कविता

हारी नहीं हूँ

1. हारी नहीं हूँ

थकी हूँ हारी नहीं हूँ,

थोड़ा सा विश्राम करलूं।

ज़रा सी सी दुखी हूँ फिर भी,

थोड़ा सा श्रंगार करलूं।

श्रंगार के पीछे अपने,

आंसुओं को छुपालूं।

ख़ुश नहीं हूँ फिर भी,

ख़ुशी का इज़हार करलूं।

शरीर तो दुख रहा है,

फिर भी दर्द को छुपालूँ।

भंवर मे फंसी है नैया,

तूफ़ान से उसे बचालूं।

छंद लिखना आता नहीं है,

मन मे उठते भाव लिखलूं।

 

 2. ख़्वाहिश

 कोई ख़्वाहिश,

अधूरी रह गई हो,

मै ये मै नही कहती,

 क्योंकि कोई ख़्वाहिश,

कभी की ही नहीं थी।

ख़वाहिशों का क्या है,

एक पूरी हो तो,

दूसरी दे देती है दस्तक,

जिस चीज़ के पीछे भागो,

दो दिन मे वो हो जाती है,

वो बेमतलब!

ख़त्म हो जाती है,

उसकी चाहत और ज़रूरत,

इसलियें ख़वाहिशों का

 अधूरा रहना ,

पूरा होना , ना होना ,

  कोई बड़ी बात नहीं

फिर भी आदमी ,

उनके पीछे भागता है,,

ज़िन्दगी का चैन खोकर!