क्रूर एवं आक्रांता मुगल शासक हमारे आदर्श कैसे?

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-ललित गर्ग-
मुगल बादशाह औरंगजेब की क्रूरता, अत्याचार एवं यातनाएं एक बार फिर बॉलीवुड की फिल्म छावा के कारण सुर्खियों में है। इस बार मामला सिर्फ इतिहास के पन्नों तक सीमित नहीं है बल्कि राजनीति में भी गर्मा गया है। समाजवादी पार्टी के नेता अबू आजमी के बयान ने महाराष्ट्र की राजनीति में उबाल ला दिया है एवं देश के बहुसंख्य समाज की भावनाओं को आहत किया है। भारत में आज भी एक ऐसा वर्ग है जो इस्लामिक कट्टरता के साथ जुड़ने में गर्व एवं गौरव की अनुभूति करता है, भले ही इससे देश की एकता एवं अखण्डता क्षत-विक्षत होती हो। इस्लाम के नाम पर जिसने हजारों हिंदू मंदिरों को ध्वस्त किया, तलवार की नोक पर बड़ी संख्या में लोगों को जबरन मुसलमान बनाया, ऐसे क्रूर एवं सांप्रदायिक शासक औरंगजेब को नेकदिल और महान शासक बताना, आखिर किस तरह की सोच है? भारत के अतीत को जघन्य अपराधों, कट्टरतावादी सोच एवं यातनाओं से सींचने वाले मुगल शासकों के प्रति यह कैसा मोह एवं ममत्व है? हिन्दू धर्म एवं संस्कृति पर आक्रमण करने वाले हमारे आदर्श कैसे हो सकते हैं? भारत की सांस्कृतिक विरासत एवं समृद्धि को कुचलने वाले महान् शासक कैसे हो सकता है? इन प्रश्नों को लेकर देशभर में छिड़ी बहस हमें आत्मावलोकन एवं मंथन का अवसर दे रही है।
फिल्म ‘छावा’ कोरी फिल्म ही नहीं, हिन्दुओं को संगठित करने का अभियान है, जिसने औरंगजेब के क्रूर एवं बर्बर चरित्र को प्रस्तुत किया है, यह फिल्म मराठा साम्राज्य के दूसरे शासक और छत्रपति शिवाजी महाराज के बड़े बेटे संभाजी महाराज की जिंदगी पर आधारित है। फिल्म में संभाजी के साहस, बलिदान और औरंगजेब के अत्याचारों को दिखाया गया है। संभाजी को औरंगजेब ने छलपूर्वक 1689 में क्रूरता से मरवा दिया था, जिसे फिल्म में भावनात्मक ढंग से पेश करने की सफल एवं सार्थक कोशिश हुई है। इस फिल्म में समाजवादी पार्टी के नेता और महाराष्ट्र विधायक अबू आजमी ने इतिहास को गलत ढंग से पेश करने का आरोप लगाते हुए औरंगजेब की तारीफ करके विवाद को और हवा दे दी। आजमी ने कहा, औरंगजेब क्रूर शासक नहीं था। उसने कई मंदिर बनवाए और उसके शासन में भारत सोने की चिड़िया था। आजमी ने यह भी दावा किया कि औरंगजेब और संभाजी के बीच की लड़ाई धार्मिक नहीं, बल्कि सत्ता की थी। इस तरह मुगल आक्रांताओं की तारीफ करना सपा के डीएनए में है। हो सकता है आजमी का यह औरंगजेब प्रेम एवं मुस्लिम कट्टरतावादी सोच हो, लेकिन औरंगजेब ने संभाजी महाराज को 40 दिनों तक जो यातनाएं दीं, वह क्या थी? उनकी आंखें निकाली गईं, जीभ काटी गई, उनके शरीर को लहूलुहान करके उस पर नमक छिडका और फिर उनकी हत्या कर दी गई, इस तरह क्रूरता एवं बर्बरता बरतने वाले शासक को कैसे आदर्श कहा जाये? असंख्य महिलाओं एवं बच्चों पर अत्याचार करना, जबरन धर्म परिवर्तन कराना, हिन्दू मन्दिरों को तोड़ना, देश की समृद्धि का गलत उपयोग करना कैसे प्रेरणास्पद हो सकता है?
औरंगजेब पोत राज्यों, राजपूताना और मराठा शासकों के परिवारों का अपहरण कर लेता था और उन्हें बंधक बना लेता था। ताकि वह निर्विरोध शासन करते हुए सम्पूर्ण भारत पर आधिपत्य कर सके। उसने सभी गैर-मुस्लिम प्रजा और पोत राज्यों से धार्मिक असहिष्णुता कर “जज़िया” वसूला। औरंगजेब एक असहिष्णु, क्रूर एवं कट्टरपंथी था और उसकी कट्टरता के कारण करोड़ों लोगों को कष्ट सहना पड़ा। शांति और बहुसंस्कृतिवाद की भूमि भारत में ऐसे अत्याचारी को आदर्श नहीं बनाया जाना चाहिए। यह पहली बार नहीं है जब औरंगजेब जैसे मुगल शासकों के प्रति प्रेम का प्रदर्शन उमड़ा हो, जब दिल्ली की एक सड़क का नाम औरंगजेब रोड से बदलकर एपीजे अब्दुल कलाम के नाम पर रखा गया था, तब भी बहुत हाय-तौबा मचाई गयी थी। उस समय भी अनेक लोगों ने औरंगजेब को महान शासक बताया था। जबकि इतिहासकारों ने भी दर्ज किया है छल से छत्रपति संभाजी को पकड़ने के बाद औरंगजेब ने अत्याचार एवं अमानवीयता की सभी हद पार करते हुए जुल्म किए। औरंगजेब छत्रपति संभाजी को इस्लाम कबूल करने के लिए मजबूर कर रहा था लेकिन छत्रपति ने सब प्रकार के कष्ट सहे लेकिन इस्लाम कबूल नहीं किया। जब फिल्मकार ने इस सच को सिनेमा के माध्यम से सबके सामने रखा तो अबू आजमी ने सच को स्वीकारने की बजाय इतिहास को ही झुठलाने का प्रयास किया। उनके बयान की पक्ष-विपक्ष सबने आलोचना की है। कुल मिलाकर, औरंगजेब की तारीफ करने पर चौतरफा घिरे सपा विधायक अबू आजमी को विधानसभा से निलंबित कर दिया गया। उनके खिलाफ दो एफआईआर भी दर्ज की गई हैं जब मामला और बिगड़ गया तो अबू आजमी ने माफी मांगी। हालांकि, उनका कहना है कि उन्होंने जो कहा, वह इतिहासकारों के हवाले से कहा। लेकिन बड़ा प्रश्न है कि वे कौन से इतिहासकार हैं जिनका हवाला अबू आजमी दे रहे हैं।
उल्लेखनीय है कि अबू आजमी सरीखे कुछ चाटुकार एवं चारण लोग इतिहासकारों में भी हुए हैं, कांग्रेस के शासन में ऐसे इतिहासकारों से मुगल शासन को महिमामंडित करके लिखवाया गया एवं स्कूली पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाकर हिन्दुस्तान की रग-रग में उतारा गया है। औरंगजेब जैसे तानाशाही शासकों के क्रूर चेहरे को छिपाने के लिए झूठे-सच्चे कुछ किस्सों का सहारा लिया है। परंतु ये फर्जी इतिहासकार सच को छिपा नहीं सके। सिद्धांत, सच और व्यवस्था के आधारभूत मूल्यों को मटियामेट कर सामाजिक, राजनैतिक और धार्मिक स्तर पर कीमत वसूलने की ऐसी कोशिशों से बहुत नुकसान हो चुका है, अब इन मनसूंबों को कामयाब नहीं होने दिया जा सकता। सत्य को ढका जाता रहा है पर स्वीकारा नहीं गया। और जो सत्य के दीपक को पीछे रखते हैं वे मार्ग में अपनी ही छाया डालते हैं, भ्रम पालते हैं, झूठ एवं फरेब के सहारे गलत को सही ठहराने की कुचेष्ठा करते हैं।
शिवाजी की मृत्यु के बाद उनके बेटे संभाजी ने मराठा साम्राज्य को संभाला। उन्होंने स्वराज्य के संकल्प को ही आकार नहीं दिया बल्कि एक नवीन राज्य निर्मित किया एवं एक नवीन महत्तर महाराष्ट्र को पुनर्जीवित किया। मराठों में साहसिक वीरता, उत्कृष्ट सहनशीलता, घोर निराशा में आशा की भावना, आत्मविश्वास, उच्च आदर्शों के प्रति निष्ठा, श्रेष्ठ सैनिक नैतिक बल, आत्म बलिदान, राष्ट्रीय और देशप्रेम की उत्कृष्ट भावना जैसे गुण विकसित किए और इससे वे इतने शक्तिशाली हो गए कि आगामी 3 पीढ़ियों में वे उत्तरी भारत में विजेता के रूप में पहुंच गए। छत्रपति शिवाजी एवं उनके वंशज देश के अस्तित्व एवं अस्मिता को कुचलने की हर कोशिश को नाकाम करते रहे हैं।
औरंगजेब की क्रूरताएं सिर्फ दुश्मनों तक सीमित नहीं थी, बल्कि इसके शिकार उसके भाई और पिता भी हुए। इतिहासकार इरफान हबीब ने औरंगजेब की क्रूरता के अनेक किस्सों को उजागर करते हुए बताया कि मुगल सत्ता पाने की लालच में औरंगजेब ने अपने पिता शाहजहां को जेल भिजवाया। फिर दारा शिकोह को जंग में हराया। हालांकि जंग हारने के बाद दारा मैदान छोड़कर भाग गया था। लेकिन औरंगजेब ने दारा को गिरफ्तार करवाया और षडयंत्र रचकर उसकी गर्दन कलम करवा दी। औरंगजेब सिर्फ दारा शिकोह की हत्या से खुश नहीं हुआ। उसने हत्या की बाद क्रूरता की हदें भी पार की। एक भाई के साथ ऐसी क्रूरता भारतीय इतिहास में देखने को नहीं मिलती। उसने दारा का कटा हुआ सिर जेल में बंद पिता को भेजा।
मुगल शासक औरंगजेब को लेकर महाराष्ट्र से शुरू हुई बयानबाजी की आंच समूचे देश मे पहुुंच गयी है। हिन्दुओं में गहरा आक्रोश एवं रोष है। मांग उठ रही है कि मुगल सम्राट औरंगजेब को बर्बर शासक घोषित किया जाए और भारत में उसके नाम पर रखे गए सभी सड़कों और स्थानों के नाम बदलने के लिए गजट नोटिफिकेशन जारी किया जाए। जैसाकि संयुक्त राज्य अमेरिका की सरकार ने ओसामा बिन लादेन और फ्रांसीसी व रूसी क्रांति के अवशेषों के साथ किया था। किसी भी राष्ट्र एवं समाज का निर्माण इतिहास के सच और ईमानदारी से ही बनता है। और यह सब प्राप्त करने के लिए ईमानदारी के साथ सौदा नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि यह भी एक सच्चाई है कि राष्ट्र, सरकार एवं समाज ईमानदारी से चलते एवं बनते हैं, न कि झूठे इतिहास से। सच को झुठलाना, सच को ढ़कना एवं सच की अनभिज्ञता संसार में जितनी क्रूर है, उतनी क्रूर मृत्यु भी नहीं होती। नया भारत-विकसित भारत-समृद्ध भारत को निर्मित करते हुए हमें हमारे गौरवपूर्ण सांस्कृतिक इतिहास को जीवंतता देनी होगी एवं हमारी संस्कृति एवं इतिहास को कुचलने वाले आक्रमणकारी शक्तियों के विकृत एवं विरूप चेहरों को बेनकाब करना होगा।

भूल सुधार एवं खेद
‘क्रूर एवं आक्रांता मुगल शासक हमारे आदर्श कैसे?’ लेख में एक पंक्ति में ‘उल्लेखनीय है कि अबू आजमी सरीखे कुछ चाटुकार एवं चारण लोग इतिहासकारों में भी हुए हैं, यहां मेरा ध्येय चाटुकारिता से है, इसका किसी जाति विशेष से संबंध नहीं है। चारण समुदाय सम्मानित समाज है, जिसका संस्कृति एवं राष्ट्र-विकास में अमूल्य योगदान रहा है, जो सम्मानित समाज है, चारण जाति के व्यक्ति इतिहास में विद्वान, रणनीतिकार, शस्त्र एवं शास्त्र के विज्ञ रहे हैं। मेरे लेख में शब्द चयन की त्रुटि से इस समुदाय के लोगों की भावना आहत हुई हो तो मैं इस भूल के लिये क्षमाप्रार्थी हूं।

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