लापरवाही की आदत पड़ सकती है महंगी और बन सकती है आफत

अशोक “प्रवृद्ध”

सम्पूर्ण विश्व की भांति हमारे देश पर कोरोना का गंभीर खतरा मंडरा रहा है, लेकिन अभी भी हमारे देश के लोग अर्थात भारत के निवासी इस खतरे की अनदेखी करते हुये निर्देशों की अवहेलना कर रहे हैं। ऐसा नहीं कि भारत के ये लोग   निरक्षर व नादान हैं मगर उन्हें नियमों को ताक पर रखकर चलने की पक्की आदत हो गयी है। इसके अनेक जीते -जागते प्रमाण और साक्षात उदाहरण सम्पूर्ण देश में देखने के लिए मिलते हैं। यातायात नियमों, परिवहन अनुज्ञप्तियों के उल्लंघन को लोग अपनी शान समझते हैं । यहां पेशाब करना मना है, का सूचना पट्ट मोटे और बड़े अक्षरों में अंकित होने के बाद भी दीवार के साथ खड़े हो कर लोग लघुशंका करने से बाज नहीं आते । भारत के अधिकांश व्यक्ति किसी भी कार्य के लिए पंक्ति लगाने के, कतारबद्ध खड़े होने के आदि नहीं हैं और अगर कभी मजबूरन उन्हें कतार में इंतजार करने के लिए खड़ा होना पड़े तो वे कोई न कोई जुगाड़ लगा कर आगे पहुंच कर अपना प्रतीक्षा समय कम कर लेते हैं। ऐसा करना उनके स्वभाव का अभिन्न अंग बन गया है। नयी पीढ़ी भी इन अप्रिय संस्कारों की कायल हो रही है। दूसरे शब्दों में इसे गैर- जिम्मेदाराना व्यवहार कहा जा सकता है। ऐसे व्यवहार के कारण हमारे देश को कोरोना का बड़ा दंश लग सकता है। अगर ऐसा हुआ तो यह तबाही से कम नहीं होगा। कोरोना को लोग अब तक हल्के में ले रहे हैं और बचाव के उपाय करने में अपनी हेठी अर्थात तौहीन समझते हैं। न तो लोग घरों में टिके रहने को तैयार हैं और न ही वे बार- बार हाथ साफ करने की जहमत ही उठा सकते हैं । इतना ही नहीं वे अलग- थलग रखे जाने पर वहां से फरार होने को अपना बहादुरी का काम मानते हैं और इसके बाद घर के आस- पास दर्जनों या सैंकड़ों लोगों को संक्रमित कर देते हैं। लोग अब भी गले मिलने और हाथ मिलाने की आदत को शिष्टाचार का पुनीत कर्त्तव्य मान रहें हैं। आज भी बाग़- बगीचों, पार्कों में प्रेमी तन्हाई का फायदा उठा कर अपनी अंग स्पर्श की परंपरा दोहराते दिखाई देते हैं। गाँव, कस्बा, शहर सर्वत्र लोग ताश खेलते झुण्ड में दिखाई दे रहे हैं। इसके साथ ही कई  और अन्य प्रकार के खेल सर्वत्र निरंतर जारी है। अगर ऐसा बदस्तूर जारी रहा तो भारत में मातम का दायरा को सीमित करना कठिन ही नहीं बल्कि असंभव हो जायेगा। 1975 के बाद से विभिन्न योजनाओं से प्रतिवर्ष करोड़ों आवास बनाये जाने के बाद भी आज भारत की लगभग एक तिहाई से अधिक आबादी झुग्गी झोपडी में रहती है । अगर यहां संक्रमण की आंधी चली तो झुग्गी- झोपडी वाली भारत कैसी लगेगी, यह कल्पना ही नहीं की जा सकती। ऐसे युग में अनपढ़ इतना तो जानते हैं कि अगर जान पर खतरा मंडरा रहा हो तो कुछ न कुछ सावधानी रखने में अवश्य ही भलाई होगी, परन्तु लोग इसको समझने को तैयार नहीं हैं और सरकार द्वारा निर्देशित नियमों का अवहेलना कर देश के परम्परागत सौहार्द पूर्णता और विभाजित भारत के संविधान में किये गये प्रावधानों का भी खुल्लमखुल्ला उल्लंघन करने में लगे हैं। दुःख, खेद व क्षोभ का विषय है कि लोग अब भी चीन, इटली और ईरान में हुये जानी नुकसान से सबक नहीं ले रहे। उनकी लापरवाही की आदत उनको बड़ी मंहगी पड़ सकती है। उन्हीं की लापरवाही का नतीजा है कि आज देश की राजधानी दिल्ली समेत सम्पूर्ण भारत को लॉकडाउन और कर्फ्यू के दिन देखने पड़ रहे हैं। अब भी समय है, भारत वासी संभल सकते हैं। सरकार कारगर कदम उठा रही है, अगर इस गौरवमयी ऐतिहासिक सनातन वैदिक धर्मावलम्बी बहुसंख्यक भारत के लोग जिम्मेदार बनेंगे तो इस देश की सनातन चहल -पहल और इसके सर्वांगीण विकास को कोई नुकसान नहीं होगा, वरना जो होगा, उसे हम देख नहीं पायेंगे।

उल्लेखनीय है कि देश की राजधानी दिल्ली के शाहीन बाग़ इलाके में इस वर्ष के फरवरी- मार्च महीने में एक विशेष समुदाय के द्वारा की गई दहशत और वहशत की कोशिशों से देशवासी बुरी तरह से दहशत में पहले से थे, और ऐसी कोशिशों ने देश के सर्व धर्म एकता समन्वय व सद्भाव के बंधन को तार- तार कर दिया था। इतना ही नहीं देश और विदेशों में दिल्ली के साथ ही सम्पूर्ण देश के गौरव को इतना दागदार किया कि दाग के ये निशान हटाने में बरसों लग सकते हैं।  और इसी बीच इसी की आड़ में मार्च के महीने में चीन से आयातित वायरस ने देश की राजधानी सहित पूरे देश को बदहाल कर दिया है और देश भर में शिशुओं तथा बुजुर्गों के साथ ही आम जन जीवन पर गम्भीर खतरा मंडरा रहा है। जिसके कारण सम्पूर्ण देशवासियों की जिन्दगी सहमी-सहमी, ठहरी-ठहरी दिखाई दे रही है। भले ही इस संक्रमण से देश में मृत्यु के कम ही मामले सामने आये हैं मगर चीन, इटली और यूरोप में कोरोना को लेकर मचे हाहाकार को देखते हुए सम्पूर्ण देश वासी घबराये हुए हैं। जहां तक केन्द्र सरकार के प्रयासों की बात की जाय तो कहना होगा कि सरकार द्वारा इस चीनी वायरस के फैलाव को रोकने और रोगियों के उपचार तथा संदिग्ध रोगियों को अलग-थलग रखने और उन्हें सरकारी खर्च पर उपचार और सभी सुविधाएं उपलब्ध कराये जाने की नीति  की सराहना की जानी चाहिये। न केवल सरकार ने चीन, ईरान, इटली तथा जापान में योकोहामा में एक क्रूज में फंसे भारतीयों को निकाल कर लाने का साहस दिखाया है, अपितु चीन जैसै देश को मानवीय सहायता भी दी है। यहाँ तक कि विश्व के चौधराहट का दावा करने वाले अमेरिका को उसके राष्ट्रपति के गुहार पर मलेरिया समेत कई अन्य प्रकार की दवाओं व चिकित्सीय सुविधा के माध्यम से सहायता की है ।  सार्क देशों की सहायता के लिये कोष के गठन का प्रधानमंत्री का निर्णय भारत की उदारता का परिचायक है। एक राजनीतिक पार्टी के अध्यक्ष के परम्परागत ट्रस्टी सदस्य के मनमानी से सहायता कार्य में होने वाली झंझट से बचाने के लिए प्रधानमन्त्री राहत कोष की भांति ही प्रधानमन्त्री रिलीफ फंड का निर्माण कराया है, जिसका कोई भी ट्रस्टी किसी भी राजनीतिक पार्टी का नहीं होगा, बल्कि सिर्फ सरकार में शामिल तत्कालीन राष्ट्रपति, प्रधानमन्त्री व अन्यान्य लोग ही होंगे ।

कोरोना के कारण अगर भारत के दर्द की बात की जाय तो हर भारतीय आज इस आशंका से परेशान है कि कहीं उसे कोरोना अपने चंगुल में जकड़ कर लील तो नहीं जायेगा। आज स्थिति यह है कि किसी भी व्यक्ति को कोरोना के रत्ती भर लक्षण महसूस होते ही वह इसकी जांच करवाने की कोशिश करने में लग जाता है, जो केवल कोरोना के स्पष्ट लक्षण और संदिग्ध रोगियों और विदेश से आने वाले लोगों के लिए ही सामान्य तौर पर अभी तक उपलब्ध है। मन्दिर व अन्यान्य देवस्थल, पर्व- त्योहार व समारोहों के सामूहिक आयोजन,  स्कूल, कॉलेज, क्रीडा स्थल, जिम, बाजार, थोक बाजार आदि  बंद किये जाने और सार्वजनिक परिवहनों, बसों, रेलवे, मेट्रो, हवाई अड्डों में किसी के साथ किसी का अंग स्पर्श होने के बाद का डर तथा बेकरारी न उसे जीने देती है न मरने। अनाज मंडी, सब्जी मंडी, हाट – बाजार, मॉल और वीकली मार्केट बंद होने के कारण देश वासियों की अपने घरों में राशन, फल सब्जियां भर कर रखने की होड़ से दाम पहुंच के बाहर हो रहे हैं। वर्क टू होम की वजह से घरों में 24 घंटे बैठे पुरुषों के कारण स्त्रियों की स्वतन्त्रता संकुचित हो रही है, और उस पर बच्चों की चिल पौं अलग से । मनोरंजन के सभी केन्द्र बंद होने से भी दिल को कुछ-कुछ हो रहा है। लोग डरे-डरे हैं और इस परेशानी में लोग बचाव के उपाय भूल जाते हैं। कुल मिला कर वैसी ही घबराहट है जैसी दंगों के दौरान लगे कर्फ्यू से होती रही है। फिर भी अपनी और अपनों की जान के फ़िक्र में सरकार व स्वास्थ्य बिभाग द्वारा निर्देशित नियमों को पालन करते हुए लोग घरों में सुख प्राप्त करने की कोशिशों में लगे हैं । अब देखना यह है कि इस कठिनाई की घड़ी से मुक्ति के लिए लोगों को क्या -क्या और कौन- कौन से दिन देखना पड़ता है? तब तक भारतवासियों के लिए सनातन वैदिक जीवन जीते हुए “एकान्ते सुखमास्यताम्”  में ही सुख ढूँढने में भलाई है ।

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अशोक “प्रवृद्ध”
बाल्यकाल से ही अवकाश के समय अपने पितामह और उनके विद्वान मित्रों को वाल्मीकिय रामायण , महाभारत, पुराण, इतिहासादि ग्रन्थों को पढ़ कर सुनाने के क्रम में पुरातन धार्मिक-आध्यात्मिक, ऐतिहासिक, राजनीतिक विषयों के अध्ययन- मनन के प्रति मन में लगी लगन वैदिक ग्रन्थों के अध्ययन-मनन-चिन्तन तक ले गई और इस लगन और ईच्छा की पूर्ति हेतु आज भी पुरातन ग्रन्थों, पुरातात्विक स्थलों का अध्ययन , अनुसन्धान व लेखन शौक और कार्य दोनों । शाश्वत्त सत्य अर्थात चिरन्तन सनातन सत्य के अध्ययन व अनुसंधान हेतु निरन्तर रत्त रहकर कई पत्र-पत्रिकाओं , इलेक्ट्रोनिक व अन्तर्जाल संचार माध्यमों के लिए संस्कृत, हिन्दी, नागपुरी और अन्य क्षेत्रीय भाषाओँ में स्वतंत्र लेखन ।

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