शिवराज सिंह की विनम्रता ने उप-चुनाव में जीत तय की

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मनोज कुमार

किसी भी किस्म के चुनाव में मुद्दों की बड़ी अहमियत होती है लेकिन मध्यप्रदेश के हालिया उप-चुनाव में मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान की विनम्रता ने परिणाम को बदल दिया। मध्यप्रदेश के राजनीतिक इतिहास में पहली बार 28 सीटों पर उप-चुनाव की नौबत आयी और यह मन बनाने की कोशिश की गई कि दल-बदलुओं को परास्त करना है। मोटे-मोटे तौर पर इस बात को मान भी लिया गया और परिणाम की उम्मीद भी इसी आधार पर आंका गया था लेकिन जब परिणाम आए तो सभी राजनीतिक दलों को चौंकाने वाले थे। भाजपा को सबसे बड़ी जीत मिली तो सत्ता में वापसी की आस बांधे कांग्रेस को महज 9 सीटों पर संतोष करना पड़ा। यह परिणाम मुद्दे को लेकर नहीं था बल्कि यह परिणाम शिवराजसिंह चौहान के व्यक्तित्व एवं उनकी विनम्रता का था। बीते 13 साल और अब लगभग 9 माह के शासन में प्रदेश की जनता शिवराजसिंह चौहान को ही अपना सबकुछ मान बैठी है। मतदाताओं को इस बात का रंज भी नहीं था कि किसने पाला बदला और किसकी सरकार गयी। वे शिवराज सरकार के भरोसे थे और शिवराजसिंह के भरोसे को कायम रखा। लगभग मिनी इलेक्शन के तर्ज पर यह बाय-इलेक्शन था। कोरोना महामारी के बीच दुस्साहस के साथ लड़े गए इस उप-चुनाव में विकास का मुद्दा नदारद था। सरकार भाजपा की है तो मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ताबड़तोड़ घोषणाएं करते रहे। खाली खजाने के बाद भी उनकी इन घोषणाओं पर मतदाताओं ने सवाल नहीं उठाया क्योंकि बीते 13 साल में शिवराजसिंह आम आदमी में रच-बस गए हैं।  9 महीने पहले सत्ता में शिवराजसिंह की वापसी होती है तो मध्यप्रदेश की जनता ने उनका गर्मजोशी से स्वागत किया था। शिवराजसिंह चौहान मुख्यमंत्री के रूप में आम आदमी के बीच कभी गए ही नहीं। कभी मामा बनकर तो कभी भाई बनकर, किसी का बेटा बन गए तो दोस्त के रूप में सहजता से मिलते रहे। इस चुनाव में भी उनका यही रूप था। एकदम आम आदमी का। चुनावी सभा को संबोधित करते हुए जब शिवराजसिंह चौहान घुटने के बल खड़े होकर मतदाताओं का अभिवादन कर रहे थे तो जनता हर्षित थी। उधर विपक्ष ने शिवराजसिंह चौहान की इस अदा पर प्रहार किया तो शिवराजसिंह ने विनम्रता के साथ कहा कि ‘ये जनता मेरी भगवान है और मैं बार-बार उनका इसी प्रकार अभिनंदन करूंगा।’ विपक्षी गफलत में रह गए। उन्हें समझ ही नहीं आया कि यही तो शिवराजसिंह की यूएसपी है और इसी के बूते वे रिकार्ड तोड़ टाइम से मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री बने हुए हैं। जनता का अभिवादन करने वाले शिवराजसिंह पर ताने मारने वाले आज खुद घुटने पर खड़े होने के लिए मजबूर हैं तो यह संभव हुआ शिवराजसिंह चौहान की विनम्रता से। उनकी सादगी से और निश्च्छल भाव से।  शिवराजसिंह चौहान राजनीति करते हैं लेकिन प्रदेश की जनता के साथ नहीं। यह बार-बार और कई बार साबित हो चुका है। किसानों को राहत देने की बात हो, आदिवासियों के हितों की रक्षा करने का मुद्दा हो, बेटी-बहनों को सुरक्षा देने का मामला हो या बुर्जुगजनों को सम्मान देेने का। हर बार उन्होंने अपने वायदे को निभाया है। कोरोना संकट के समय शासकीय कर्मचारियों के वेतन-भत्ते में आंशिक कटौती का सरकार ने ऐलान किया लेकिन शिवराजसिंह सरकार के प्रति ऐसा विश्वास कि लोगों ने इस कटौती को भी सरकार के साथ सहयोग के रूप में लिया और प्रचंड बहुमत से सरकार का साथ दिया। क्या कोई कल्पना कर सकता है कि शासकीय अधिकारी-कर्मचारियों को आंशिक ही सही, आर्थिक नुकसान होने के बाद भी सरकार के साथ खड़े रहे, यह विश्वास केवल शिवराजसिंह चौहान ने जीता है। इसका प्रमाण उप-चुनाव 2020 में पूरे देश ने देखा है। मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार कर्मचारी विरोधी होने के कारण भी एक बार जा चुकी है। यह महीन सा फर्क दिखता है शिवराजसिंह सरकार की लोकप्रियता में। शिवराजसिंह चौहान के कार्य-व्यवहार में चौथे बार मुख्यमंत्री होने का ताब नहीं है बल्कि विनम्र होने का ऐसा भाव है जिससे कोई भी आदमी उनकी ओर खींचा चला आता है। वे पल-पल आम आदमी की चिंता करते हैं। इस बात से किसी को शिकायत नहीं हो सकती है। यही कारण है कि त्योहार के पहले अग्रिम भुगतान के अपने वायदे को पूरा किया। किसानों की कर्जमाफी से राहत की हवा बह ही है।  कोरोना  के कारण उनकी महत्वपूर्ण कार्यक्रम ‘मुख्यमंत्री तीर्थदर्शन’ योजना स्थगित है जिसे वे जल्द ही शुरू करना चाहते हैं। यकिन किया जाना चाहिए कि एक बार फिर तीर्थ दर्शन के लिए गाड़ी दौड़ पडेगी। वक्त हमेशा परीक्षा लेता है और शिवराजसिंह चौहान भी इससे परे नहीं हैं। फर्क इतना है कि शिवराजसिंह चौहान हर परीक्षा के बाद और खरे होकर उतरे हैं। इस बार का उप-चुनाव भी उनकी परीक्षा थी जिसमें वे सौफीसदी खरे उतरे हैं। कोरोना संकट के समय स्वयं मैदान में उतर गए थे। खुद कोरोना पीडि़त होने के बाद भी प्रदेश के कामकाज में बाधा नहीं आने दी। लॉकडाउन में घर लौट रहे मजदूरों को ना केवल वापसी की सुविधा दी बल्कि उनके मन में यह भरोसा उत्पन्न करने में कामयाब रहे कि सरकार और मुख्यमंत्री शिवराजसिंह उनके साथ हैं। उनके रहने-खाने से लेकर रोजगार तक का प्रबंध शिवराजसिंह सरकार ने किया। उन्होंने ना केवल मध्यप्रदेश के श्रमजीवी परिवारोंं के लिए किया बल्कि आसपास के प्रदेशों के श्रमजीवी परिवार का साथ दिया। मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान की यह दरियादिली इस बात का गवाह है कि मध्यप्रदेश कहने के लिए नहीं बल्कि सचमुच में देश का ह्दयप्रदेश है.

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मनोज कुमार
सन् उन्नीस सौ पैंसठ के अक्टूबर माह की सात तारीख को छत्तीसगढ़ के रायपुर में जन्म। शिक्षा रायपुर में। वर्ष 1981 में पत्रकारिता का आरंभ देशबन्धु से जहां वर्ष 1994 तक बने रहे। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से प्रकाशित हिन्दी दैनिक समवेत शिखर मंे सहायक संपादक 1996 तक। इसके बाद स्वतंत्र पत्रकार के रूप में कार्य। वर्ष 2005-06 में मध्यप्रदेश शासन के वन्या प्रकाशन में बच्चों की मासिक पत्रिका समझ झरोखा में मानसेवी संपादक, यहीं देश के पहले जनजातीय समुदाय पर एकाग्र पाक्षिक आलेख सेवा वन्या संदर्भ का संयोजन। माखनलाल पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय, महात्मा गांधी अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी पत्रकारिता विवि वर्धा के साथ ही अनेक स्थानों पर लगातार अतिथि व्याख्यान। पत्रकारिता में साक्षात्कार विधा पर साक्षात्कार शीर्षक से पहली किताब मध्यप्रदेश हिन्दी ग्रंथ अकादमी द्वारा वर्ष 1995 में पहला संस्करण एवं 2006 में द्वितीय संस्करण। माखनलाल पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय से हिन्दी पत्रकारिता शोध परियोजना के अन्तर्गत फेलोशिप और बाद मे पुस्तकाकार में प्रकाशन। हॉल ही में मध्यप्रदेश सरकार द्वारा संचालित आठ सामुदायिक रेडियो के राज्य समन्यक पद से मुक्त.

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