भोपाल, 27 फरवरी (हि.स.)। हिन्दू कहने से किसी समाज विशेष का ही चरित्र नहीं मिलता बल्कि भारत की पहचान ही हिन्दुस्थान के नाम से विश्व में सर्वत्र है। हिन्दू एक संस्कृति है, जिसमें मत-पंथ की भिन्नता के बावजूद सभी समाहित हैं। सिंधू सभ्यता से जुडा हुआ यह शब्द सम्बोधन के स्तर पर प्रत्येक भारतीय के लिए बोला जाता है।
यह बात अनौपचारिक चर्चा में सम्पादकों से बातचीत के दौरान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन राव भागवत ने कही। उन्होंने कहा कि हिन्दू होने के तीन आधार संघ मानता है। अपनी मातृभूमि के प्रति समर्पण, भारत की महान्-संत परम्परा और पूर्वजों के प्रति श्रृध्दाा का भाव तथा यहाँ की संस्कृति से जोडकर स्वयं को देखने की ह्ष्टि का होना। एक मातृभूमि के स्तर पर भारत के प्रत्येक नागरिक में प्राय: यह तीनों ही भाव गूढतम आर्थों में समाहित हैं। इसलिए संघ मानता है कि भारत में रहने वाले सभी हिन्दू हैं और उनकी जो परस्पर गुँथी हुई सांस्कृतिक धारा है वह हिन्दुस्थान की संस्कृति है।
वर्तमान राजनीति परिह्श्य पर उन्होंने कहा कि राजनीति में आ रहे युवाओं से आशा की जा सकती है कि वह महान् और शक्तिशाली भारत का निर्माण करेंगे उनके अनुसार आज जो राजनीति में युवा आ रहे हैं उनमें अपने देश के भिन्न हालातों से उत्पन्न कमियों को देकर क्षोभ है। वह इन्हें दूर कर सशक्त और सृह्ढ भारत का स्वप्न देखते हैं। राजनीति में आ रही युवा पीढी यह मानकर चल रही हैकि भारत के र्स्वागीण विकास के मापदण्डों के बीच राजनीति को नकारा नहीं जा सकता, बल्कि इसके बलबूते वह देश को सशक्त राष्टन् बना सकते हैं।
श्री भागवत ने हिन्दू समाज का संगठित स्वरूप क्यों ? इस पर श्री विस्तार से अपनी बात कही। उनका कहना था कि सशक्त हिन्दू समाज ही शक्तिशाली भारत का निर्माण कर सकता है क्योंकि सम्पूर्ण विश्व में भारत की पहचान हिन्दू समाज के कारण है। उनके अनुसार हिन्दूसमाज के उत्थान से ही विश्व शांति और सौहार्द की ओर बढेगा वहीं जिस वैश्विक कल्याण की भावना से ओतप्रोत इस हिन्दू समाज रचना के पीछे का ताना बना है वह भी साकार होगा। इसके अलावा सरसंघचालक श्री भागवत ने यह भी बताया कि समाज जीवन से जुडा आज कोई क्षेत्र शेष नहीं है जहाँ संघ के स्वयंसेवक सेवा कार्यों में रत न हों अर्थात समाज सेवा से जुडे प्रत्येक क्षेत्र में आज संघ के स्वयंसेवक तन समर्पित, मन समर्पित और यह जीवन समर्पित की भावना और प्रेरणा से प्रेरित होकर दिन रात कार्य में लगे हुए हैं।
बिलकुल सही कहा है श्री भागवत ने… हिंदुत्व ही भारत राष्ट्र की संस्कृति है.. और विदेशों में हिंदुत्व के कारन ही भारत की संस्कृति की पहचान होती ही. यह जीवन शैली विदेशियों को आकर्षित करती है और इसी से परिचित होने को वो हिंदुस्तान आते हैं… भारत दर्शन का मतलब हिंदुत्व दर्शन है. बाकि तो मुगलों द्वारा मचाई लूट की कहानी के अवशेष हैं…