कविता साहित्‍य

नवगीत-हिटलर दिनमान

क्या गर्मी पड़ती
जेठ में
वैशाख में!

लू हैं
लपटें हैं
मचा हाहाकार है!
इन दिनों
धूप की
सख्ती बरकार है!

चिन्गारी है दबी
बुझी हुई
राख में!

गीष्म ॠतु
में दिनमान
हिटलर हो जाता!
तानाशाह के आगे
कुछ न
चल पाता!

पूंजीपति लोकतंत्र
दाब लिए
काँख में!

अविनाश ब्यौहार
रायल एस्टेट
कटंगी रोड, जबलपुर।

पी.ए., महाधिवक्ता कार्यालय,
हाईकोर्ट, जबलपुर
विभिन्न राष्ट्रीय पत्रिकाएं एवं दैनिक
समाचार पत्रों एवं वेब पत्रिकाओं
में रचनाऐं प्रकाशित।