सवाल ज़ेहन में आता ही होगा,
गाहे-बगाहे सताता भी होगा,
कि जिस दिन सांसें थम जाएगी,
सारी हरक़त जम जाएगी,
फिर क्या होगा?
अरे! मेरे बिना क्या होगा?
तो सुनो-
तब लोग तुम्हारा ज़िक्र करेंगे,
दिल से सच्ची आह भरेंगे।
दस-पांच के आंसू आएंगे,
दो-चार तो ना खा पाएंगे।
धीरे से फिर शाम ढलेगी,
डिम लाइट में बात चलेगी।
पर कुछ शायद ना सो पाएं,
जो खुल के ना रो पाएं।
अगली सुबह कुछ अटकी होगी,
तस्वीर कहीं पर लटकी होगी।
चाय बनेगी, सभी पीयेंगे,
सब के सब तुम बिन भी जीयेंगे।
आज समय पर भोजन होगा,
यदा-कदा कुछ रोदन होगा।
ये भी अच्छी कोई रात नहीं,
पर कल जैसी तो बात नहीं।
लोग दिलासे देने आएंगे,
दस-पंद्रह मिनट रुक भी जाएंगे।
थोड़ी देर फिर मौन रहेगा,
‘कैसे हुआ?’ फिर एक कहेगा।
जो-जो भी अब यहां आएंगे,
यही बात सब दोहराएंगे।
जिनके लिए आंख तुम्हारी, रात रात भर रोई।
चल पड़ेगे वही ये कह कर ‘जो होई सो होई’।
महीने भर में याद तुम्हारी,
यदा-कदा ही अब आएगी।
जिंदगी जैसे चलती थी पहले,
वही रीत अब अपनाएगी।
ना धरा पर काम रूकेंगे,
ना बहारों पे सिकन आएगी।
वैसे ही सब उत्सव होंगे,
वैसे ही सब उमंग छाएंगी।
उधर तुम्हारी खाक हवा में,
कुछ मिट्टी में मिल जानी है।
ना तेरी कुछ शक्ल मिलेगी,
ना तेरी बूं ही आनी है।
छः महीने और उस मिट्टी में,
नया पौधा इक उग आएगा।
जो है आज तुम्हारा तन ये,
वो पत्ती कल बन जाएगा।
तो मस्त रहो, सुख से जीयो,
अमृतरस जीवन पीयो।
जब तक आंखें रोशन है,
तब तक का ये खेल है।
ज्यादा इस का मोल नहीं,
बस धूप-छांव का मेल है।
सच तो ये है, सब कुछ यहीं का, ना तेरा ना मेरा है।
ये जीवन इक बहती धारा, पल दो पल का डेरा है।।
डॉ राजपाल शर्मा ‘राज’