गजल

आंखों में उजालों को मैंने अब बसाया है….

tearsइक़बाल हिंदुस्तानी

बर्क़ ने मेरा जब भी आशियां जलाया है,

अज़्म की सदाक़त को और भी बढ़ाया है।

 

हादसा कोई जब भी पेश राह में आया,

सो चुके ज़मीरों को मैंने फिर जगाया है।

 

दूर तक अंधेरों की फ़िक्र मैं नहीं करता,

आंखों में उजालों को मैंने अब बसाया है।

 

उस चिराग़ को तूफ़ां भी बुझा नहीं सकते,

जो चिराग़ ज़हनों में मैंने अब जलाया है।

 

अतिशी मिज़ाइल से भूख मिट ना पायेगी,

मां ने पी के बच्चो को ज़हर फिर पिलाया है।

 

दोस्ती समंदर से तश्नालब हूं ज़िंदा हूं,

ये असर उसूलों में मैंने अपने पाया है।

 

रहनुमा तो क्या होते तुम तो आदमी भी नहीं,

तुमने जिं़दा लोगों को आग में जलाया है।।

 

 

 

 

नोट-बर्क़-बिजली, आशियां-मकान, अज़्म-संकल्प, सदाक़त-सच, ज़मीर

-अंतर्रात्मा, जे़हन-मस्तिष्क, आतिशी-आग, तश्नालब-प्यासा।।