रोज यही बस खबर दिख रही
टी .वी .और अखबारों में,
मेरे देश की बेटी लुटती
आश्रम और गलियारों में |
कुछ लोग मुझे कहते हैं अराजक
जब आवाज उठाता हूँ
उनकी भाषा में दिया जवाब
सत्ता का लोभी कहलाता हूँ|
पहले राजा अँधा था
अब गूंगा बहरा आया हैं,
हर बहन बेटी ने
खुद को लाचार पाया हैं |
क्या मै अब इंसाफ माँगू
चुने हुए सरदारो से,
उस पापी को क्या सजा मिलेगी
न्याय के दरबारों से ?
कोई बहन बेटी जब दिल्ली की
सड़को पर लूट जाती हैं,
उसके लिए न्याय मांगना
अराजकता कहलाती हैं |
मै शर्मिंदा हूँ खुद से
क्यों अब तक मै चुप बैठा था ?
मेरा मन कृन्दन करता हैं
क्या मेरा कर्तव्य नहीं बनता था ?
धृतराष्ट्र जैसा अँधा बनकर
मै नहीं जी सकता हूँ ,
अब कोई बन जाए द्रोपदी
मै नहीं सह सकता हूँ |
कुलदीप प्रजापति
हम लूटते बाजारों में ,
राजा मौज मनाता विदेशी दरबारों में.
हमें तार तार कर रखा है भ्रष्ट और बेईमानों ने ,
पर उन्ही की मौज है इस मयखाने में .
रोटी के बदले बड़ी बड़ी बाते हैं.
कोई नहींदेखता कि इनके कितने सूने दिन और कितनी लम्बी राते है.
अगर आवाज उठाओ तो अराजक कहलाते हो
जयदा जोर लगाए तो बलपूयर्बक कुचले जाते हो.
प्रचार तंत्र इनके हाथों में है,
आवाज तुंहारी दब कर रह जाती है,केवल आह और कराह बनकर.