1. हारी नहीं हूँ
थकी हूँ हारी नहीं हूँ,
थोड़ा सा विश्राम करलूं।
ज़रा सी सी दुखी हूँ फिर भी,
थोड़ा सा श्रंगार करलूं।
श्रंगार के पीछे अपने,
आंसुओं को छुपालूं।
ख़ुश नहीं हूँ फिर भी,
ख़ुशी का इज़हार करलूं।
शरीर तो दुख रहा है,
फिर भी दर्द को छुपालूँ।
भंवर मे फंसी है नैया,
तूफ़ान से उसे बचालूं।
छंद लिखना आता नहीं है,
मन मे उठते भाव लिखलूं।
2. ख़्वाहिश
कोई ख़्वाहिश,
अधूरी रह गई हो,
मै ये मै नही कहती,
क्योंकि कोई ख़्वाहिश,
कभी की ही नहीं थी।
ख़वाहिशों का क्या है,
एक पूरी हो तो,
दूसरी दे देती है दस्तक,
जिस चीज़ के पीछे भागो,
दो दिन मे वो हो जाती है,
वो बेमतलब!
ख़त्म हो जाती है,
उसकी चाहत और ज़रूरत,
इसलियें ख़वाहिशों का
अधूरा रहना ,
पूरा होना , ना होना ,
कोई बड़ी बात नहीं
फिर भी आदमी ,
उनके पीछे भागता है,,
ज़िन्दगी का चैन खोकर!
बीनू जी , आप अच्छी कविता करती हैं …….. मेरी शुभकामनाएं ………!
Bhavabhiyakti uttam hai .
हारना भी नहीं है —————————–
“राजनीति के कारण ही विरोध हो रहा है” : ———————–
जयललिता जी इसलिए यूजीसी के हिंदी से सम्बंधित निर्देशों का विरोध कर रही हैं कि उसे यूपीए सरकार के समय भेजा गया है और उनकी विरोधी द्रमुक यूपीए का हिस्सा थी (( अब देखना है एनडीए ( मोदी ) उस निर्देश को पुन: पास करवाकर भेजते हैं या नहीं )) ( देखिए राजस्थान पत्रिका – 19-9-14, पेज -14 ) :——
तमिलनाडु में परिजनों और स्कूलों की मांग, ‘हमें हिंदी चाहिए’
NDTVcom, Last Updated: जून 16, 2014 06:43 PM IST
‘We Want Hindi’, Say Parents, Schools in Tamil Naduचेन्नई: तमिलनाडु में हिंदी को अनिवार्य बनाए जाने के खिलाफ 60 के दशक में हिंसक विरोध प्रदर्शन देखने को मिले थे। हालांकि अब यह मामला उल्टा पड़ता दिख रहा, जहां राज्य में कई छात्र, उनके परिजन और स्कूलों ने तमिल के एकाधिकार के खिलाफ लड़ाई शुरू कर दी है। उनका कहना है कि उन्हें हिंदी चाहिए।
स्कूलों और परिजनों के एक समूह ने डीएमके की तत्कालीन सरकार की ओर से साल 2006 में पारित एक आदेश को चुनौती दी है, जिसमें कहा गया था कि दसवीं कक्षा तक के बच्चों को केवल तमिल पढ़ाई जाएगी।
इस संबंध में पांच जून को दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए मद्रास हाईकोर्ट ने राज्य की एआईएडीएमके सरकार से जवाब मांगा है।
इस मामले में चेन्नई के छात्रों का कहना है कि हिंदी या अन्य भाषाएं नहीं जानने से भारत में अन्य स्थानों पर और विदेश में उनके रोजगार के अवसरों को नुकसान पहुंचता है।
नौंवी कक्षा में पढ़ने वाले अनिरुद्ध मरीन इंजीयरिंग की पढ़ाई करना चाहते हैं और उनका कहना है, ‘अगर मैं उत्तर भारत में काम करना चाहता हूं तो मुझे हिंदी जाननी होगी।’
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फिर भी जयललिता इसलिए यूजीसी के हिंदी से सम्बंधित निर्देशों का विरोध कर रही हैं कि उसे यूपीए सरकार के समय भेजा गया है और उनकी विरोधी द्रमुक यूपीए का हिस्सा थी (( अब देखना है एनडीए ( मोदी ) उस निर्देश को पुन: पास करवाकर भेजते हैं या नहीं )) ( देखिए राजस्थान पत्रिका – 19-9-14, पेज -14 ) !!!
रचनाएँ अच्छी लगीं। बधाई।