मेरा बेटा नहीं… बाकी मरें तो चलेगा – कश्मीर के आज़ादी आंदोलन का पाखण्ड और हकीकत…

10
185

-सुरेश चिपलूनकर

एक मोहतरमा हैं, नाम है “असिया अन्दराबी”। यह मोहतरमा कश्मीर की आज़ादी के आंदोलन की प्रमुख नेत्री मानी जाती हैं, एक कट्टरपंथी संगठन चलाती हैं जिसका नाम है “दुख्तरान-ए-मिल्लत” (धरती की बेटियाँ)। अधिकतर समय यह मोहतरमा अण्डरग्राउण्ड रहती हैं और परदे के पीछे से कश्मीर के पत्थर-फ़ेंकू गिरोह को नैतिक और आर्थिक समर्थन देती रहती हैं। सबसे तेज़ आवाज़ में कश्मीर की आज़ादी की मांग करने वाले बुज़ुर्गवार अब्दुल गनी लोन की खासुलखास सिपहसालारों में इनकी गिनती की जाती है। मुद्दे की बात पर आने से पहले ज़रा इनके बयानों की एक झलक देख लीजिये, जो उन्होंने विभिन्न इंटरव्यू में दिये हैं- मोहतरमा फ़रमाती हैं,

1) मैं “कश्मीरियत” में विश्वास नहीं रखती, मैं राष्ट्रीयता में विश्वास करती हूं… दुनिया में सिर्फ़ दो ही राष्ट्र हैं, मुस्लिम और गैर-मुस्लिम…

(फ़िर पता नहीं क्यों आज़ादी के लिये लड़ने वाले कश्मीरी युवा इन्हें अपना आदर्श मानते हैं? या शायद कश्मीर की आज़ादी वगैरह तो बनावटी बातें हैं, उन्हें सिर्फ़ मुस्लिम और गैर-मुस्लिम की थ्योरी में भरोसा है?)

2) मैं अंदराबी हूं और हम सैयद रजवाड़ों के वंशज हैं… मैं कश्मीरी नहीं हूं मैं अरबी हूं… मेरे पूर्वज अरब से मध्य एशिया और फ़िर पाकिस्तान आये थे…

(इस बयान से तो लगता है कि वह कहना चाहती हैं, कि “मैं” तो मैं हूं बल्कि “हम और हमारा” परिवार-खानदान श्रेष्ठ और उच्च वर्ग का है, जबकि ये पाकिस्तानी-कश्मीरी वगैरह तो ऐरे-गैरे हैं…)

3) मैं खुद को पाकिस्तानी नहीं, बल्कि मुस्लिम कहती हूं…

4) दुख्तरान-ए-मिल्लत की अध्यक्ष होने के नाते मेरा ठोस विश्वास है कि पूरी दुनिया सिर्फ़ अल्लाह के हुक्म से चलने के लिये ही बनी है… इस्लामिक सिद्धांतों और इस्लामिक कानूनों की खातिर हम भारत से लड़ रहे हैं, और इंशा-अल्लाह हम एक दिन कश्मीर लेकर ही रहेंगे… हमें पूरी दुनिया में इस्लाम का परचम लहराना है…

खैर यह तो हुई इनके ज़हरीले और धुर भारत-विरोधी बयानों की बात… ताकि आप इनकी शख्सियत से अच्छी तरह परिचित हो सकें… अब आते हैं असली मुद्दे पर…

पिछले माह एक कश्मीरी अखबार को दिये अपने बयान में अन्दराबी ने कश्मीर के उन माता-पिताओं और पालकों को लताड़ लगाते हुए उनकी कड़ी आलोचना की, जिन्होंने पिछले काफ़ी समय से कश्मीर में चलने वाले प्रदर्शनों, विरोध और बन्द के कारण उनके बच्चों के स्कूल और पढ़ाई को लेकर चिंता व्यक्त की थी। 13 जुलाई के बयान में अन्दराबी ने कहा कि “कुछ ज़िंदगियाँ गँवाना, सम्पत्ति का नुकसान और बच्चों की पढ़ाई और समय की हानि तो स्वतन्त्रता-संग्राम का एक हिस्सा हैं, इसके लिये कश्मीर के लोगों को इतनी हायतौबा नहीं मचाना चाहिये… आज़ादी के आंदोलन में हमें बड़ी से बड़ी कुर्बानी के लिये तैयार रहना चाहिये…”।

यह उग्र बयान पढ़कर आपको भी लगेगा कि ओह… कश्मीर की आज़ादी के लिये कितनी समर्पित नेता हैं? लेकिन 30 अप्रैल 2010 को जम्मू-कश्मीर के उच्च न्यायालय में दाखिल दस्तावेजों के मुताबिक इस फ़ायरब्राण्ड नेत्री असिया अन्दराबी के सुपुत्र मोहम्मद बिन कासिम ने पढ़ाई के लिये मलेशिया जाने हेतु आवेदन किया है और उसे “भारतीय पासपोर्ट” चाहिये… चौंक गये, हैरान हो गये न आप? जी हाँ, भारत के विरोध में लगातार ज़हर उगलने वाली अंदराबी के बेटे को “भारतीय पासपोर्ट” चाहिये… और वह भी किसलिये? बारहवीं के बाद उच्च अध्ययन हेतु…। यानी कश्मीर में जो युवा और किशोर रोज़ाना पत्थर फ़ेंक-फ़ेंक कर, अपनी जान हथेली पर लेकर 200-300 रुपये रोज कमाते हैं, उन गलीज़ों में उनका “होनहार” शामिल नहीं होना चाहता… न वह खुद चाहती है, कि कहीं वह सुरक्षा बलों के हाथों मारा न जाये…। कैसा पाखण्ड भरा आज़ादी का आंदोलन है यह? एक तरफ़ तो मई से लेकर अब तक कश्मीर के स्कूल-कॉलेज खुले नहीं हैं जिस कारण हजारों-लाखों युवा और किशोर अपनी पढ़ाई का नुकसान झेल रहे हैं, पत्थर फ़ेंक रहे हैं… और दूसरी तरफ़ यह मोहतरमा लोगों को भड़काकर, खुद के बेटे को विदेश भेजने की फ़िराक में हैं…

अब सवाल उठता है कि “भारतीय पासपोर्ट” ही क्यों? जवाब एकदम सीधा और आसान है कि यदि असिया अंदराबी के पाकिस्तानी आका उसके बेटे को पाकिस्तान का पासपोर्ट बनवा भी दें तो विभिन्न अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डों पर पाकिस्तानी पासपोर्ट को “एक घुसपैठिये” के पासपोर्ट की तरह शंका की निगाह और “गुप्त रोगी” की तरह से देखा जाता है, बारीकी से जाँच की जाती है, तमाम सवालात किये जाते हैं, जबकि “भारतीय पासपोर्ट” की कई देशों में काफ़ी-कुछ “इज्जत” बाकी है अभी… इसलिये अंदराबी भारत से नफ़रत(?) करने के बावजूद भारत का ही पासपोर्ट चाहती है। इसे कहते हैं धुर-पाखण्ड…

पिछले वर्ष जब मोहम्मद कासिम का चयन जम्मू की फ़र्स्ट क्लास क्रिकेट टीम में हो गया तो आसिया अंदराबी ने उसे कश्मीर वापस बुला लिया, कारण पूछने पर उन्होंने बताया कि “मैं अपने बेटे को “हिन्दुस्तान” की टीम के लिये कैसे खेलने दे सकती थी? जो देश हमारा दुश्मन है, उसके लिये खेलना असम्भव है…” (लेकिन तथाकथित दुश्मन देश का पासपोर्ट लिया जा सकता है…)…

आसिया अंदराबी, यासीन मलिक, अब्दुल गनी लोन जैसे लोगों की वजह से आज हजारों कश्मीरी युवा मजबूरी में कश्मीर से बाहर भारत के अन्य विश्वविद्यालयों में अपनी पढ़ाई कर रहे हैं, अपने घरों और अपने परिजनों से दूर… जबकि कश्मीर से निकलने वाले उर्दू अखबार “उकाब” के सम्पादक मंज़ूर आलम ने लिखा है कि कश्मीर के उच्च वर्ग के अधिकांश लोगों ने अपने बच्चों को कश्मीर से बाहर भेज दिया है, जैसे कि एक इस्लामिक नेता और वकील मियाँ अब्दुल कय्यूम की एक बेटी दरभंगा में पढ़ रही है, जबकि दूसरी भतीजी जम्मू के डोगरा लॉ कॉलेज की छात्रा है, दो अन्य भतीजियाँ और एक भाँजी भी पुणे के दो विश्वविद्यालयों में पढ़ रही हैं…। जो लोग कश्मीर में मर रहे हैं, पत्थर फ़ेंक रहे हैं, गोलियाँ खा रहे हैं… वे या तो गरीब हैं और कश्मीर से बाहर नहीं जा सकते या फ़िर इन नेताओं की ज़हरीली लेकिन लच्छेदार धार्मिक बातों में फ़ँस चुके हैं…। अब उनकी स्थिति इधर कुँआ, उधर खाई वाली हो गई है, न तो उन्हें इस स्थिति से निकलने का कोई रास्ता सूझ रहा है, न ही अलगाववादी नेता उन्हें यह सब छोड़ने देंगे… क्योंकि यदि ऐसा हुआ तो उनकी “दुकान” बन्द हो जायेगी…

आप सोच रहे होंगे कि आसिया अंदराबी का संगठन “दुख्तरान-ए-मिल्लत” करता क्या है? यह संगठन मुस्लिम महिलाओं को “इस्लामी परम्पराओं और शरीयत” के अनुसार चलने को “बाध्य” करता है। इस संगठन ने कश्मीर में लड़कियों और महिलाओं के लिये बुरका अनिवार्य कर दिया, जिस लड़की ने इनकी बात नहीं मानी उसके चेहरे पर तेज़ाब फ़ेंका गया, किसी रेस्टोरेण्ट में अविवाहित जोड़े को एक साथ देखकर उसे सरेआम पीटा गया, कश्मीर के सभी इंटरनेट कैफ़े को चेतावनी दी गई कि वे “केबिन” हटा दें और किसी भी लड़के और लड़की को एक साथ इंटरनेट उपयोग नहीं करने दें… कई होटलों और ढाबों में घुसकर इनके संगठन ने शराब की बोतलें फ़ोड़ीं (क्योंकि शराब गैर-इस्लामिक है)… तात्पर्य यह कि आसिया अंदराबी ने “इस्लाम” की भलाई के लिये बहुत से “पवित्र काम” किये हैं…।

अब आप फ़िर सोच रहे होंगे कि जो काम आसिया अंदराबी ने कश्मीर में किये, उसी से मिलते-जुलते, इक्का-दुक्का काम प्रमोद मुतालिक ने भी किये हैं… फ़िर हमारे सो कॉल्ड नेशनल मीडिया में प्रमोद मुतालिक से सम्बन्धित खबरें हिस्टीरियाई अंदाज़ में क्यों दिखाई जाती हैं, जबकि आसिया अंदराबी का कहीं नाम तक नहीं आता? कोई उसे जानता तक नहीं… कभी भी आसिया अंदराबी को “पिंक चड्डी” क्यों नहीं भेजी जाती? जवाब आपको मालूम है… न मालूम हो तो फ़िर बताता हूं, कि हमारा दो कौड़ी का नेशनल मीडिया सिर्फ़ हिन्दू-विरोधी ही नहीं है, बल्कि जहाँ “इस्लाम” की बात आती है, तुरन्त घिघियाए हुए कुत्ते की तरह इसकी दुम पिछवाड़े में दब जाती है। यही कारण है कि प्रमोद मुतालिक तो “नेशनल विलेन” है, लेकिन अंदराबी का नाम भी कईयों ने नहीं सुना होगा…।

मीडिया को अपनी जेब में रखने का ये फ़ायदा है… ताकि “भगवा आतंकवाद” की मनमानी व्याख्या भी की जा सके और किसी चैनल पर “उग्र हिन्दूवादियों की भीड़ द्वारा हमला” जैसी फ़र्जी खबरें भी गढ़ी जा सकें… जितनी पाखण्डी और ढोंगी आसिया अंदराबी अपने कश्मीर के आज़ादी आंदोलन को लेकर हैं उतना ही बड़ा पाखंडी और बिकाऊ हमारा सो कॉल्ड “सेकुलर मीडिया” है…

अक्सर आप लोगों ने मीडिया पर कुछ वामपंथी और सेकुलर बुद्धिजीवियों को कुनैन की गोलीयुक्त चेहरा लिये यह बयान चबाते हुए सुना होगा कि “कश्मीर की समस्या आर्थिक है, वहाँ गरीबी और बेरोज़गारी के कारण आतंकवाद पनप रहा है, भटके हुए नौजवान हैं, राज्य को आर्थिक पैकेज चाहिये… आदि-आदि-आदि”। अब चलते-चलते कुछ रोचक आँकड़े पेश करता हूं –

1) जम्मू-कश्मीर की प्रति व्यक्ति आय 17590 रुपये है जो बिहार, उप्र और मप्र से अधिक है)

2) कश्मीर को सबसे अधिक केन्द्रीय सहायता मिलती है, इसके बजट का 70% अर्थात 19362 करोड़ केन्द्र से (कर्ज़ नहीं) दान में मिलता है।

3) इसके बदले में ये क्या देते हैं, 2008-09 में कश्मीर में “शहरी सम्पत्ति कर” के रुप में कुल कलेक्शन कितना हुआ, सिर्फ़ एक लाख रुपये…

4) इतने कम टैक्स कलेक्शन के बावजूद जम्मू-कश्मीर राज्य पिछड़ा की श्रेणी में नहीं आता, क्योंकि यहाँ के निवासियों में से 37% का बैंक खाता है, 65% के पास रेडियो है, 41% के पास टीवी है, प्रति व्यक्ति बिजली खपत 759 किलोवाट है (बिहार, उप्र और पश्चिम बंगाल से अधिक), 81% प्रतिशत घरों में बिजली है सिर्फ़ 15% केरोसीन पर निर्भर हैं (फ़िर बिहार, उप्र, राजस्थान से आगे)। भारत के गाँवों में गरीबों को औसतन 241 ग्राम दूध उपलब्ध है, कश्मीर में यह मात्रा 353 ग्राम है, स्वास्थ्य पर खर्चा प्रति व्यक्ति 363 रुपये है (तमिलनाडु 170 रुपये, आंध्र 146 रुपये, उप्र 83 रुपये)। किसी भी मानक पर तुलना करके देख लीजिये कि जम्मू कश्मीर कहीं से भी आर्थिक या मानव सूचकांक रुप से पिछड़ा राज्य नहीं है। यदि सिर्फ़ आर्थिक पिछड़ापन, गरीबी, बेरोज़गारी ही अलगाववाद का कारण होता, तब तो सबसे पहले बिहार के भारत से अलग होने की माँग करना जायज़ होता, लेकिन ऐसा है नहीं… कारण सभी जानते हैं लेकिन भौण्डे तरीके से “पोलिटिकली करेक्ट” होने के चक्कर में सीधे-सीधे कहने से बचते हैं कि यह कश्मीरियत-वश्मीरियत कुछ नहीं है बल्कि विशुद्ध इस्लामीकरण है, और “गुमराह” “भटके हुए” या “मासूम” और कोई नहीं बल्कि धर्मान्ध लोग हैं और इनसे निपटने का तरीका भी वैसा ही होना चाहिये…बशर्ते केन्द्र में कोई प्रधानमंत्री ऐसा हो जिसकी रीढ़ की हड्डी मजबूत हो और कोई सरकार ऐसी हो जो अमेरिका को जूते की नोक पर रखने की हिम्मत रखे…

साफ़ ज़ाहिर है कि कश्मीर की समस्या विशुद्ध रुप से “धार्मिक” है, वरना लोन-मलिक जैसे लोग कश्मीरी पण्डितों को घाटी से बाहर न करते, बल्कि उन्हें साथ लेकर अलगाववाद की बातें करते। अलगाववादियों का एक ही मकसद है वहाँ पर “इस्लाम” का शासन स्थापित करना, जो लोग इस बात से आँखें मूंदकर बेतुकी आर्थिक-राजनैतिक व्याख्याएं करते फ़िरते हैं, वे निठल्ले शतुरमुर्ग हैं… और इनका बस चले तो ये आसिया अंदराबी को भी “सेकुलर” घोषित कर दें… क्योंकि ढोंग-पाखण्ड-बनावटीपन और हिन्दू विरोध तो इनकी रग-रग में भरा है… लेकिन जब केरल जैसी साँप-छछूंदर की हालत होती है तभी इन्हें अक्ल आती है…

10 COMMENTS

  1. श्री सुरेश जी ने क्या बात कही है. **मेरा बेटा नहीं… बाकी मरें तो चलेगा……….**
    बिलकुल सत्य कहा है. यही होता है. आपने जो आकडे दिया है वह तो सिद्ध करता है की जम्मू और कश्मीर काफी अच्छी स्तिथि में है.

    पहले साल में दो चार दिन पत्थर चलते थे. कुछ साल पहले महीने दो महीने में पत्थर चलते थे, आजकल हर रोज पत्थर चल रहे है. क्यों न चले हमारी सरकार उन्हें स्वायत्ता (अप्रत्यक्ष रूप से आजादी, आजादी भी ऐसी के सरकार उनकी, सरकार चलाने के लिया पैसे भारत सरकार देगी) देने की घोषणा करती है.

    इन पत्थर चलने वालो को पकड़ कर दिल्ली में कामन वेल्थ खेलो में भेज देना चाइये हो सकता है एक दो पदक mil jay.

    सुरेश जी इस तरह की जानकारी देते रहिये ताकि आम व्यक्ति को जानकारी मिल सके.

  2. देश को कौडी भाव बेचो, और वह कौडी भी दिल्लीके कुरसी के लिए, कुरसी भ्रष्टाचार से पैसा पाने वालोंको सुविधाएं देनेके लिए।और पैसा स्विस बॅंकमें जमा करनेके लिए।
    इस सरकार का इतिहास कश्मीरको सीढी दर सीढी भारतसे अलग करनेमें सुवर्ण पदक देने योग्य है। पहले (१)बढती हुयी विजय श्री प्राप्त करती हुयी सेना को रोकना। (२) U N O में जाना(३) १/३ कश्मिरको खोना(४) हिंदुओंको वहांसे रक्षण के अभाव में निराश्रित होना (५) सिखोंको चेतावनियां मिलना (६)अमरमाथ में यात्रियोंकी अधूरी व्यवस्था, — और अब यह विसा का चक्कर?
    यह सरकार जान ले, कुरसीके खातिर देशका सौदा करनेसे हिचकिचाएगी नहीं।
    भागने के लिए परदेश में बेटा वेनेज़ुअएला(ह्वेरोनिका राह देख रही है)में रिश्ता कर लेगा, इतालि तो है हि, और स्विस बॅंक खाता पहले ही साफ कर चुके होंगे। अब सारे दक्षिण अमरिकाके बनाना रिपब्लिक लगभग १०-१२ देश स्विस बॅंक जैसा ही काम करते हैं। कहां कहां आप शोधोगे? और अब तो मंदी चल रही है, पैसा कबसे ट्रान्सफर हो गया होगा। क्या आप इन लोगोंको नहीं जानते? आपात्काल में भी तो, यह लोग बोरिया बिस्तर तैय्यार रखे थे।
    सुरेश जी आप डटे रहिए। संभलके, आपको कुछ अनजाने दूर भाष भी आएंगे।

  3. sada ki tarah adbhut….ankhe kholne wala lekh….sardar ji ko shayad nind nahi aaygi kyuki “jab kisi alpsankhyak par atyachar [jaise ke andarabi ke bete ko bhartiya passport na dekar kiya ja raha hai…:) ] sardar ji ko rat bhar nind nahi aati…aur ha bhartiya sansadhano par bhi to pahla hak unhi ka hai yane…..college ki seats par….Bhartiya passport par….bhai passport to jaroor diya jana chahiye….votebank ka sawal hai….desh jaye bhad me….

  4. मीडिया की घिनौनी हरकतों के कारण आज अधिकाँश लोगों का मीडिया से विशवास उठता जा रहा है … सब समझाने लगे हैं की मीडिया खबरें नहीं अफवाहों के बेचने में लगा है …. सनसनी फेलाना, किसी एक विचार का प्रसार करना, विशेष रूप से किन्हीं अज्ञात कारणों से केवल हिंदुओं को बदनाम करना, किसी एक के किए गए कर्म को पुरे समाज पर थोपना ही इनका उद्देश्य है … परन्तु धीरे धीरे सुरेश जी जैसे जागरूक व्यक्तियों के कारण अब यह एक तरफ़ा खेल नहीं कल पाएगा .. आपको साधुवाद .. अलख जगाए जाइए

  5. Most of these facts are in both Public Domain and Home Ministers knowledge.The Government has a compulsion of Minority appeasement. The media has sold either its shares or its soul to the Devil.Hence they play one note music of Secularism a.k.a. Minority appeasement.The very word Hindu is fundamentalist/obscurantist to these leftist English speaking chatterati who masquerade as Media in India.They belong to the most corrupt brigade in India.TEN times more corrupt vis a vis politicians.

  6. kashmeer ki jis algavwadi mahila ne apne bete ke liye bharat se i veeja ya passport manag hai -to hamare videsh mantralay ki prtikrya tatha kashmeer ke anya algavwadiyon ki pratikrya bhi is aalekh men hotee to deshdrohiyon par uchit karywahi ka aahwan kana aasaan hota .kashmeer bharat ka mukut hai use har haal men bachana jaruree hai .chahe uske liye U.N.O.se bhi takkar leni pade .

  7. जिस सरकार ने …….. उसके बारे में बात करना बेकार है । परंपरागत युद्ध में असफल होकर 22 साल से पाकिस्तान क्षद्म युद्ध चला रहा है और हमारी सरकार शांति का रास्ता ढूंढ रही है बातचीत से। चीन ने हमारी धरती पर कब्जा किया हम उससे दोस्ती निभा रहे हैं , पाकिस्तान ने आधा कश्मीर दबा लिया और अब उसे चीन को बेच रहा है, हम शांति वार्ता कर रहे हैं।
    संगीनों में जंग लग जाए, सिपाही लड़ना भूल जाए , उससे पहले आर पार की लड़ाई लड़ लो , डरते क्यों हो ? आज अमेरिका हमारी बदौलत जिंदा है , अभी भी नहीं हुआ फैसला तो कभी नही होगा। रोज रोज के मरने से तो अच्छा है एक दिन शान से मरो।
    करदो ऐलान कश्मीर की सर जमीन हमारी है, जिसे रहना है खुशी से रहे नहीं तो पाकिस्तान चला जाए ।सात दिन के लिए सीमा खोल दी जाए जो जाना चाहता है जाए, देखना कैसे स्वागत करता है पाकिस्तान इनका।

  8. अद्भुत ..आँखें खोलने वाला….लेकिन उल्लुओं का क्या जो दिन के उजाले को देख ही नहीं पाए. मीडिया भी ज़ाहिर है ‘उल्लू’ जाने के फायदे जानती है..क्योकि ‘लक्ष्मी’ का वाहन तो वही है ना?

  9. यह सूचनापरक आलेख है ;तथ्य भी सर्वज्ञात हैं वैदिक .संस्कृत में बेटी या पुत्री को दुहिता कहा गया है इसीलिए आज भी संस्कृत और हिदी में नाती को दौहित्र भी कहते हैं ;प्राचीन फ़ारसी में भी वैदिक शब्द हुआ करते थे जैसे -मातर का मादर ;पितृ का पिदर ;भ्रात्र का ब्रादर और दुहितर का दुखितर .इरान ,अफगानिस्तान तथा मध्य एशिया में भी लड़कियों के संगठनो को इसी नाम और काम के लिए जाना जाता है जो सुरेश जी ने प्रस्तुत आलेख में जाहिर किया है .यह बहुत ही गोपनीय तरीके से कश्मीर में विगत तीस सालों से सक्रीय है .इसकी स्थापना उस समय “दुख्ताराने -हिंद ‘के नाम से हुई थी .बाद में जब जे के एल ऍफ़ का जोर दिखा तो नाम बदलकर हो गया “दुख्ताराने -कश्मीर “जब अलगाव वादियों का जोर बढ़ा तो अब हो गया दुख्त्राने -मिल्लत …कश्मीर मेंसक्रीय आसिया अन्द्रावी जैसे गद्दारों .के साथ प्रमोद मुत्तालिक की तुलना गैरवाजिब है .प्रमोद मुत्तालिक को मीडिया ने क्यों महत्वा दिया इसकी जड़ में जाकर पता करना चाहिए .लेकिन आसिया अन्द्रावी जैसी देशद्रोही ताकतों को बजायशेष भारत में पापुलर करने के उसे कश्मीर की खल नायिकाही बना रहने दो ..
    कश्मीर के बारे में सभी देशभक्तों का एकमत है .जरुरी नहीं उसे धपोर शंख की तरह बजाकर नाहक देश की दुश्मन ताकतों को चिड़ाने के काम में लाया जाए .
    समस्या का बखान करना आसान है .उसका निदान करना कठिन .जो निदान सुरेश जी ने बताया है यदि उससे बात बंटी है तो “शुभस्य शीघ्रम “सो काल्ड सेकुलरवादी और वामपंथ आपके साथ हैं

  10. Suresh je Apne bahut accha likha hai,
    lekin Apni Kendra ki Sarkar se desh prem ki Kalpana karana galti hogi, kyonki yah Congress ke neta real me Orangjeb ki Aulad hai Indian nahin hai

Leave a Reply to पंकज झा. Cancel reply

Please enter your comment!
Please enter your name here