अनिल अनूप
पंजाब में करतारपुर साहिब कॉरिडोर का शिलान्यास उप राष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने कर एक ऐतिहासिक मार्ग का सूत्रपात किया है। सिखों के प्रथम गुरु बाबा नानक देव के 550वें प्रकाश-पर्व पर यह आस्थामयी शुरुआत हो रही है। दूरबीन से निहारने और मत्था टेकने वाले करीब 12 करोड़ नानकभक्त अब गलियारे के जरिए पाकिस्तान जाकर करतारपुर साहिब गुरुद्वारे में दर्शन-लाभ प्राप्त कर सकेंगे। बेशक इस प्रयास के लिए दोनों ओर की सरकारों को साधुवाद दिया जा सकता है।गुरुनानक देव के दौर में भारत-पाक दो देश नहीं थे। एक ही मुल्क, एक ही जमीन, एक ही मिट्टी और एक ही इलाका था। बाबा नानक सिख, हिंदू, मुसलमान सभी के अध्यात्म-पुरुष थे, लेकिन करतारपुर गलियारे की कोशिश आज की ही नहीं है। पूर्व प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी ने भी लाहौर बस यात्रा के दौरान पाकिस्तान के तत्कालीन वजीर-ए-आजम नवाज शरीफ से इस मुद्दे पर विमर्श किया था।
संयुक्त राष्ट्र के मंच से भी भारतीय प्रतिनिधि इस गलियारे की आस्था का जिक्र करते रहे हैं। 2010 में पंजाब की तत्कालीन अकाली-भाजपा सरकार ने भी विधानसभा में प्रस्ताव पारित किया था, लेकिन तब केंद्र में कांग्रेस नेतृत्व की यूपीए सरकार थी। अलबत्ता इस पवित्र गलियारे का सूत्रपात पहले ही हो चुका था, अब प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। अब भारत-पाक की कैबिनेट ने अंततः यह कॉरिडोर बनाने का फैसला लिया है, तो यह उनका उदारवादी बड़प्पन है। जब पंजाब में शिलान्यास किया जा रहा था, तब मुंबई में 26/11 आतंकी हमले की 10वीं बरसी याद कर-कर के मन सिहर रहा था। उस भयावह और कातिलाना हमले को कैसे भूल सकते हैं, जिसमें 166 मासूम लोगों को लाशें बना दिया गया था और हमारे 17 जवान भी ‘शहीद’ हुए थे। उस हमले का ‘मास्टरमाइंड’ पाकिस्तान और वहां सक्रिय सरगना आतंकी हाफिज सईद था। यूपीए सरकार ने भी डोजियर्स के जरिए ये तथ्य स्थापित किए थे और अमरीका ने भी उसकी पुष्टि की थी। आतंकवाद पर पाकिस्तान के यथार्थ को देखते हुए ही अमरीका ने उसकी 1.3 अरब डालर की सैन्य मदद रोकी थी।
करतारपुर साहिब गलियारा और आतंकी हमला अपने-अपने संदर्भों में ऐतिहासिक हैं। तो फिर पाकिस्तान के नए प्रधानमंत्री इमरान खान ही ‘फरिश्ता’ कैसे हो सकते हैं कि उनके कार्यकाल में गुरु नानक देव के करतारपुर गुरुद्वारे तक जाने के गलियारे का शिलान्यास हुआ? इस संदर्भ में पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह का पाकिस्तान का न्योता कबूल न करने संबंधी बयान राष्ट्रहित में है और भारतीयता की प्रतिबद्धता लिए हुए है। पाकिस्तान में गलियारे का शिलान्यास 28 नवंबर को वजीर-ए-आजम इमरान खान करेंगे। पाकिस्तान की तरफ से आतंकियों की सप्लाई जारी है। ऐसा शायद ही कोई दिन होता है, जब कश्मीर में संघर्ष विराम का उल्लंघन न हो, खूनखराबा न हो और हमारे जवान ‘शहीद’ न हों! क्या ऐसे देश के प्रधानमंत्री को ‘फरिश्ता’ माना जा सकता है?
आतंकवाद के मद्देनजर ही हमें पाकिस्तान पर सर्जिकल स्ट्राइक करनी पड़ी। क्या उसके प्रधानमंत्री को ‘फरिश्ता’ करार देते हुए सेना प्रमुख जनरल बाजवा का आभार जताया जा सकता है? जिस देश की कुख्यात खुफिया एजेंसी आईएसआई ने एक बार फिर पंजाब को अस्थिर करने के मद्देनजर निरंकारी भवन पर ग्रेनेड फिंकवाया हो और मार्च से लेकर अभी तक आतंकियों के 19 मॉड्यूल पकड़े गए हों, उस देश में एक आध्यात्मिक गलियारा बनने से ही हम अमन-चैन, कारोबार, राजनयिक दोस्ती की उम्मीदें करने लगें, यह छिछोरापन और अपरिपक्वता ही होगी। नवजोत सिंह सिद्धू किसी कामेडियन शो में विराजमान नहीं हैं, बल्कि पंजाब सरकार में मंत्री पद का संवैधानिक दायित्व निभा रहे हैं, लिहाजा उन्हें सोचना चाहिए कि आस्था और आतंकवाद साथ-साथ कैसे स्वीकार्य हो सकते हैं? सिद्धू को अब ‘क्रिकेट की दोस्ती’ नेपथ्य में रखनी चाहिए। वह पहले भारतीय हैं और बाद में किसी और के…! लिहाजा इमरान खान को महिमामंडित करने की उथली आदतें छोड़ दें। एक स्थापित फरिश्ते के संदर्भ में कोई दूसरा फरिश्ता नहीं हो सकता। यदि करतारपुर साहिब गलियारे को लेकर इमरान और पाकिस्तान वाकई गंभीर हैं, तो आज ही संकल्प ले लें और उसे लागू करें कि पाकिस्तान की सरजमीं का इस्तेमाल अब आतंकी गतिविधियों के लिए नहीं होगा।