महत्वपूर्ण लेख साक्षात्‍कार

हिंदुत्‍व ही देश की राष्‍ट्रीय अस्मिता है : रूसी करंजिया

भारत के पत्रकारिता जगत में रूसी करंजिया के नाम से कौन अपरिचित है। स्‍व. करंजिया अत्‍यंत लोकप्रिय साप्‍ताहिक ‘ब्लिट्ज’ के वर्षों तक सम्‍पादक रहे। अंग्रेजी तथा हिंदी सहित कुछ अन्‍य भाषाओं में प्रकाशित होने वाला यह साप्‍ताहिक कभी दूर-दराज के कस्‍बों व गांवों तक पहुंचता था। सनसनीखेज समाचारों की खोज व प्रकाशन इसकी विशेषता थी। ब्लिट्ज वामपंथी विचारों का था तथा रूसी करंजिया भी धुर वामपंथी थे। जीवन के आखिरी पड़ाव पर उनके विचारों में आमूल-चूल परिवर्तन आया तथा वे हिंदुत्‍व के समर्थक बन गए। उनका निम्‍नांकित साक्षात्‍कार ‘पाथेय-कण’ के फरवरी(द्वितीय) 1993 के अंक में प्रकाशित हुआ था। उस समय वे राज्‍यसभा के सदस्‍य भी थे। 

एक भारतीय के नाते आप राष्‍ट्रीयता का क्‍या अर्थ समझते हैं ? 

राष्‍ट्रीयता का अर्थ है राष्‍ट्र के साथ, उसके हित में सिद्ध रहना। साथ ही राष्‍ट्र की अस्मिता से जुड़ना भी अनिवार्य है।

मैं अभी तक हिंदुत्‍व का प्रबल समर्थक रहा हूं और इसके विभिन्‍न आयामों को भी मैंने समझा है। लेकिन 6 दिस्‍म्‍बर को अयोध्‍या में ढांचा गिराने का मुझे दु:ख हुआ। मैं मुसलमान नेताओं को इस बात के लिए राजी कर रहा था कि वे स्‍वयं यह ढांचा हिंदुओं को दे दें। कुछ दिन और प्रतीक्षा करते तो ढांचा ढहाने की जरूरत न होती।

वर्तमान संकट से पार पाने के लिए आपका सुझाव क्‍या है ? 

श्री लालकृष्‍ण आडवाणी ने जेल से इंडियन एक्‍सप्रेस में जो दो लेख लिखे हैं, यदि शब्‍द और उसकी भावनाओं में वे उस पर खरे उतरे तो लोग बहुत जल्‍दी 6 दिसम्‍बर के सदमे को भुला देंगे और भाजपा के लिए बहुत शानदार भविष्‍य होगा। वह दिल्‍ली में सरकार बनाएंगे।

आप किस आधार पर कहते हैं कि भाजपा सत्ता में आएगी ? 

कई कारण हैं – वर्तमान सरकार की विभेदक नीतियां खासकर वर्तमान प्रधानमंत्री की। मुझे सब पता चल गया है।

अर्थात् उनकी दोहरी बातें… 

हां, कहेंगे कुछ मतलब होगा कुछ और। दोहरी बातें, दोहरे मापदण्‍ड, दोगलापन, पार्टी में मतभेद। अर्जुन सिंह एक ध्रुव पर हैं तो राव दूसरे ध्रुव पर। इतने झगड़े हैं कि हर आदमी समझने लगा है कि इस साल किसी समय चुनाव हो जाएंगे।

आपने अभी राष्‍ट्रीय अस्मिता की बात की। यह राष्‍ट्रीय अस्मिता क्‍या है ? 

मेरे विचार से हिंदुत्‍व ही हमारी राष्‍ट्रीय अस्मिता है। जैसे-जैसे मैं वेदों का गहन अध्‍ययन कर रहा हूं, मुझे प्रतीत हो रहा है कि उनमें सम्‍पूर्ण विश्‍व का ज्ञान निहित है। मैं उसके विभिन्‍न आयाम समझता जा रहा हूं। योग करते समय मुझे ‘अहं ब्रहास्मि’ की अनुभूति होती है।

आप पारसी हैं। फिर हिंदुत्‍व को राष्‍ट्रीयता मानने तथा वेदशास्‍त्रों का अध्‍ययन करने की प्रेरणा कहां से मिली ? 

उम्र बढ़ने के साथ मुझे सत्‍य का बोध होता गया। मैं 80 वर्ष की उम्र पार कर चुका हूं। इस उम्र में भारतीय संन्‍यास लेते थे, ताकि जीवन के सत्‍य का बोध कर सकें, अध्‍ययन कर सकें। मैंने वनवास तो नहीं लिया, पर अध्‍ययन किया। रोज साधना करता हूं। गत वर्ष मुझे स्‍पाइनल मैंनिजाईटिस का रोग हुआ था। ईश्‍वर की ही कृपा थी कि मैं ठीक हो गया।

इसके अलावा मैं नानाजी देशमुख के मानवीय सामाजिक कार्यों से बहुत प्रभावित हुआ। जिस व्‍यक्ति के कार्य में इतनी करुणा और अच्‍छाई हो, वह जिस संगठन से जुड़ा है, उसमें कितनी अच्‍छाई होगी। यही गांधी की भावना है। नानाजी के माध्‍यम से ही मैं राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ की ओर आकृष्‍ट हुआ। फिर मैं राजमाता विजयाराजे सिंधिया से बहुत प्रभावित हुआ। हमने उनके बारे में कुछ प्रकाशित किया था, जिससे नाराज होकर उन्‍होंने मुझ पर मुकद्दमा भी किया। जब नानाजी देशमुख के एक बाल विकास प्रकल्‍प का उद्घाटन करने मैं गया तो कार्यक्रम के मंच पर राजमाता भी थीं। मुझे देखते ही वह उइ गयीं और मेरा अभिवादन किया। ऐसी विनम्रता और शिष्‍टाचार मेरे लिए अकल्‍पनीय था। जिस संगठन में ऐसे शालीन और भद्र लोग हैं, उसका प्रशंसक बनना स्‍वाभाविक ही है।

ऐसे कई उदाहरण हैं। एक और बताता हूं। ’77 से पहले हमने अटल बिहारी वाजपेयी पर कड़े प्रहार किए थे और एक गलत सूचना के आधार पर उन्‍हें ब्रिटिश एजेंट तक लिखा था। जब वह विदेशमंत्री बने तो मैं उस गलती के लिए क्षमा मांगने गया – पर वह इतने शालीन थे कि मुझे क्षमा मांगने ही नहीं दी। इतना ही नहीं, मैं पं. नेहरू के द्वारा गैर सरकारी राजदूत के नाते अलंकृत किया गया था। श्री वाजपेयी ने बेहिचक वह व्‍यवस्‍था जारी रखी और मुझे चीन की यात्रा पर भी भेजा। उनकी वजह से मैं मोरारजी देसाई के भी नजदीक आया।

जिस व्‍यक्ति को मैंने इतना बदनाम किया, जिस पर इतने तीखे प्रहार किए, उसकी यह शालीनता देखकर मुझे बहुत अच्‍छा लगा। मेरा मन परिवर्तित हो गया। तब तक मैं देश में भाजपा-संघ का सबसे कटु आलोचक था। पर मुझे लगा कि इन संगठनों के लोग सबसे ज्‍यादा उदार, शालीन और प्रगतिशील हैं।

लेकिन ऐसे शालीन और भद्र लोगों को उभारने वाले संगठनों पर पिछले चार दशकों से सेकुलरों की ओर से इतने प्रहार क्‍यों होते रहे हैं ? 

क्‍योंकि वे विदेशी विचारों से प्रभावित हैं। मैंने संसद में अपने पहले भाषण में ही इस पर प्रहार किया था और कहा था कि यह सब विदेशों की नकल है, जिसे समाप्‍त कर एक नई व्‍यवस्‍था लागू की जानी चाहिए। हमारा संविधान पूरी तरह से अंग्रेजों द्वारा बनाए गए भारत सरकार अधिनियम-1935 की भौंडी नकल है। इसे राष्‍ट्रीय अस्मिता को अभिव्‍य‍क्‍त करने वाला होना चाहिए। मुझे आशा है कि हिंदुत्‍व हमें वहां तक ले जाएगा।

यदि हम वास्‍तविक राष्‍ट्रवाद के आधार पर काम करें तो हिंदुत्‍व देश का भविष्‍य बदल देगा। पर यही समय है जब इस्‍लामी कट्टरवाद की चुनौती को भी समझन होगा। इस्‍लाम इस देश को कुचलने की तैयारी में है। उनके पास इस्‍लामी एटमबम है। सऊदी अरब से लेकर लीबिया तक के पास यह बम है। स्‍वयं भुट्टो भारत से हजार साल तक लड़ने की बात करता था तो वह मजाक नहीं करता था। उसके शब्‍दों में गम्‍भीरता थी।

आज की भू-राजनीतिक स्थिति को ध्‍यान से देखें। दक्षिण चीन से लेकर भूतपूर्व दक्षिणी सोवियत रूप से अलग हुए मुस्लिम देश, भूमध्‍य सागर के दोनों ओर लीबिया, मोरक्‍को ट्यूनीशिया तक एक समूचा इस्‍लामी खण्‍ड है। यूरोपीय देश भी इनसे सशंकित है। ये इस्‍लामी देश इस्‍लामी बम, इस्‍लामी प्रक्षेपास्र इकट्ठे करने में जुटे हैं और हम इस खतरे के प्रति सजग नहीं है। यही वजह है कि मैंने अपनी सीमाएं लांघकर जोशी की एकता यात्रा का समर्थन किया। मुझे लगा कि आखिर कोई तो निकला जिसने देखा कि कश्‍मीर हाथ से निकल रहा है। मुझे पता था कि जोशी नहीं जीतेंगे। पर वह हारकर भी जीत गए क्‍योंकि उन्‍होंने इस समस्‍या की आरे देश का ध्‍यान आकर्षित करने में सफलता पाई।