
— अलका सिन्हा
भला लगने लगा है साथ में परिवार के रहना
बड़े ही शौक से घर का, हर इक कोना सजा रखना
न जाने कब से ख्वाहिश थी दबी-सी, मन में रहती थी
सजा बिटिया को दुल्हन सा, मिलन बारात कर लूं
किसी से ना कहो तो आज मन की बात कर लूं।
मुझे चिढ़ हो गई अस्तित्ववादी गर्म नारों से
उलझती हैं जो कोमल भावना के नर्म तारों से
नहीं कहता कोई मुझसे, मुझे अब खुद ही भाता है
सभी के स्वाद का खाना बना दिन-रात कर लूं
किसी से ना कहो तो आज मन की बात कर लूं।
होता और भी अच्छा अगर बंदिश नहीं होती
महामारी को फैलाने की जिद, रंजिश नहीं होती
बस इतना नहीं होता कि रहता देश छुट्टी पर
बदल पाऊं अगर इसको सही हालात कर लूं
किसी से ना कहो तो आज मन की बात कर लूं।
निकलना घर से बाहर और मिलना होगी गद्दारी
जरा तकनीक को समझो निभाओ फिर वफादारी
यही है वक्त सच्ची देशभक्ति को दिखाने का
रहूं अपनी हदों में, दूरियां बरदाश्त कर लूं
किसी से ना कहो तो आज मन की बात कर लूं।