डॉ. शंकर सुवन सिंह
22 जनवरी को अयोध्या में नव निर्मित भव्य राम मंदिर में राम लला की प्राण प्रतिष्ठा हो गई। प्राण प्रतिष्ठा का उल्लेख वेदों और पुराणों में किया गया है। हिन्दू धर्म परंपरा में प्राण प्रतिष्ठा एक पवित्र अनुष्ठान है जो किसी मूर्ति या प्रतिमा में उस देवता या देवी का आह्वान कर उसे पवित्र या दिव्य बनाने के लिए किया जाता है। प्राण शब्द का अर्थ है जीवन जबकि प्रतिष्ठा का अर्थ है स्थापना। अतएव प्राण प्रतिष्ठा का अर्थ है प्राण शक्ति की स्थापना या देवता को जीवंत स्थापित करना। राम लला अब जीवंत देवता का रूप ले चुके हैं।
यथा पिंडे तथा ब्रह्मांड अर्थात कण कण में भगवान् व्याप्त है। कण कण मिलकर पत्थर बनता है। कण कण मिलकर सृष्टि बनती है। प्राण प्रतिष्ठा के बाद पत्थर में भी भगवान् का जीवंत रूप देखने को मिलता है। अतएव पत्थर में भी भगवान है। भगवान् राम की मूर्ति बनाने वाले योगीराज ने स्वीकारा कि उन्होंने जो मूर्ति बनाई थी वो मूर्ति प्राणप्रतिष्ठा के बाद जीवंत हो उठी अर्थात जैसी थी वैसी नहीं दिख रही थी। इसे मैंने भी महसूस किया है। पर कुछ लोग इसको अंध विश्वास कहते है पर ऐसा है नहीं कहने का तात्पर्य जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी अर्थात जिसकी जैसी दृष्टि होती है, उसे वैसी ही मूरत नज़र आती है। राम शब्द में ॐ ध्वनि का भी उच्चारण होता है और ॐ में ही सृष्टि का समावेश है। अतएव राम को जीवन से अलग नहीं देखा जा सकता है। राम नाम में ही जीवन है। यदि जीवन को सफल बनाना है तो राम राम रटते रहो। जिस प्रकार आत्मा बिन शरीर बेकार है उसी प्रकार राम नाम के बिना जीवन व्यर्थ है। जिस प्रकार जल से प्यास बुझ जाती है उसी प्रकार राम नाम से आत्मा तृप्त हो जाती है। राम उन सभी का सहारा है जिसने सब कुछ हारा है। राम की कृपा से बाल्मीकि ने रामायण रच दी और फिर राम को राम राज्य लाने के लिए त्रेतायुग में मनुष्य योनि में जन्म लेना पड़ा। बाल्मीकि से रामायण आया, रामायण से राम आए। कहने का तात्पर्य यही है कि महर्षि बाल्मीकि की यही आस और यही प्यास थी जिसके कारण रामायण के बाद राम का जन्म हुआ। बाल्मीकि ने रामायण की रचना 7328 ईसा पूर्व अर्थात लगभग 9346 वर्ष पूर्व कर दी थी। इसके बाद भगवान् राम का जन्म 5119 ईसा पूर्व चैत्र मास की नवमी को हुआ। राम अब जन जन के प्राण हैं और यही राम राज्य का आधार है।
राम कण कण में व्याप्त है,
इसलिए पत्थर में भी भगवान् प्राप्त है।।
राम में ॐ समाया, ॐ में सृस्टि समाई,
सृस्टि में जीवन समाया और जीवन में राम समाया।।
राम बिन जीवन सूना जैसे आत्मा बिन शरीर सूना,
राम आस है तो राम किसी की प्यास है……
बाल्मीकि से रामायण आया, रामायण से राम आए,
राम से योगी आए और राम से मोदी आए।।
राम जन जन का प्राण है, यही रामराज्य का आधार है,
राम आस है तो राम किसी की प्यास है………….
राम आदर्श हैं। राम पुरुषार्थ के प्रतीक है। भगवान् श्री राम के जीवन से वास्तव में हमको सब कुछ सिखने को मिलता है। धैर्य, क्षमा, पराक्रम आदि गुणों को हम सभी को आत्मसात करना चाहिए। जब रावण, राम को अपने स्वरुप में ढालने में असमर्थ रहा वास्तव में तभी रावण, राम से पराजित हो गया था। कहने का तात्पर्य रावण जैसे दुराचारी की छाया का असर राम पर कभी न पड़ पाया। हम लोगों को इससे सिख मिलती है कि कोई कितना भी बुरा हो उसकी छाप का असर आप पर नहीं पड़ना चाहिए। ये तभी संभव है जब आप पुरुषार्थ का पालन करेंगे और अपने आत्मबल को मजबूत करेंगे। गीता में भगवान् कृष्ण ने अर्जुन को सन्देश देते हुए कहा है कि नायं आत्मा बल हिनेन लभ्यः अर्थात यह आत्मा बल हीनों को नहीं प्राप्त होती है। अतएव हम कह सकते हैं की राम आस है तो राम किसी की प्यास है। राम सिर्फ नाम भर नहीं है। वे जन-जन के प्राण हैं। राम जीवन-आधार हैं। राम भारत के प्रतिरूप हैं और भारत राम का। राम भारत की आत्मा हैं। राम भारत के पर्याय हैं। राम निर्विकल्प हैं। उनका कोई विकल्प नहीं। राम के सुख में भारत के जन-जन का सुख है। भगवान् राम की अयोध्या में प्राण प्रतिष्ठा मोदी के कर्मो का प्रतिफल है अतएव राम से मोदी आए और राम से योगी आए। इसीलिए राम आस है तो राम किसी के लिए प्यास है।
लेखक
डॉ. शंकर सुवन सिंह