शादाब जफर’’शादाब’’
भारतीय सुप्रीम कोर्ट ने जो समलैंगिक संबंधों के संदर्भ में अहम फैसला सुनाया है। इस फैसले के अनुसार इस प्रकार के संबंधों को अपराध की श्रेणी में रखा गया है। यदि कोई इस तरह के आरोप में लिप्त पाया जाता है तो उसे उम्र कैद तक की सजा हो सकती है। गौरतलब है कि 2009 में दिल्ली हाईकोर्ट ने फैसला दिया था कि दो वयस्कों के बीच आपसी रजामंदी से बना समलैंगिक संबध अपराध नहीं है। वहीं 377 को वैध बताते हुए बुधवार 11 दिसंबर 2013 को सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया है। इस फैसले से देश में रह रहे समलैंगिकों को जोर का झटका लगा है। साथ ही यह झटका उन लोगों को भी लगा है जो इस तरह के संबंध बनाने वालों के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं। वैसे आपको बता दें कि विदेशों में कई जगह इस तरह के संबंध बनाने वालों के लिए पूरी छूट है और शादी करने की भी कानूनी मान्यता प्राप्त है।
समलैगिंकता जिस तेजी से हमारे साफ सुथरे समाज में दाखिल और हावी हुई है यह विचारणीय और गम्भीर मुद्दा बन गया है । वहीं जब से हमारे देश में ब्लू फिल्मों, टीवी सीरियलो, प्राईवेट डिश चैनलों, केबल टीवी, इंटरनेट, मोबाईल के रूप में पश्चिमी सभ्यता हमारे घरों में आई है हम लोग आराम से सेक्स और समलैंगिक लोगों पर चर्चा कर लेते है। आज हमारे देश में करोड़ों अरबो रूपये का नीला कारोबार हो रहा है। नई नई फिल्मों के माध्यम से देश के मर्द, औरतें, नौजवान और बच्चे इस नीले नशे के आदी होकर अपना जीवन बर्बाद कर रहे है। पिछले दिनों एक राष्ट्रीय समाचार पत्र ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी जिसमे बताया गया था कि हमारे देश में उत्तर प्रदेश हिन्दुस्तान की सबसे बड़ी जिस्मफ़रोशी की मन्डी हैं जिसकी औसतन कमाई हज़ार करोड़ सलाना होती है। वहीं मोबाईल और सीडी के ज़रिये ब्लू फिल्मों और नंगी तस्वीरों के ज़रिये 2300 करोड़ का कारोबार भी होता है। अखबार की इन ख़बरों पर अगर गौर किया जाये तो ये पता चलता हैं कि ये करोबार किसी दूसरे मुल्क में नही बल्कि हमारे मुल्क में ही हुआ हैं और हो रहा है। इस नीले और गंदे कारोबार में हमारे समाज के ही लोग जुड़े हुए हैं जिन्होने इस कारोबार को किया और समाज मे गन्दगी फ़ैलायी। सबसे खास चौकाने वाली बात ये की इन ब्लू फिल्मों और नंगी तस्वीरों को देखने वाले सिर्फ़ शादी-शुदा, बालिग मर्द और औरतें ही नही बल्कि गैर शादी-शुदा, नाबालिग और औरतें इसे रूची से देखने वालों में शामिल हैं। पश्चिमी सभ्यता के लोग स्त्री के साथ स्त्री और पुरूष के साथ पुरूष के अंतरंग संबधो को इन ब्लू फिल्मों की सीडी में बडी ही सुन्दरता के साथ आकर्षक और उत्तेजक ढंग से पेश करते हैं। जिस से हमारे समाज पर बहुत बुरा असर पड रहा है।
यूँ तो समलैगिंक जोडे के लिये प्यार का अहसास भी अलग होता है और यौन संतुष्टि की परिभाषा भी अलग है। समलिंगी साथी के आकर्षण का सामीप्य ही उन्हें चरम सुख प्रदान करता है तभी तो चढ़ती उम्र में वह एक ऐसी हमराही की तलाश करते हैं जो तलाश उन्हें आम आदमी से कुछ अलग करती है। इंटरनेट पर फ्रेंडशिप साइटें न केवल इनकी तलाश को पूरा कर रही है बल्कि एक एक कर अब यह वर्ग क्लबों के रूप में भी संगठित हो रहा है। इन क्लबों में मनपसंद साथी तो मिलता ही है साथ साथ ऐसा सकून भी जो इनके लिए तमाम सुखों से ऊपर है। इनके लिए इनके संबध न तो अप्राकृतिक हैं और न ही सामाजिक मर्यादा के खिलाफ हैं। समलैंगिकता के विरोधी भले ही इसे मानसिक विकृति कहें लेकिन समलैंगिक संबधों पर उन्हें गर्व है। राजधानी के उच्च वर्ग व उच्च मध्यम वर्ग के अलावा स्कूल कालेजों में समलिंगी संस्कृति दिन प्रतिदिन फल फूल रही है। इंटरनेट पर सैंकड़ों ऐसी साइटें हैं जो इन्हें अपना मनपसंद साथी खोजने में मदद करती हैं, यही नहीं दक्षिणी दिल्ली व पश्चिमी दिल्ली में समलैंगिक वर्ग ने अपने समूह, संगठन व क्लब भी बना लिए है और किसी निश्चित स्थान पर नियमित रूप से एकत्रित होकर न केवल यह मौज मस्ती करते हैं बल्कि समलैंगिक रिश्तों पर खुल कर परिचर्चा भी करते हैं। जानकारी के अनुसार राजधानी में लगभग दो दर्जन ऐसे स्थान हैं जहां यह लोग नियमित रूप से मिलते हैं। पिछले दस वर्ष में राजधानी में समलिंगी संस्कृति ज्यादा विकसित हुई है। समलैंगिकों को लामबंद करने में इस दिशा में कार्य कर रहे स्वैच्छिक संगठन नाज फाउण्डेशन तथा वॉइस अगेन्सट 377 ने भी प्रमुख भूमिका निभाई है। एक अन्य संस्था हमराही भी पिछले लंबे समय से समलैगिंकों के लिए कार्य करती रही है। इंटरनेट की फ्रेन्डशिप साइटों, फेसबुक, ओरकुट, हाई 5, टैग्ड, व्यान आदि में जहां हज़ारों समलैंगिक साथी को आसानी से खोजा जा सकता है वहीं कुछ वेबसाइटें भी समलैंगिकों को उनका मनपसंद साथी खोजने में मदद करती हैं। कुछ साइटों में तो समलैगिंकों के लिए अलग चौटिंग रूम भी उपलब्ध है। कालेजों के होस्टलों में भी समलैंगिक वर्ग ने अपने छोटे छोटे समूह बना रखे हैं और इन समूहों में वह अक्सर राजधानी के कुछ पार्कों में मौज मस्ती के लिए जाते हैं। इंडिया गेट, इन्द्रप्रस्थ पार्क व बस अड्डे आदि समलैंगिक युगलों के मनपसंद स्थान है। इसके अलावा बार, पब, रेस्टोरेंट व डिस्कोथेक भी इनके मिलने के अड्डे हैं। समलैगिंकों को अपने संबधों पर न तो कभी कोई पछतावा होता है और न ही उन्हे ये कहने में शर्म आती है कि वो समलैगिंक है।
अगर इसे कुदरत की निगाह से देखा जाये तो समलैगिंक होना कोई गुनाह नही दरअसल ये कुछ लोगो में जन्मजात होता है और कुछ समलैगिंक शौक में बन जाते है। समलैगिंक भी इंसान ही होते है। समलैगिंकता अपराध है कि नही है ये मैं नही कह सकता पर मैं इस बात से पूरी तरह सहमत हूँ कि ये हमारे समाज में अप्राकृतिक और अनैतिक जरूर है। वहीं अपने गंदे शौक के कारण खुल्लम खुल्ला समाज में समलैगिंकता को समाजिक चोला पहनाना अनैतिक पूर्ण कार्य जरूर है। निश्चित रूप से 2009 में कोर्ट के फैसले के बाद से दोस्ती शर्मसार हो रही थी। क्योंकि कोर्ट के इस फैसले के बाद आपसी दोस्तों के मध्य समलैंगिक चर्चा आम हो गई थी। कोर्ट के फैसले के बाद जिस प्रकार से समलैगिंक शादियों का दौर चला उसने भी भारतीय सामाजिक परम्पराओं और समाज पर बहुत बुरा असर डाला। धारा 377 जब गुनाह था तब भी समलैगिंक सेक्स होता था आज सुप्रीम कोर्ट ने इसे अपराध घोषित कर दिया पर आज भी ये सम्भव है। इसे तब भी भारतीय समाज में समाजिक मान्यता देना बिल्कुल गलत था आज भी गलत है। दुनिया में सभी मजहबों में शादी का उद्देश्य सिर्फ सेक्स ही नही सन्तानोत्पत्ति भी है। बिना संतानोत्पत्ति के विवाह का उद्देष्श्य अपूर्ण है। आदमी का आदमी के साथ और औरत का औरत के साथ विवाह वो भी सिर्फ आप्रकृतिक सेक्स यह तो उचित नही जान पड़ता है। आज हमारे समाज में यकीनन समलैंगिकता एक जटिल प्रश्न है। कोर्ट के इस फैसले के बाद अब समाज में कुछ बदलाव जरूर आयेगा ऐसी उम्मीद जरूर जगी है। पर एक सवाल मेरे मन में बार बार उठ रहा है कि क्या समलैगिंक स्त्री पुरूष समाज में जिन लोगों को कुदरत ने हीन बनाकर एक बडी सजा दी है उन्हे दुनिया में भी उनके इस अपराध के लिये उम्र कैद की सजा दी जाये।