीट लम्बर, 25 फीट चौड़ी ईंटों की दीवार खड़ी कर दी और बन गया मन्दिर। आज भी इसी स्थान पर पूजा हो रही है, जिसे अब भव्य रूप देना है, जो विशाल हिन्दू जन किसी भी वक्त कर देगा।

07 जनवरी 1993 को भारत सरकार ने ढांचे वाले स्थान को चारों ओर से घेरकर लगभग 67 एकड़ भूमि का अधिग्रहण कर लिया। इस भूमि के चारों ओर लोहे के पाईपों की ऊँची-ऊँची दोहरी दीवारें खड़ी कर दी गईं। भगवान तक पहुँचने के लिए बहुत संकरा गलियारा बनाया, दर्शन करने जाने वालों की सघन तलाशी की जाने लगी। जूते पहनकर ही दर्शन करने पड़ते हैं। आधा मिनट भी ठहर नहीं सकते। वर्षा, शीत, धूप से बचाव के लिए कोई व्यवस्था नहीं है। इन कठिनाइयों के कारण अतिवृद्ध भक्त दर्शन करने जा ही नहीं सकते। अपनी इच्छा के अनुसार प्रसाद नहीं ले जा सकते। जो प्रसाद शासन ने स्वीकार किया है वही लेकर अन्दर जाना पड़ता है। दर्शन का समय ऐसा है मानो सरकारी दफ्तर हो। दर्शन की यह अवस्था अत्यन्त पीड़ादायी है। इस अवस्था में परिवर्तन लाना है जो इस वर्ष संभव होता प्रतीत है।

अब नए स्वरूप में मंदिर बनेगा

श्रीराम जन्मभूमि पर बनने वाला मन्दिर तो केवल पत्थरों से बनेगा। सीमेन्ट, कांक्रीट से नहीं। मन्दिर में लोहा नहीं लगेगा। नींव में भी नहीं। मन्दिर दो मंजिला होगा। भूतल पर रामलला और प्रथम तल पर राम दरबार होगा। सिंहद्वार, नृत्य मण्डप, रंग मण्डप, गर्भगृह और परिक्रमा मन्दिर के अंग हैं। 270 फीट लम्बा, 135 फीट चौड़ा तथा 125 फीट ऊँचा शिखर है। 10 फीट चौड़ा परिक्रमा मार्ग है। 106 खम्भे हैं। 6 फीट मोटी पत्थरों की दीवारें लगेंगी। दरवाजों की चोखटें सफेद संगमरमर पत्थर की होंगी। 1993 में मन्दिर निर्माण की तैयारी तेज कर दी गई। मन्दिर में लगने वाले पत्थरों की नक्काशी के लिए अयोध्‍या, राजस्थान के पिण्डवाड़ा व मकराना में कार्यशालाएं प्रारम्भ हुई। अब तक मन्दिर के फर्श पर लगने वाला सम्पूर्ण पत्थर तैयार किया जा चुका है। भूतल पर लगने वाले 16.6 फीट के 108 खम्भे तैयार हो चुके हैं। रंग मण्डप एवं गर्भगृह की दीवारों तथा भूतल पर लगने वाली संगमरमर की चौखटों का निर्माण पूरा किया जा चुका है। खम्भों के ऊपर रखे जाने वाले पत्थर के 185 बीमों में 150 बीम तैयार हैं। मन्दिर में लगने वाले सम्पूर्ण पत्थरों का 60 प्रतिशत से अधिक कार्य पूर्ण हो चुका है। हम समझ लें कि श्रीराम जन्मभूमि सम्पत्ति नहीं है बल्कि हिन्दुओं के लिए श्रीराम जन्मभूमि आस्था है। भगवान की जन्मभूमि स्वयं में देवता है, तीर्थ है व धाम है।

क्या है कोर्ट के हालात

श्रीराम जन्मभूमि के लिए पहला मुकदमा हिन्दु की ओर से जिला अदालत में जनवरी, 1950 में दायर हुआ। दूसरा मुकदमा रामानन्द सम्प्रदाय के निर्मोही अखाड़ा की ओर से 1959 में दायर हुआ। सुन्नी मुस्लिम वक्फ बोर्ड की ओर से तो दिसम्बर, 1961 में मुकदमा दायर हुआ। 40 साल तक फैजाबाद की जिला अदालत में ये मुकदमे ऐसे ही पड़े रहे। वर्ष 1989 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश देवकीनन्दन अग्रवाल (अब स्वर्गीय) ने स्वयं रामलला और राम जन्मस्थान को वादी बनाते हुए अदालत में वाद दायर कर दिया, मुकदमा स्वीकार हो गया। सभी मुकदमें एक ही स्थान के लिए हैं अत: सबको एक साथ जोड़ने और एक साथ सुनवाई का आदेश भी हो गया। सितम्बर 2010 में फैसला आना है, निर्णय जो भी हो, अब जनमेदिनी की अटूट आस्था पर ‘ मुहर ‘ लगना ही है। मंदिर निर्माण को लेकर सभी हिन्दू एक स्वर में उद्धोष कर रहे हैं – ” कोटि हिन्दु जन का ज्वार बन कर रहेगा मंदिर इस बार।”

15 COMMENTS

  1. ॥बाबर का काफिर खोपडियों के ढेरके सामने मदहोश नाच॥–बाबर के तवारिख से पढा हुआ निम्न वृत्तांत-{सच्चायी बताओ तो पूछते है, क्यों सच बता रहे हो?
    कृष्णने अर्जुन को कहा क्या? कि क्यों लडते हो, हिमालय जा के ध्यान धरो}सच्चायी सह सकते हो? तो ही पढो। नहीं तो बेसुध हो जाओगे।
    =>बाबर कत्ल किए काफिरों की खोपडियों का ढेर लगाकर, मैदान में शामियाना तानकर, फिर उस ढेर को फेरे लगाकर मद होश हो कर, नाचा करता था।
    पर, एक बारकी बात जो (History of India as written by Own Historians)- में पढा हुआ याद है, कि जब खूनसे लथपथ ज़मिन हुयी और बाबर के पैरों तले खूनसे भिगने लगी, तो शामियाने को पीछे हटाना पडा। फिर भी मारे हुए काफ़िरों की मुंडियों का ढेर बढता ही गया, और फिरसे बाबर के पैरोंतले ज़मिन रक्तसे भीगी, तो फिर और एक बार शामियाना पीछे हटाना पडा। ऐसे बाबरी को, सोच भी नहीं सकते!
    जिस बाबरने ऐसा काम किया हो, उसका मकबरा तो दुनिया में कहीं भी ना बनना चाहिए।
    यह रपट मैंने एलियट और डॉसन के ८ ग्रंथोंके संग्रह में पढा हुआ है।
    भारत में इन ग्रंथोंपर पाबंदी थी। मैं ने इन किताबोंको मेरे मित्र, जिन्होने इन पुस्तकों को खरिदा था, उनसे लाकर पढी थी।
    शायद आज यह किताबें भारत मे बिकनेपर प्रतिबंध है। यह सारा इतिहास तवारिखें लिखनेवाले दरबारी लेखको ने लिखा है।
    किसी तीसरे ने लिखा हुआ नहीं। बडा अधिकृत है। भारत की सरकार की हिम्मत हो, तो इन किताबोंपर लगी पाबंदी हटाए।
    ।सत्यमेव जयते।- लिखते हो। काहे ?
    तवारिखोंके के कुछ नाम जैसे, बाबरनामा, जहांगिरनामा, ऐसे करीब ४० एक नाम थे। मैं ने यह मेरी दृढ स्मृतिके(संदेह नहीं) आधार पर लिखा है।
    ऐसे बाबर की बाबरी? सोच भी कैसे? क्या? हमारी सरकार हमें अंधेरेमें रखकर वोट बॅंक पक्की करना चाहती है।
    हिंदुओंके देशमें राम तालेमें बंद? क्या उलटा ज़माना आया है। तो मंदिर क्या सौदि अरेबियामें, या अफगानिस्तान मे? Come on have some Common Sense. Ref:History of India As Told by Own Historians (8 Volumes)-H. M. Elliot (Author), John Dowson (Editor)

  2. It requires no proof whether a mandir was present at that site in Ayodhya or not. Let me ask a counter question – What else could have been there ? Hindus have believed for last several Athousand years that Ayodhya is birthplace of Shri Ram. So is it not natural that there would have been a Ram mandir there?

    I think Hindu community has been way too polite so far. It should now display a show of strength and not watse time in arguments which will not end up in any conclusion. People who oppose building a temple need to dealt with in the language they understand.

  3. हार या जीत के लिए, नहीं, सत्य को ढूंढने के लिए चर्चा चले। आप असहमत हो, तो पढनेका कष्ट ना करें।
    (१) प्रकृति उत्क्रांतिशील है, विकसन शील है(ऍमिबासे मनुष्य तक)।बदलते परिवेश में मनुष्य़ भी बदलते आया है।
    (मेरी समजमें) इस लिए, हिंदू धर्म उत्क्रांतिशील है। वह हर पौराणिक और ऐतिहासिक कालसे समयानुसार बदलते, सुधार करते आया है। इसके कई उदाहरण आपको मिलेंगे।आपत्‌ धर्म भी अल्प काल चलता है।
    इस बदलावका निकष है, निम्न श्र्लोक।
    ॥यस्तर्केण अनुसंधते स धर्मो वेद नेतरः॥ {महाभारत(?) का है} =>॥हिंदी अन्वयार्थ:=> जो तर्क के आधारपर परखा और सिद्ध किया जा सकता है, वही धर्म है,दूसरा नहीं।
    इस लिए हिंदू धर्मको कोई भी पौराणिक या ऐतिहासिक (Frozen in time) घटनाओ से बांध रखना, अनुचित है। अच्छी घटनाओ से ज़रूर सीखे।
    उदा: द्रौपदी के पांच पति थे, इस लिए आज हर लडकी को पांच पतिओं से ब्याहा नहीं जाता।
    इस लिए जिस के अनुसार वह जिएगा, वह स्मृति भी बदलेगी। हमारी १८ स्मृतियां लिखी गई है। मैने नीचे गुजराती सूचि को(समय बचाने) नागरी/गुजराती मिश्रित लिपिमें उतारा है।
    (१) मनु, (२) आत्रेयी (३) वैष्णवी (४) हारितकी (५) याज्ञवल्कि (६) शनैश्वरी (૭) अंगिरा, (૮) आपस्तंबी (९)सांवर्तिकी સ્મૃતિ, (૧૦) कात्यायनी (૧૧) बृहस्पति સ્મૃતિ, (૧૨) પારાશરી સ્મૃતિ, (૧૩) શંखी સ્મૃતિ, (૧૪) लिखीता સ્મૃતિ, (૧૫) दाक्षी સ્મૃતિ, (૧૬) ગૌતમી સ્મૃતિ, (૧૭) શાતાતપી સ્મૃતિ, और (૧૮) વાસિષ્ઠી સ્મૃતિ.
    ==आजके लिए नयी स्मृति (मनु नहीं) ११५० वर्षके गुलामीके कारण बनी नहीं है, पर विवेकानंदजी के विचारों के आधार पर बन सकती है।=हिंदीमें भी बन सकती है।
    ऊर्ध्व दिशामें ही सभीको उपर उठना है। विवेकानंदजी: हिंदू के केवल दो आदर्श (१) ब्रह्म तेज, और (२) क्षात्र वीर्य।
    हम इसी युगांतरी काम में जुटे हुए हैं। ११५० वर्षों की मलिनता, दूर करने में समय लगेगा। डॉ. हेडगेवार जी ने इसे प्रारंभ किया है। आप सचमें तो इस युगांतरी कार्यमें चाहे तो हाथ बटा सकते हैं।बहुत काम है। आपने गिनाया, वह भी।
    ॥अभिव्यक्ति कर्म से हो, न शब्दों से॥हां सत्यको उद्‌घाटित करने चर्चा की जाए।
    सच्चाई के शोधमें हम भी हैं

  4. धर्म निरपेक्षता ढोंग है धर्म नहीं तो न्याय कैसा?
    पर धर्म भी धर्म होना चाहिए पाखंड हो तो न्याय कैसा?

  5. क्या आप सच्चे हृदय तल से न्याय में मानते हैं?
    यदि हां तो आगे पढें।
    बहुत सारे पाठक अपने आप को धर्म निरपेक्ष भी मान बैठे हैं।
    निम्न निकष पर आप वास्तव में “धर्म निरपेक्ष”ता की कसौटी कर सकते हैं।
    ॥प्रारंभ॥
    न्यायाधिशको निर्णय ऐसेही करना होता है। न्याय की देवी इसी लिए आंख पर पट्टी बांधकर दिखायी जाती है।
    उसे न हिंदू दिखता है, न मुसलमान। उसे तो एक इन्सान और दूसरा इन्सान दिखायी देता है।
    वह एक को “क्ष” नामसे जानता है, दूसरे को “य”।
    क्या आप ऐसा निर्णय कर सकते हैं?
    यदि हां, तो अब आप पूरे इतिहासको जानते ही हैं। आप को सच्चे हृदयसे सत्य लगे ऐसा निर्णय ले।
    उसमें क्ष=हिंदू डाल दीजिए, और य= मुसलमान, और एक कागज़ पर निर्णय लिखके एक आवरण में बंद करें।
    =================================================
    उसी निर्णय में, अब अदल बदल कर, आप क्ष=मुसलमान और य=हिंदू लिखकर उसी निर्णय को पढिए।
    यदि आप का निर्णय बदलता नहीं है,(क्ष हो या य हो) तो आप सच्चे धर्म निरपेक्ष है, ढोंगी नहीं।

  6. kon hindu hai ye log jo hinudo ko murkh bana kar thoti bate karate hai???jo dharm sthapana ke har sangarsh me bhag lene valo ko hatosahit karate hai,kabhi unhe galiya bakate hai,jaise mano vo bahut dharm ka kam kara rahe ho.
    koravao ke sath karn,bhishm,kripacary,ashvthama,dronacary,shalv jaise “bahari naam dhari” log the par kya huva???dharm kya hai samajhana bahut mushkil hai agar koyi gita padhe to vo prateyak bat me yahi kahati hai ki dushto ka nash hi dharm hai.
    jo jo hinduo ko “napunsak” banane vale upadesh de rahe hai vo jakar gita padhe vapas our cintan kare ki kahi ham duryodhan ya bhisam ya balaram to nahi ban rahe hai???”ekata” ki bato ka dong karane valo ki bato me akar hi hindusamaj ko bhayankar hani uthani padhi hai,chahe vo kashmir me ho chahe vo pakistan me chahe vo ayodhya me.
    kahi ham log “gomantak” upanyas ke us” gumanami baba” ki tarah to nahi ban rahe hai jo dusto ko nash nahi karata balki dharm sthapana ke marg me farji sidhanto ko la kar dharm kary ke liye udhyt logo ko bharmit kar apane hal me marane ke liye chhod deta hai our sabase pahale khud hi un dushto ke hatho mara jata hai,vichar kariyega.

  7. आदरणीय तिवारी जी, काश आप श्री राम और श्री कृष्ण के काल में हुए होते तो लाखों की ह्त्या के पाप से हमारे ये दोनों श्रधा पुरुष बच जाते. मेरे आदरणीय भाई, रावण, कंस और दुर्योधन हर युग में पैदा हुए और हर युग में पैदा होंगे. उनसे समाज की रक्षा के लिए सदा से वीरों को युद्ध करना पडा है और करना पडेगा. उनके विनाश के लिए अवतार हुए और होते रहेंगे. कृपया इस सच को समझने का प्रयास करें.
    साधना ही मुक्ती का शिव द्वार है,
    शक्ती ही तो शांती का आधार है,
    सुख-शांती के लिए दुष्टों का नियंत्रण व दमन ज़रूरी है. बिना भय के दुष्ट नहीं मानते और शक्ती, संगठन के बिना वे भयभीत नहीं होते. अतः सज्जन शक्तियों को जागरूक और शक्तिशाली बनाना ही पडेगा. अतः डा. नवीन जोशी जी के इस सुप्त समाज को जगाने की प्रशंसा की जानी चाहिए न की उन्हें निरुत्साहित करके दुष्टों के हाथ मजबूत किये जाने चाहियें ?
    – डा. जोशी जी को मेरा साधुवाद!

  8. इतिहास के प्रश्न:
    (१) किसने १००० साल राज किया?
    (2) किसने फिर काफिरोंसे जज़िया लिया?
    (२) अन्याय किसने किया?
    (३) किसने, मा बहनो पर अत्याचार गुज़ारे?
    (४) किसने धर्मांधता से धर्मांतरण किया?
    (५)किसने बलात्कार किए?
    (६) १००० वर्ष सुविधाएं किसे मिली?
    (७)१५० साल, अंग्रेजो से भी पक्षपाती सुविधाएं किसे मिली?
    (८) अंतमें पाकीस्तान भी किसे दिया गया?
    और शासनकी कठपुतली उन्हे preferable treatment पर उनका पहला अधिकार होनेकी बात कहती है।
    और हिंदु, हिंदुस्थानमें और वह भी अयोध्यामें मंदिर नहीं बना सकता? तो क्या सौदि अरेबिया में बनाएगा? या अफ्गानीस्तानमें?
    सारे अन्याय तो हिंदुने सहे, और इतना सारा सहनेके बाद, हिंदुओंपर अनगिनत अमानुषि अत्याचार गुज़ारने के बाद किस ऐतिहासिक अन्याय की भरपाईके लिए मुसलमानों को भारतकी सरकार preferential Treatment दे रही है? इतिहास साक्षी है, कि, ७०,००० {एक ऐतिहासिक अनुमान-by Eliot and Johnson} मस्ज़िदे मंदिरोंकी बुनियादों पे खडी है, तो एक राम मंदिर जहांपर राम जन्मा था, वह भी उसे ना मिले? और वह भी हिंदु बहुल हिंदुस्थानमें?
    ” जिन हिंदुओंनें ११५० साल अन्याय सहा है, उसेही और अन्याय सहाते रहो! ऐसा कहने में कुछ लज्जाका अनुभव भी नहीं होता? उसके ७०,००० ध्वस्त मंदिरोंमें से एक भी उसे मत दो। अरे जहां राम जन्मे थे, वह अयोध्या भी ना दो, और वह भी भारतमें, जहां कहा जाता है कि हिंदूको स्वतंत्रता मिली है? कोइ उत्तर देगा, काहेकी स्वतंत्रता? क्या करनेकी स्वतंत्रता? मुसलमानोंको हज सब्सीडी देने की स्वतंत्रता? जरा, “What happened to Hindu Temples?” part 1 and 2 पढो।उसके अंदरके छाया चित्र देखो। कुछ तर्क दो। केवल विधान ना करो। —

  9. मुझे आज तक यह समझ में नही आया की हिन्दू कौन है?मंदिर निर्माण के बहाने भड़काऊ भाषणों हजारों इंसान का दुश्मन (जिसमे हिन्दू और मुस्लिम दोनों हैं) या शासन तंत्र की मदद से इस खून खराबे को रोकने वाला?वह दलित भी शायद हिन्दू नहीं है,जिसको इन मंदिरों में जाने की इजाजत आज भी नहीं है.फिर यह मंदिर निर्माण किसके लिए?क्या भगवान् यानि इश्वर किन्ही ख़ास लोगों की बपौती है?अगर सच्च कहा जाये तो क्या ये हिन्दू समाज के स्तम्भ बाबर की नक़ल नहीं कर रहे हैं? अगर मान भी लिया जाए की यह पहले रामजन्मभूमि थी और बाद में मस्जिद में तब्दील कर दी गयी तो एक सच्चे हिन्दू का कर्त्ताब्य हो जाता है की वह बाबर की गलतियों को न दुहराए,वरना एक आतताई बादशाह और एक सच्चे हिन्दू में फर्क क्या रह जाएगा?अगर मंदिर का निर्माण सर्वसम्मति से हो जाता है तो ठीक,नहीं तो मंदिर निर्माण के बहाने हजारों बेगुनाहों का खून कम से कम हिन्दू धर्म के शिक्षा का अंग तो कदापि नहीं हो सकता.

    • mene ek comment me hindu ki paribhash likhi hai padhange to “shayad” samajh me aye ki hindu kon hai.apaki janakari ke liye bata du pahali shila jisane rakhi thi vo apaki najaro me “dalait” hi tha our hamari najaro me hindu.
      our ha ham babar ki nakal nahi kar rahe hai balki babar ke nam ko mita rahe hai,jab kisi dusare desh me jakar koe cij tode tab esa kahana,apane gar me gush kar jabardasti kabjja kiye huve kisi lutere ko hatana dharm hai,jo eska palan nahi karata our thothe dharm ki duhayi deta hai use dharm ka “dh” bhi nahi pata,kabjja musalmano ne kiya hai hinduo ne nahi unako hi sari bhumi chhodani hogi chahe vo mathura ho,kashi ho ya dhar,apame samrthy nahi hai sangrsh karane ka to avshayk nahi hai sath aye par es prakar hinduo ko bragalane ki jarurat nahi hai.
      mahabhart ke yudh ke samay jab dharm sthapana ka samay aya to “balram ji” tirth yatra karane chale gaye the,vapas akar jab dekha ki pandavo ne dusht koravo ka shree krishn ke margdrshan me nash kar diya to pandavo par bigadane lage,ki tum logo ne dharm ka palan nahi kiya,ye vo………………|apaki najar me balram ji ka vo kadam sahi tha to hame age kuch nahi kahana lekin galat tha to vinati hai ki balaram ji na bane,krishn bae,age apaki marji……………..

  10. इस तरह के आलेख लिखने से कुछ नहीं होगा .जिसको जहाँ जो करना हो सो कर सकता है .ढपोरशंख बजाकर सांडो को भड़काकर आप जैसे विद्वान् तो अंतर्ध्यान हो जायेंगे किन्तु देश के लाखों बेगुनाह हिदू और मुसलमान आपस में एक दुसरे का खून बहायेंगे .थोडा सबरकरो ..भगवान श्रीराम तो तीनो लोकों के सजक -पालक और संहारक हैं .उन्हें किसी की हथेली की जरुरत नहीं ..यदि उनके प्रति जरा भी श्रद्धा है तो हिन्दू समाज में व्याप्त घोर -आर्थिक ;सामजिक असमानता -दूर करने के संघर्ष में शामिल हों .

    • apako ye bat sabase pahale ram ji ko hi kahani chahiye ki nahak ki rakshaso ko mara,krishan our ydhistar ko kosana chahiye,gandhi,bhagat sinh,subhash candra bosh,ramprasad bismill jaiso ko gali deni chahiye ki vyrth ka khun kharaba kar angrejo ko bhagaya,shivaji,pratap ko sunana chahiye,apani sena ko dosh deni chahiye jisane goa ko adhikar me liya kashmir me baithi hai abhi bhi asam,manipur,nagaland,mijoram e hai,gusapetiyo ko mar dalati hai,nsg ko bolana chahiye ki vyrth me taj hotal v mumabi par attack karane valo ko mara,are vo to hamare mehaman the,unhe taj hotal me jagah di jani chahiye thi.our manlo apako pasand nahi ate vo log to unhe marane ke sthan par “sarvshaktiman ram ji “se prathana karani chahiye thi ki vo bharat ki “garibi,ashiksha,asamanata,bekari” jaisi burayio ko dur kare,our ham baith kar kabhi bhagavan ko our kabhi guse huve “mehamano” ko kosate rahe ya kabhi satta ke lalac me “voto ” fasale katane ke liye ye sidh karate rahe ki “taj hotal our mumbai” to kabjja karane vale “mehamano” ne hi banaya tha………………………….jay ho dev jay ho…………….”ahinsa paramo dharm”………..

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