विविधा

कैसे हो इस राक्षसी विनाशलीला का अंत?

images (2)नरेश भारतीय

भारत में आतंकवाद का राक्षस अपनी विनाशलीला जारी रख रहा है. आए दिन उसका खूनी पंजा फैलता है और निरपराध इंसानों की जान ले लेता है. एक लोकतंत्रीय देश के करोड़ों नागरिकों को उन्हीं तत्वों के द्वारा एक बार फिर चुनौती दी जा रही है जो उन्हें शांति, परस्पर सौहार्द्र और विकास की राह पर आगे बढ़ते नहीं देखना चाहते. अभी तक मिले संकेतों के अनुसार आतंकवाद का यह प्रहार भी उसी दुष्चक्र का अंग है जिससे भारत गत कुछ दशकों से जूझ रहा है लेकिन अब इस पर गहरे मंथन की आवश्यकता है कि इसे कैसे थामा जाए.

हर बार भारत ऐसे हमले होते ही उससे लड़ने और दोषियों को दंड देने की घोषणा करता है. घटना की छानबीन शुरू होने से पहले राजनीतिक बयानबाज़ी तुरंत शुरू हो जाती है. संसद के अन्दर और बाहर सरकारी पक्ष और विपक्ष के बीच शाब्दिक ले दे होती है. समाचार माध्यम गरमाता है. छोटे परदे पर अनेक बहसें छिड़ती हैं. समस्या के भिन्न पहलुओं पर हर बार एक जैसी चर्चा होती है लेकिन क्या इस सबका कोई ठोस नतीजा निकलता है? कड़ुआ सच यह है कि सार्वजनिक बहसों के बावजूद काबू में नहीं आ रहा यह विध्वंस विनाश? इसलिए नहीं कि भारत इस आतंकवाद को रोकने में सक्षम नहीं है. पर इसलिए कि सक्षम होते हुए भी वह अमरीका और अन्य पश्चिमी देशों की तरह कठोर कदम उठाने का साहस नहीं दिखा पाया. आतंकवादी घटनाओं के घटने से पूर्व उन्हें रोकने के लिए प्रभावी कदम भी उठते प्रतीत क्यों नहीं होते? बाद में भी यही सब क्यों होता है कि घटनाएं घटने पर शोर मचता है, हलचल होती है, सूत्र भी खोज लिए जाते हैं लेकिन बाहरी और अंदरूनी दबाव बढ़ने लगते हैं और सरकार अपनी गति को धीमा कर देती है. आतंकवाद नहीं थमता. थमते हैं तो आतंकवाद से निर्णायक लड़ाई लड़ने के प्रयास.

हर बार जुटाए गए प्रमाण एक ही आतंक स्रोत की ओर अंगुली निर्देश करते हैं. वह है वैश्विक आतंकवाद का केन्द्र स्रोत बन चुका भारत का पड़ोसी देश पकिस्तान. वहां से ही मज़हबी कट्टरपंथ की लहर निर्बाध बह रही है. इसकी लपेट में वह स्वयं भी आता दिखाई देने लगा है. २१ फरवरी २०१३ के दिन हैदराबाद का दिलसुख नगर दो धमाकों की गूंज से कांप उठा तो घूमघुमा कर यही सब सामने आ रहा है. इसमें भी इंडियन मुजाहिद्दीन का हाथ होने की बात कही गयी. आतंकवादियों के द्वारा १६ निरपराध लोग मौत के मुंह में धकेल दिए गए. १०० से अधिक घायल हुए. धमाकों की घटनाओं के बाद हताहतों के परिवार परिजनों में हाहाकार मचा था. लेकिन निस्संदेह कहीं अपने सुरक्षित ठिकानों पर बैठे आतंकी राक्षस मानवता पर कहर ढाने वाली अपनी आतंकवादी योजनाओं की सफलता का जश्न मना रहे थे. क्या देखते हैं वे कि लोकतंत्र कैसे तड़पता है और उसमें कैसे उभरती है बहसें? जब तक बहसें चलतीं हैं ये दानवतावादी अपने अगले लक्ष्य की तैयारी में जुटने लगते हैं. पर्दे के पीछे क्या चलता है उस सब पर कितनी कड़ी नज़र है भारत की? आखिर कब तक चलता रहेगा ऐसा कि प्राय: सतर्कता की चेतावनियाँ इन दुर्भाग्यपूर्ण हत्याओं के बाद जारी होती हैं हत्याकांडों को रोकने के लिए पहले नहीं? कब और कौन कुछ ऐसा करेगा कि इस बेकाबू होते और सतत विस्तार पाते राक्षसी आतंकवाद से उस जनसामान्य को राहत मिले जिसके पास इनसे अपनी सुरक्षा के कोई साधन नहीं हैं. जनता की सुरक्षा का भार सरकार पर है और उसका सतत सावधान होना ज़रुरी है.

‘क्या इस दुर्भाग्यपूर्ण हमले के सम्बन्ध में भारत सरकार को उसके ख़ुफ़िया सूत्रों से कोई पूर्व जानकारी थी?’ यह पूछे जाने पर देश के गृहमंत्री श्री शिंदे ने बयान दिया कि ‘इन घटनाओं से दो दिन पहले उन्होंने देश के पांच नगरों में आतंकवादी हमले की सम्भावना के सम्बन्ध में सम्बंधित राज्य सरकारों को जानकारी भेज दी थी’. तदनुसार क्या आंध्रप्रदेश की राज्य सरकार ने घटना को रोकने के लिए तुरंत समुचित कदम उठाए? स्थानीय अधिकारियों के अनुसार उन्हें हैदराबाद में संभावित इन हमलों के सम्बन्ध में विशिष्ट चेतावनी नहीं दी गई थी. तो जीवन मरण से जुड़े ऐसे महत्वपूर्ण मामले में केन्द्र और राज्य सरकारों के बीच तालमेल में कहाँ कितनी कमी है इसका अंदाज़ इससे स्वत: हो जाता है. इस अभाव की की पूर्ति की दिशा में ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है.

इसमें भूल और कोताही की कोई गुंजायश नहीं है कि आज समूचे लोकतंत्रवादी विश्व का सामना अन्तराष्ट्रीय स्तर पर एक ऐसे कट्टरपंथी जिहादी आतंकवाद से है जिसके प्रणेता स्वयं इसे इस्लाम से जोड़ने का दावा करने से नहीं चूकते. इस पर भी भारत समेत विश्व के अनेक सतर्क देश यह दलील देकर कि ‘आतंकवाद को धर्म के साथ नहीं जोड़ा जा सकता’ इस कट्टरपंथी मज़हबी आतंकवाद की तेज धार को कुंद करने की चेष्ठा में हैं. विशेष रूप से इसलिए कि उनके अपने अपने संवेदनशील बहुसांस्कृतिक समाजों में कठिनाई से कायम समरसता को आंच न आए. लेकिन इस सच्चाई से पार नहीं पाया जा सकता कि अल कायदा और उसके साथ जुड़े और अभी भी सक्रिय कट्टरपंथी संगठनों की सोच इसके ठीक विपरीत दिशा में मुहिम चलाए हुए है. ये संगठन घोषित रूप से इस्लाम के नाम पर आतंकवाद का कहर फैलाने में जुटे हैं. उनका उद्देश्य है संस्कृतियों के बीच संघर्ष को बढ़ावा देते हुए एकमात्र अपना वर्चस्व सिद्ध करना. ओसामा बिन लादेन का यही सन्देश उसकी मृत्यु के बाद भी नवोदित आतंकवादियों का आकर्षण बनता है. वे इस तरह की सोच के पुष्ट होने के साथ वैश्विक आतंकवाद का प्रेरणा-प्रशिक्षण केन्द्र बन चुके पाकिस्तान जा कर प्रशिक्षण पाते हैं. आए दिन ब्रिटेन और अमरीका में जन्में पले युवाओं के द्वारा ऐसे आतंकवादी बनने और इन देशों में हमलों की योजनाएं बनाते पकड़े जाने के किस्से सामने आते हैं.

आज़ादी के बाद का इतिहास साक्षी है कि भारत पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद का सबसे निकटस्थ पहला निशाना रहा है. १९४७ में मज़हबी आधार पर हुए विभाजन के बाद से भारत इस भूल का दंड भुगत रहा है. पाकिस्तान एक मुस्लिम देश बना और उसने मज़हबी आधार पर कश्मीर को भी हथियाने के लिए अपने अस्तित्व की पहली सांस में ही भारत विरोध का बिगुल बजा दिया. उसकी तद्विषयक षड्यंत्र रचना बरकरार ही नहीं है बल्कि विस्तार पा चुकी है. सीमा पार से घुसपैठ और भारत के अन्दर अराजकता उत्पन्न करने के लिए राष्ट्रविरोधी गतिविधियों को उसके द्वारा हवा देना जारी है. किसी से छुपा नहीं है कि भारत में पाकिस्तानी ख़ुफ़िया एजेंसी आई. एस. आई. के एजेंटों का बड़ा जाल बिछा है. उनके द्वारा आर्थिक प्रलोभन दे कर ऐसे लोगों के साथ संपर्क साधा जाता है जो उनकी आतंकवादी योजनाओं का मुखास्त्र बन कर भारत को संत्रस्त करने के लिए नरसंहारक हिंसा में लिप्त होते हैं. आतंकवादी संगठन इंडियन मुजाहिद्दीन भी आई. एस. आई. की ही रचना है जिसके तार लश्कर-इ-ताएबा से जुड़े हैं. हैदराबाद में हुईं इन नवीन घटनाओं की षड्यंत्र रचना में इन्हीं का हाथ होने की आशंका व्यक्त की गई है.

इन धमाकों से पहले और तुरंत बाद जिस तरह की राजनीतिक हलचल दिखाई दी उसके कुछ पहलुओं पर ध्यान दिया जाना उपयुक्त होगा. हैदराबाद के स्थानीय विधायक के द्वारा हाल ही में दिए गए एक अत्यन्त भड़काऊ भाषण के बाद से हैदराबाद का वातावरण संवेदनशील बना है. ऐसे में बम विस्फोटों की इन घटनाओं का होना स्थिति को और मुश्किल बना सकता था. विस्फोटों के तुरंत बाद पुलिस के द्वारा जांच पड़ताल की आवश्यक कार्यवाही शुरू लिए जाने का महत्व होता है. उसके द्वारा की जाने वाली पूछताछ का यह अर्थ लेकर मीडिया में यह शोर मचाना कि अमुक समुदाय के लोगों को बेवजह परेशान किया जा रहा है वस्तुत: किसी के लिए भी हितकारी नहीं हो सकता. यदि पुलिस के द्वारा भूल होती है और समय रहते वह उसमें सुधार कर लेती है तो इसे पर्याप्त मान कर उसके साथ सहयोग को प्रोत्साहन देना ही हितकर है. यह भी महत्वपूर्ण है कि प्रधानमंत्री समेत जनप्रतिनिधि नेता जनता का मनोबल बढाने के लिए घटनास्थल पर पहुंचे, घायलों से मिले और संतप्त परिवारों को सांत्वना दी, शांति बनाए रखने का अनुरोध किया.

पुलिस और सम्बंधित सुरक्षा एजेंसियों के द्वारा जांच जारी है और अंतत: तथ्यों पर आधारित क्या निष्कर्ष प्रस्तुत किए जाते हैं इसकी प्रतीक्षा देश को है. लेकिन इससे भी अधिक उत्सुक प्रतीक्षा देशवासियों और विदेशवासी भारतीयों को यह है कि इस सर्व-विनाशक आतंकवाद के बढ़ते कदमों को किस तरह काटने का संकल्प भारत अब और कितनी मजबूती के साथ प्रदर्शित करता है. इस लड़ाई में सफलता तभी संभव है यदि सामान्य जनता स्वयं यह अहम भूमिका निभाए कि यदि किसी को अपने आस पड़ोस में किसी संदिग्ध गतिविधि की भनक मिले तो प्रशासन को सूचित करे. इसमें कोई शंका नहीं कि बिना अंदरूनी सहायता के बाहर से प्रायोजित आतंकवाद भारत में इतनी आसानी से कारगर नहीं हो सकता.

अपने इस भारत राष्ट्र, सह-राष्ट्रियों और राष्ट्रीय संपत्ति की रक्षा को ही एकमात्र धर्म मान कर, मज़हब की दलीलों और दहलीजों को लांघते हुए राष्ट्रहित सर्वोपरि के मूलमंत्र के साथ एकजुट हो कदम उठा कर ही आतंकवाद के इस मानवताविरोधी नरसंहारक राक्षस से लोहा लिया जा सकता है.