कविता

मैं हूँ अराजक

रोज यही बस खबर दिख रही

टी .वी .और अखबारों में,

मेरे देश की बेटी लुटती

आश्रम और गलियारों में |

 

कुछ लोग मुझे कहते हैं अराजक

जब आवाज उठाता हूँ

उनकी भाषा में दिया जवाब

सत्ता का लोभी कहलाता हूँ|

 

पहले राजा अँधा था

अब गूंगा बहरा आया हैं,

हर बहन बेटी ने

खुद को लाचार पाया हैं |

 

क्या मै अब इंसाफ माँगू

चुने हुए सरदारो से,

उस पापी को क्या सजा मिलेगी

न्याय के दरबारों से ?

 

कोई बहन बेटी जब दिल्ली की

सड़को पर लूट जाती हैं,

उसके लिए न्याय मांगना

अराजकता कहलाती हैं |

 

मै शर्मिंदा हूँ खुद से

क्यों अब तक मै चुप बैठा था ?

मेरा मन कृन्दन करता हैं

क्या मेरा कर्तव्य नहीं बनता था ?

धृतराष्ट्र जैसा अँधा बनकर

मै नहीं जी सकता हूँ ,

अब कोई बन जाए द्रोपदी

मै नहीं सह सकता हूँ |

 

कुलदीप प्रजापति